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अग्निजननी
Linn.) भिलावाँ, भल्लातक ( ३ ) ( Gold ) सोना, सुवर्ण ( Aurum ), मांस धातु ( Muscle ) वै० श० । श्रग्नि-जननी agnijanani - सं० स्त्री० [हिं० वि० (१) अग्नि से उत्पन्न । (२) श्रग्नि को उत्पन्न करने वाला ( ३ ) अग्नि संदीपक |
पाचक |
भग्नि-जननी-बडी aghi-jaani vati-सं० ख:० पारद, गंधक, सोंठ, सुहागा, वच्छनाग, काली मरिच समान भाग लें । पुनः बड़हल के रस में मर्दन कर चना प्रमाण गोलियां बनाएँ । गुण-यह श्रग्नि प्रदीपक है। भै० २० श्रग्नि
मा० प्र० ।
अग्नि-जातः agni jatah - सं० श्रग्नि जार वृक्ष । ( See-agnijára. ) रा० नि० व० ६ । अग्न जार agnijara - हिं० संज्ञा पुं० अग्नि जारः agnijarah - सं० पू०
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Aplant used in medicine of stimulaut properties. ) पश्चिम समुद्र में उन नामकी प्रसिद्ध सागर सम्भूत औषध विशेष, समुद्र फलका पेड़, इसके पर्याय निम्न हैं:-यथाअग्नि निर्थ्यासः, श्रग्निगर्भः, श्रग्निजः, बड़वाग्निमलः, जरायुः, श्रर्णवोद्भवः, श्रग्निजातः श्रर सिंधुफल | लक्षण-यह चार प्रकार के वर्ण वाले होते हैं, इनमें लीहित वर्ण का श्रेष्ट होता है जैसे - जाराभो दहमस्पर्शी पिच्छिलः सागरोद्भवः । जरायस्तच्चतुर्वण : तेषु श्रेष्ः स लोहितः ॥ गुण-कटु रस युक्र, उष्ण वीर्य; लघुपाकी तथा कफ, वायु, सन्निपात, शूल रोग नाशक और पित्त कारक है, यथा--- स्यादग्नि जारः कटु रुप्मा वीर्यः गुदामय वात कफामयध्नः । पित्त प्रदः सोऽधिक सन्निपातशूलाति शीतामय नाशकश्च ॥ रा० नि० व० ६। (amber ) अम्बर अरब । अग्नि- जाल: agnijalah सं० पुं० श्रग्निजार,
समुद्रफल का वृक्ष ।
अग्नि-जिह्व agnijihva - हिं० संज्ञा पुं० [सं० ] देवता, श्रमर ।
अग्निजिह्वा agnijihva - हिं० संज्ञा स्त्री० अग्नि-जिह्निका agnijihvika. सं० खो०
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अग्नितुराडी वढी
(Gloriosa Superba, Linn.) inaî वृक्ष | रत्ना०| कलिहारी-हिं० । कललाघी-म० । ईष लांगुलिया - बं० ।
गुण- दस्तावर, तिक्र, कड़वी, चरपरी, कथैली, तीक्ष्ण, उष्ण, हलकी, पित्तकारक और खारी, गर्भ को गिराने वाली है । कुष्ट, शोफ (सूजन), अर्श (बवासीर) ब्रण, शूल, श्लेष्म तथा कृमि को नष्ट करने वाली, कफ बात नाशक और अन्तः शल्य निस्सारक है । भा० पू० १ भ० गु० व० (A tongus or flame of fire ) श्राम को लपट | श्रग्निज्वाला agnijvala-सं०स्त्री० (१) गजपीपल
- हिं० | गज पिपुल - बं० । पाँथोस आफिसिनैलिस् ( Pothos officinalis ) - ले० विद्वान् लोग चव्य के फल को ही गजपीपल कहते हैं । यथा - " चविकायाः फलम् प्राज्ञैः कथिता गजपिप्पली" । भा० पू० १ भ० ।
गुण-गजपीपल, चरपरी, वात, कफ नाशक, श्रग्नि को दोपन करने वाली और गरम है, और प्रतिसार, श्वांस, कंद्र के रोग और कृमि रोग को नष्ट करने वाली है । ( २ ) लांगली वृत्त ( Gloriosa superba ) ( ३ ) श्रग्निजार, ( Agnijára ) ( ४ ) जलपिप्पली - हिं० । कांचड़ा-बं० । जलपिप्पली - म० । ( ५ ) धातकी वृक्ष | रा०नि० ० २३ । ( ६ ) श्राग की लौ, (Flame) ( ७ ) आंवले का पेड़, श्रामला । ( Phyllanthus Emblica ) ( = ) अग्निबाड़ा | ( Agnibada ) श्रग्नि-झाल agnijhala - हिं० संज्ञा पुं० [स ं०] safe ज्वाला । जरायु । सुफेद चित्रक ( white lead-wort ) - ० । ( २ ) जल पिप्पली का पेड़ । श्रग्नि- तप्त agni-tapta - हिं० वि० आग पर
गरम किया हुआ । अग्नि- तुण्डा-बटी
agni-tundá-vati - fro संज्ञा स्त्री० [सं०] अग्नि-तुराडी बढ़ी:अग्नि- तुराडी-वटी agnitundi-vatiसं० बी० शुद्ध पारद, वच्छनाग, गंधक, अजमोद, त्रिफला, सज्जी-खार, जबा-खार, चित्रक, सेंधा नमक, जीरा
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