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अकोल
अटोहर
सिर में दर्द हो और किसी तरह अच्छा न | मिलाकर गोला बनालें, फिर तत्काल मारे हुए होता हो तो उक तैल को २० बूंद की मात्रा में , बकरे के मौसका पिं जैसा बना कर गोले को बकरी के दधमें थोड़ा सा राहद डालकर पिलाना उसके भीतर रक्खें। फिर लाल चित्रक के रस लाभदायी है। इससे मस्तिष्क पुष्ट होता है। और तोल मूली की जड़ का रस इनमें उसको
इसके तैल को तिल के तेल में मिलाकर दुबाकर फिर बाहर से चारों तरफ बकरे का मांस लगाना बालों को बढ़ाता है और सिर के जुत्रों लपेट दें फिर अग्नि के समान गरम तेल में उसको को दूर करता है। .
डालकर भूनलें । और जब वह मांस पिंड भूनकर गरम पानी में तेल डाल कर कुल्ली करना। सिंदूर का सा रंग धारण करले तो निकाल कर मसूड़ों की सूजन, दर्द, खून बहने को प्राराम । रखलें। करता है।
मात्रा- रत्ती शहद और घी के साथ खाएँ। चेचक के दाग पर गेहूं के आटे में हल्दी और गुण-इसके सेवन से मनुष्य वीर्यवान होजाता अकोल का तेल मिलाकर पानी से गीला करके है । नपुसकता जाती रहती है । इस पर कसैला उबटना रंगको ठीक करता है और कुछ सुन्दर पदार्थ सेवन करमा निषेध है । करता है।
अकोलन् ankolam-मल ढेरा अंकोल नोट-प्रायः निघण्टुकार अकोल को रेचक । Alangium decap? talum, Lam.) मानते हैं पर कई प्राचीन इसे संग्राही कहते हैं। इं० मे० मे०। . चरक सुश्रुतने विषन माना है पर संग्राही विरेची अकोलमनचर ankolama-machar-अज्ञात |
गुण का उल्लेख देखने में नहीं पाया। अकोलम् चे? ankolam-chettu-ते. अकोलकः ankolakah-सं० पुं० अकोल अकोला, अकोल. ढेरा [Alangium deca
( Alangium Deca peptalum, patalum,Lem.] स० फा० ई०। Lam.)र० सा-सं०।
अङ्कालमु ankolamu ते०, ढेरा, अकोल (A. अङ्कोल कल्क: Ankola kalkah स.पु. ____d.capatalum, Lun) ई० मे० मे० । ढेरे की जड़ की छाल चावल के धोबन में पीस |
अकोला ankola-म०, । ढेरा, अकोल, शहद डाल कर पीने से अतिसार और विष के
अकोली ankoli-कना । अकोला (Ala विकार दूर होते हैं ।
अकोले apkole-कना u gium deca भा० म० ख०२ अति० चि. शाक्र० स०प्रहालयnkolya-T | pe taluum, म. ख० प्र०५ अङ्कालुम् ankolum-ता० । फाई।
Lam. -स० अङ्काल तैलम् ankola tailam स. क्ली०
अकोल बोज तेल । Alangium decap- अकोल्लः ankollah-सं० पु. (Cedrus etalum, Lun. ( Oil of-)। बैं०
deodara ) देवदारु। रा०नि० २० निघ०
२३ । वा०३०३८ ०।।
अङ्कोलक: ankollakah सं० ० (Alanअकोल फल सङ्काशः ankola-phala-sankashah-स० पु०, फल विशेष | संसार में
gium Decapetalum, Lum.) अकोल
मद०व०१। पित्ता नाम से प्रसिद्ध है । वै० श०। श्रङ्कोलसार: ankollasarah-सं० पु मालव प्रकोल बद्धवटो ankola-baddhahvati प्रसिद्ध स्थावर विष भेद (A kind of pois-सं०स्त्री० यो० म० शुद्ध पारे को श्वेत श्रङ्कोल
___ on ) हे.च. ४ का । अकीम, संखिया, के रस में तीन दिन तक भावित करें, फिर पारे के
प्रभृति । औ० श०।। समान भाग गन्धक मिलाएं और खरलमें बारीक अाहर ankohara-हिं०संशपुरा,अकोल कजली बनालें। फिर श्रङ्कोल ही के रस को (Alaigium decapetalum, lam.)
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