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अङ्गरी.शराब
प्रभृति विकारों में व्यवहत होती है, सर्वोत्तम एवं किशमिश - विविध खंडमोदकादि में व्यवअतिग्राह्य अनुपान है।
हृत होता है। शवंत निर्माण-विधि-पक द्वाझा स्वरस
(मे० मे० इं० २ य भा० १३७ पृ०) १ सेर, जल १॥ सेर, शुद्ध स्वच्छ शकरा २ सेर । मुकर्जी-किशमिश शीतल तथा मृदुभेदक सर्व प्रथम शर्करा को जल में डाल कर अग्नि पर | ख्याल किया जाता है और खाँसी, प्रतिश्याय रखकर घोलें, पुनः अंगुर स्वरस मिलाएँ । तथा पांडुरांग में व्यवहृत होता है। तत्पश्चात् सम्पूर्ण द्रव को मधुर अग्नि द्वारा यहाँ हिं. संज्ञा पुं० [सं० अंकुर ] (२) मांस तक पकाए कि वह रह जाए। मात्रा-प्राधा से के छोटे छोटे लाल दाने जो घाव भरते समय १ फ़्लुइड श्राउंस (२४ घंटे में ५-६ बार )। दिग्वाई पड़ते हैं । (३) अंकुर, अंखुपा ।
डाइमॉक-श्रया अगर स्वरस को अरबी में अगर का मड़वा angüra-ki-marava-हिं० हसरम, कारसा म गरह, अग्रज़ा म वरजूस संज्ञा पु. अंगूर की बेल को चढ़ने और फैलने (Verjuics) तथा रूमी में अग्रेस्टो
के लिए बाँस की धज्जियों का बना हुया मण्डप । (agristo ) कहते हैं। यह इटली में अब श्रङ्गर की टट्टी higura-ki-tatti-हिं० तक कंउरोगों में व्यवहृत होता है । वसंत ऋतु में संज्ञा स्त्रो० अंगूर का मड़वा। अंगूर की शाखायों को काटने से उनमें से अधि- अगर की शर्करा angāra-ki-sharkala कता के साथ रस निकलता है। यह त्वचा रोगों हिं० संज्ञा स्त्री० दादीज, द्राक्षा खंड, दाख में व्यवहृत होता है। अब भी यूरुप में चतु प्र- की शर्करा | Grap, sugar (Dextrose, दाह के लिए यह एक प्रसिद्ध औषध है।
glucosu. ) इसका पत्ता संकोचक है, तथा अतिसार में अगर शेका angura shefa-हिं० संज्ञा प. उपयोग किया जाता है।
[फा०] ( Dulenmara) एक जड़ी जो आर० एन० खरो-औषधार्थ प्रयोग करने ।
हिमालय पर शिमले से लेकर काश्मीर तक होती से पूर्व अंगूर के बीज एवं छिलका दूर कर देने
है । इस स ग अंगूर, सूची, जवराज तथा गिर
बूटी भी कहते हैं। इसकी जड़ और पत्तियां दमे चाहिए। मुनक्का महर, स्निग्ध, शीत तथा मदुरेचक है। इसको प्रायः औषध को मधुर
और वायु के दर्द को दूर करती हैं। देखोकरने के लिए प्रयोग में लाते हैं। यह ज्वर की
अंगरे शिफ़ा। पिपासा, प्रदाहमूलक पीड़ा एवं कोटबद्ध रोग में अङ्गरी anguri-हिं० वि० [फा० अंगूर+ई ] सेवनीय है । पत्र-कपेला है और अतिसार रोग (१) अंगूर से बना हुा । (२) अंगूरी रंग में व्यवहृत होता हैं।
का। काष्ठ की भस्म-अश्मरी रोग के पूर्वरूप में ।
संज्ञा पु. कपड़ा रंगने का हलका हरा रंग एवं भावीरोगोत्पादनानुकुल अवस्था में शरीर में ।
जो नील और टेसू के फूल को मिलाकर बनाया युरिक एसिड सञ्चय हेतु अनागतव्याधि प्रतिषेधक
जाता है रूप से अर्थात् भावी व्याधि उत्पन्न न हो; इस अङ्गरी शकर anguri-shakara-फा०--हिं लिए इसका उपयोग करते हैं। एतद्देशीय लोग संज्ञा प. द्राक्षीज, द्राक्षखंड, अंगूर की शर्करा कोष्ठवृद्धि रोग एवं अर्श में इसका प्रलेप (Dextrose) करते हैं।
| अङ्गग शराब anguri-sharaba-हिं०, द० कपिलद्राक्षा ( भूरीदाख ) साधारणतः द्राक्षासव, मद्य । खम्र, शराब-अ० । मै, बादह, रेचक मिश्रणों में उपादान रूप से व्यवहृत होती मुल-फा० । शाडयाम-ता० । द्राक्षसारायि,
द्राक्ष रसम्-ते० । मुन्तिरिङ ङप पज़म-चारायम
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