________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
जवाह (य) न खुरासानी
१४३
वानस्पतिक विवरण -- खुरासानी या किरमानी श्रजवायन वास्तव में अजवायन के वर्ग की श्रोपधि नहीं । श्रपितु यह बादञ्जन अर्थात् सोलेने सीई वर्ग की ओषधि है जिसमें बिलाडोना वधर आदि विषैली दवाएँ सम्मिलित हैं । इसका पजवायन के क्षुपसे ऊँचाई में कुछ बड़ा होता है । पत्ते कटे हुए करेदार करीब करीब • गुलदाउदी के समान होते हैं। पुष्प श्वेत, अनार की कलियों के समान, परन्तु पड़ियों के कङ्करे व मध्य व मूल भाग सुख मायल होते हैं जिनके पकने पर मूल भाग में छला सा लगता है जिसमें अजवायन खुरासानी के बीज लगते हैं; ये अजवायन के बीज से दूमे बड़े एवं वृक्काकार ( जिनका पार्श्व भाग दबा हुआ तथा धूसर वर्ण के होते हैं । वाह्य त्वचा भली प्रकार चिपकी हुई होती है । अल्ब्युमीन तैलीय होता है। वृक्ष गर्भ इस प्रकार ( 9 ) वक होता है, जिसका पुच्छ अङ्कुर बनता है ।
होता है । )
स्वाद - तैलीय, तिक एवं चरपरा होता है । भेद - मजनके लेखक मीर मुहम्मद हुसैन ब के नाम से उन श्रोषधि का वर्णन करते हैं । वे इसके तीन भेद यथा श्वेत, श्याम तथा रक्त का ज़िकर करते हैं ( किसी ने पीत पुष्पवाले का वर्णन किया है) और इनमें श्वेत प्रकारको उत्तम ख्याल करते हैं । प्राचीन ग्रन्थों में यही अर्थात् श्वेत प्रकार ( Hyoseyamus Albus, Linn. ) श्रीफ़िशल थी । मुफ़र्दात नासुरी में इसके बीजको बजुल बज बैज ( श्वेत पारसीक (यमानी बीज ) लिखा है। लाइन ( Pliny ) ने उक्त पौधे अर्थात् हा० रेटिक्युलेटस के चार भेदों का वर्णन किया है। उनमें से प्रथम (H. reticulatus ) काले बीज वाली जिसमें नीले रंग के पुष्प श्राते हैं, तथा जिसका तना काँटेदार होता है और जो गलेशिया में उत्पन्न होती है; द्वितीय या साधारण प्रकार हायोसाइमस नागर ( श्यामपारसीक यमानी ); तृतीय भेद - जिसका बीज मूली के सदृश होता है अर्थात हायोसाइमस श्रीरियस (H. aureus Linn.) और चतुर्थी हा० एल्बस (H.albus)
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अजवाइ (य) न खुरासानी
अर्थात् श्वेत बीजयुक्त है को समस्त चिकित्सकों द्वारा स्वीकृत है । उनके कथनानुसार इन सभी में चक्कर तथा पागलपन पैदा करने का गुण } पारसीक यमानी बीज जो खोरासान से लाया जाता है वह उन चारों में से प्रथम का ही बीज है । यह क्वेटा में बहुतायत से होती है। इसके अतिरिक्त इसका एक और भेद है जिसे कोही भंग (H. muticus, Linn., or H. Insanus, Stocks ) कहते हैं । यह अत्यन्त विषैला होता है । देखो - कोही भंग |
प्रयोगांश — वैद्यगण बहुधा इसके बीजों को व्यवहार में लाते हैं और तिब्बी हकीम भी प्रायः उन्हीं का अनुकरण करते हैं। प्राचीन यूनानी लोग तो इसके पत्तों, शास्त्रों तथा मूल व बीज अर्थात् पञ्चाङ्ग को व्यवहार में लाते थे । परन्तु, मध्यकालीन यूरुप में इसके बोज, मूल अधिक उपयोग में श्राते रहे । श्राजकल यूरुप व श्रमेरिका में अधिकतर इसके पत्ते और जड़ न्यूनतर व्यवहृत हैं। प्राचीन यूनानी व इस्लामी चिकिसक तो श्वेत पुष्पीय बञ्ज को श्रौषध रूप मे उपयोग करना उत्तम ख्याल करते थे । यद्यपि बञ्ज स्याह के उसारह का भी उन्होंने ज़िकर किया है, पर अधुना यूरुप में पारसीक यमानी श्याम औषध रूप से व्यवहृत है । अस्तु, डॉक्टर लोग इसकी ( शुल्क या नवीन ) पत्तियों से तरह तरह के योग निर्माण करते हैं। वे पत्तियों को मय शाखा व फूल सावधानी से संग्रह करते हैं । यह उस समय किया जाता है जब खुशसानी अजवायन का पेड़ फूलने फलने लगता है। तथा अपनी पाकावस्था में दिखाई देने लगता है ।
रासायनिक संगठन -- हेनबेन ( पारसीक यवानी ) में एक हायोसायमीन ( Hyoscyamine ) नामक सत्व जिसकी रासायनिक रचना धतूरीन ( एट्रोपीन) के समान होती है, पाया जाता है। यह विभिन्न प्रकार के हायोसायमस ( नञ्ज ) के बीज तथा पत्र स्वरस में हायोसीन या विकृताकार हायोसायमीन के साथ पाया जाता है । इसके सूचिकाकार या त्रिपाश्र्वकार रखे होते हैं और यह धतूरीन की अपेक्षा जल एवं
For Private and Personal Use Only