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अजमोदाख्या
अजमोदावरका
का यटिका प्रा । य र एक मात्रा है।
शुगर सहित जिरोध था मलेरिया ज्वर में लाभ होता है । ई० मे० मे०।।
( २ ) ए पट्रैक्टम् अगोटी, रती ( १ ग्रेन), एपिोज ३ मिनिम् ( बुद).
उपयोग-विधि-इन दोनों श्रीपयों को एक बालो केरल में डालकर ग्विना दं और ऐसा प एक कैर गृल दिन में ३ बार दें।
गुण-र संघ नया बाधक वेदना में लाना दायक है। अजमोझरुया jimodikhyi-सं० स्रो० (१)
यनयमानी, यन वाइन । अयमानी, या पापा । रत्ना०, बृहन् लवंगादि चूर्ण । (२) यमानी । अजगइन । Crim ( Ptye. .
hotis ) Ajowil!), DC. I Tro fool अक्षयादि गुटेका jimooli li-gutiki
-रू. आ. अजमोद, मिर्च, पीपल,चित्रक, यायविदंग,देवदारु, गोमाके बोस, सेंधा लवण, पीपलामूल, इन्हें । पल और संग; १० पल, विधारा १० पल, दनी (जलालगोटा की जड़) ५ पल इनका चूर्ण कर चई के बराबर गुह जिला गोलियाँ बना।
भाषा-२-६ मा० । इसे गर्म जल से उपयोग ! करने से सनस्त वात रोग दूर होते हैं।
(योगचिन्तामणि) अजमंदादि कर्णः ajitmalli-churna h
-सं० पु. अजमोद,वायविधानोंन,देवदारु, चित्रक, पीपरामल, मोफ, पापर, मिर्च, इन्हें कप कप भर लें । ह५ ५ कप, विधारा १० कपं, मों: १. कर इन्हें चर्ण कर गुड़ पुराना मिति कर 'उध्या अल से स.ने से शोथ, श्रामदान, सन्धिपीडा, (गठिया) गृध्रसा, कटिपीदा, पी, जाँध को पाड़ा. तृणी, प्रतितणी वाय.
विश्वाची, कफरोग तथा वायु के रोग दर होते - हैं। शाङ्ग सं० मध्य० ख० अ०६।ग. - चि०म०।
#HATGT TIF: ajamoládlya-vațakah . - पु० अजमादादि गुटिका ।
(1) अंजमोद, १ सेर, हाइ, बहेड़ा, अमला, सोंठ मुल्तानी, विदारी कन्द, धनियाँ, मोथा, मोचरस, गजीपल, लौंग, जायफल, पीपर, चित्रक, अनारदाना, भारंगी, कहलगा, मिर्च, दोनों जीरा, कुटकी, नाबादन, पीपरामूल, रेणुका, वायविडंग, वच, कायफल, पिसमापदा तिधारा, दन्ती की जड़, कुरदानासार इन्हें एक एक तोता ले, चुग व काइदान कर इसमें २० वर्ष का पुराना गुद एक सेर मिलाकर पाक विधि से एक एक तो प्रयाग गाजियाँ बनाएँ । इरो उपय अज से उपयोग करने से पेट का भारीपन, कछुई तथा उदर विक र वर होते हैं।
(२) अजनाद, मिला, विदारीकन्द, मीठ, धनियाँ, नोचरम, शोथा, गपीपल, लौंग, जाय. फल, पीपल, विजयामुलगानी, अनारदाना, दोनों जीरा, चित्रक, भारंगा, कतलगा, कोचीज, गुलदी, शिलाअन्तु, काकालिंगी, केसर, नाग. के तर, पुष्करनूल, शतावर, इन्ई ६-६ मासे ले, पुनः चूर्ण कर कालान को । पश्चात् ५५ सेर गोदुग्ध श्रौटाएं जब एक सेर शेष रहे एक सेर निमी की च.सनी कर, उन वर्ण मिला तो. प्रमाण गालियां बनाएं । इसके सेवन से वीर्य वृद्धि होकर बल बढ़ता है । (अमृ० सा०)
(३) अजमोद १२ भाग, चित्रक १ भाग, हड़ 10 भाग, कृट ह भाग, पीपर - भाग, मिर्च ७ भाग, सोंठ ६ भाग, जीरा ५ भाग, सेंधालवण ४ भाग, वायविडंग ३ भाग, बच २ भाग, हींग १ भाग । इन्हें चूर्ण कर चूर्ण से द्विगुण पुराना गुड़ मिलाकर ७॥ टं० प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। इसके सेवन से अनेक प्रकार के वानरोग, १४ प्रकार के दर्य रोग, १८ प्रकार के गुल्म, २० प्रकार के प्रमेह दूर होते हैं। तथा, यह हृद्रोग, शूल, कु, वायु, गुल्म, गलग्रह, श्वास, संग्रहरणा, पांडु, अग्निमान्य, अरुचि, इत्यादि को दूर करती है। (४) अजमोद, मिर्च, पीपर, वायविडंग, देय.. दारु, चित्रक, शतावरी, संघालवण, पीपरामूज, इन्हें चार चार तोला लें। सौंठ ४० तोला,विधारा
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