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अजवाइन
अजवाइन
अजवायन प्रादि से भी प्राप्त होता है । देखो- opium) मिलित कर व्यवहार करना उत्तम है थाइमोल।
तथा २॥ ता० अर्क अजवायन और उतने ही प्रभाव-वायुनिस्सारक (Calminative) चिरायते के शीत कषाय में 1 ग्रेन (आधी रत्ती) तथा कृमिघ्न (Anthelmintic).
लोहगन्धेत् [ सल्फेट ऑफ प्रायन ] मिति कर ___ मात्रा-1 से ३ मिनिम (३ से १८ सें. दिन में २ बार व्यवहार करना उत्तम व्यापक मि० ग्रा० ).
बलदायक औषध यमानो तैल के प्रभाव तथा प्रयोग-थाइ. __इसे अन्य सुगन्धित प्रोषधियों यथा यूकेमोल तथा अन्य प्रातिशल तैलः के तदृश ३ बुद लिप्टस, पेपरमिरट तथा गालथेरिया आदि के की मात्रा में यह प्रवल वायुनिस्सारक है । थाइ | साथ मिलाने से यह लाभजनक वायुनिस्सारक मोल के समान द्वादशांगलीयांत्रस्थ (द्वादशा
औषध होजाती है । यमानी तेल तथा अजवायन गुल नामक अंग्रमें पाए जाने वाले ) केचुनों पर का फूल इन दोनों को सांडा के साथ देने से यह सशक कृमिघ्न प्रभाव करता है । परन्तु अम्लपित्त, अजीर्ण तथा उदराध्नान में लाभ उक्त अभिप्राय हेतु एक फ्लुइड डाम से अधिक ) होता है। मात्रा को आवश्यकता होती है जो थाइमोल के - अजवायन का बीज, कालीमिर्च, सौं: प्रत्येक तरल रूप में प्रात्मीकृत होजाने के कारण सम्भ- प्राधा डाम और इलायचो १ डान इन सबको वतः विषैला होगा। आभ्यन्तरिक रूप से अज- चूर्ण का ड्राम की मात्रा में उदरशूल में दिन वायन का अके उदराध्मान ( Flatulence) में दो बार यवहार करने के लिए में यह बढ़िया तथा उदरशूल में लाभदायक है।
वायुनिस्सारक दवा है। अजवायन के गुणधर्म के सम्बध में चक्रदत्त-अजवायन, सेंधानमक, साँचलडॉक्टर एवं अन्यं मत-अजवायन के बीज लवण, यवचार, हींग तथा हर्रा इनको समभाग तथा उड़नशील तैल उदराध्मान, उदरशूल, अति- ले चूर्ण करें। मात्रा-५ रत्ती से १० रत्ती मद्य सार, विशूचिका, योपापस्मार, ओर अात्राक्षेप में के साथ । गुण-अंतड़ियों की वेदना व शल को लाभदायक हैं। इससे उप्मा एवं प्राहाद की
दूर करता है। वृद्धि होती है और श्रांत्रविकार के साथ होनेवाली
अजवायन के बीजों को मुंह से चबाकर उदासीनता तथा निर्बलता दूर होती है। उक निगल जाये और ऊपर से उष्ण जल पान करें। तल को १ से ३ बुद की मात्रा में किचित् शर्करा
इससे प्रामाशय शूल, कास तथा अजीर्ण नष्ट पर डालकर अथवा गोंद के लाब और जलके माध इसका इमलशन बनाकर उपयोग में लाना । अजवायन का तेल प्रस्तुत करने के लिए. ३ चाहिए । वात व प्रामवान सम्बन्धी वेदनाओं को मेर दुचली हुई अजवायन में १५ सेर पानी दूर करने के लिए इसका वाय प्रयोग होता है। डाल के मद्य संधान की विधि से १० सेर पानी विशूचिका की प्रथमावस्था में वमन व रेचन को काढ़ना चाहिए। (मिलिंसडेल). रोकने तथा शरीर को उत्तेजित करने के लिए, पैत्तिक वमन एवं शीत लगना प्रभृति में अजयमानी तेल एवं इसके बीजों द्वारा परिशुत जल वायन के बीज तथा गुड़ मिलाकर भक्षण किया (अजवान के अर्क ) को १ से २ पाउंस ( २॥ जाता है। तो० से 1 . तक) की मात्रा में उपयोग जुकाम, प्राधाशीशी तथा उन्माद इत्यादि में करना गुणदायक होता है।
इसके बीज के चूर्ण को बारीक कपड़े में बाँध कर अतिसार में एक बाउंस (२॥ तो.) अज- थोड़ी थोड़ी देर में सुँघाना चाहिए अथवा उक वायन का अर्क तथा उतने ही चूने के पानी में । चूर्ण का सिगरेट बनाकर पिलाना चाहिए। । ५ बुद अहि फेनासव ( Tincture of उदरशूल निवारण हेतु इसके बीजों का उपानह
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