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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ग ] करने के लिए मनमाने शब्दो' को रख देना और ग्रन्थ पूरा करके नाम कमाना ही है। क्योंकि 'निर'कुशा कवयः' कविनिर कुश होते हैं । यह बात अन्य विषय के कवियों के लिए लागू भी हो सकती है; परन्तु अायुर्वेद जैसे जुम्मेदारी के साहित्य पर यह निरंकुशता अाज कितना बुरा प्रभाव डालती हुई हमारे अधःपतनका कारण हुई है यह किसी भी सहृदय से छिपा नहीं है। प्रत्येक आयुर्वेदीय साहित्य पर विद्वानों की सम्मति का अंकुश होना चाहिए और वह साहित्य तभी प्रकाश पा सकता है। जब उसका निरीक्षण विद्वानों द्वारा होकर अाज्ञा प्राप्त करली जाय । मनगढंत अायुर्वेदीय साहित्य से आयुर्वेद का नाश होना संभव है । और भी देखिए पलाण्डुः कफन्नाति पित्तलः । भाव० । पलाण्डुः कफ पित्त हर लघुः । राज० नि० । तगरद्वयमुणं स्यात् । भावः । तगरंशातलं तिक्तम् ॥ रा०नि० ॥ त्वक शुक्रता। भा० । त्वचं शुक्रशमनम् । रा०नि०। कितना अनर्थकारी विरोध है। यही विरोध देख हमने इस ग्रंथ के प्रकाशनका भार अपने निर्बल कंधो • पर लिया है। आशा है हमारे वैद्य बन्धु हमें इसमें मदद देंगे और जहाँ जहाँ हमारा स्खलन हुआ हो अपनी बुद्धि के त करें ताकि संशोधित हो सके और भावी संतानों के हित साधन में यह एक हो सके । . यदि इस ग्रंथ से कुछ भी लाभ पाठको को होगा तो हम अपने व्यय को सार्थक समझो। दूसरे प्रोपधि मात्रा, किस वनस्पति का कौन सा भाग प्रयुक्त किया जाना चाहिए, यदि दी हुई औषध अवगुण करती मालूम हो तो उसका दर्पन कौन सी औषध को देकर शीघ्र ही होने वाली हानि से रोगी को बचा लिया जाय। . इसके सिवाय श्रायुर्वेद में केवल ४०० के करीब और युनानी ग्रंथों में ६०० के करीब वनस्पतियों का वर्णन मिलता है और एलोपैथी में करीब २००० ओषधियों का स्फुट वर्णन मिलता है और करीब २०००० अोपधियों के चित्र लिए जा चुके हैं। आपको इस कोष में अब तक की संसार भर की खोजो' का संग्रह मिलेगा जिसे देख आप गद गद् हो जावेंगे। हस कोष में क्या है ? संक्षेपतः इसमें प्रायः सभी विषयों का समावेश किया गया है। इस कोष को पास रखने पर आपको अंग्रेजी (एलोपैथी, यूनानी, आयुर्वेदीय, रोग-निदान, उनकी चिकित्सा, प्रसिद्ध प्रसिद्ध योग, शारीरिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, वानस्पतिक शास्त्र का पूर्ण विवेचन अकारादि क्रम से मिलेगा । अर्थात् जो जो वर्णन आज तक को प्रकाशित पुस्तकों में इतस्ततः था उनका संग्रह एक स्थान पर इस प्रकार से दिया हुआ है कि देखने वाला उस विषय का तत्क्षण विज्ञ हो जाता है अर्थात् उस विषय का अंत ही निकाल बैठता है । इससे आगे उसके लिए कुछ भी ज्ञातव्य शेष नहीं रहता। तीनों पैथियों के शब्दों को और प्रत्येक प्रांतके शब्दों को जो चिकित्सा शास्त्रसे सम्बन्ध रखते थे अकारादि क्रमसे इस प्रकार संग्रह किया है कि, आपको किसी रोग व वनस्पति, पार्थिव,जान्तव, औषधि का नाम मालूम हो तुरन्त उसका नाम निकाल वणन पद तृप्ति प्राप्त कर लेनी पड़ेगी। इतना सब कुछ करने पर भी शाब्दिक महान् सागर को हम पार न कर सके हो यह सम्भव है; इसलिए प्रत्येक प्रांतीय भाषाविज्ञों से प्रार्थना है कि इस कोष में जो भी शब्द श्रापको न मिले उसकी सूचना हमें अवश्य दे ताकि हम उसे अगले संस्करणों में स्थान दे इस कोष को पूर्ण सफल बनाने में समर्थ हो सके । जो कुछ भी अत्युक्कि, जो कुछ भी कमी, जो कुछ भी सुधार और श्रापको इसमें कराना या निकालना हो उसकी सूचना से सूचित करना और अपने अपने इष्ट मित्रों को इस कोष के देखने की सलाह देना ताकि इसका प्रचार बढ़े और शीघ्र ही इसके सम्पूर्ण भाग प्रापको देखने को मिल सकें। यदि श्राप लोगो ने इसके प्रचार में उत्साह से भाग न लिया तो यह अपनी धीमो धीमी चाल से न जाने कितने वर्षों में सम्पूर्ण निकल सके और आपको जैसा इस कोष से लाभ पहुँचना चाहिए न पहुँचे । कारण बिना कोष के सम्पूर्ण हुए सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण होनी असम्भव ही है। आशा है कि सभी वैध बन्धु इससे प्रसन्न हो सहाय देंगे। वैद्यों की उन्नति का इच्छुकः प्रकाशकः - चिकित्सक पं० विश्वेश्वरदयालुजी वैद्यराज For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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