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श्रगटि
अमेदि ग्राण्डिफ्लोरा agati grandiflora Jan. -ले० श्रगस्तिया, अगस्त ( Great - flowered agati ) फा० इं० । ई० मे० मे० । श्रगेनोमा कैर्योफाइट लेटा aganosma. caryophyllata, G. Do". - ले० इसके पत्र औषधि कार्य में आते हैं। मेमो० | देखो मालती । अगेनोमा कैलसिना aganosma Calycina, 4. De.-ले० मालती-हिं०, बं०, सिं० गंधोमालती-यं० । इसके पत्र श्रौषधि कार्य में आते हैं। मेमो० । अमेरिकagaric-to | श्रग़ारीकून अरिsa agaricus - लेo j श्रगारिक स अमेरिकब्लैक agaric-blanc - फा० गारीक्रून | देखो श्रगारिक ऐबस ।
श्रगेला agela - हिं० संज्ञा पुं० [सं० श्रम ] हलका अन्न जो श्रीसाते समय भूसे के साथ श्रागे जा पड़ता है, और जिसे हलवाहे श्रादि ले जाते हैं ।
દ
श्रगेवि अमेरिकेना agave americana, Linn. Locb.-ले० राकसपत्ता, बड़ा कँवार, कंटला, बांस केवड़ा, (मेमो०, इ० मे० प्रा० ) जंगली कॅबार, हाथी सेंगाड़ (रु० फा० इ० ) हाथी चिंघाड़ - हिं० रावकस पत्ता - ६० । श्रनैककटड़ाज़ (स० फा० इ० ई० मे० प्रा० ) पिकल बुन्थ - ता० (मे० मी० ई० मे० प्रा० ) राकाशि- मट्टलु-ते० । पनम् कटड़ाज़- मला० । भुत्ताले, बुडुकट्टले नारु-कना० । जंगली या विलायती ननाश ( स ), बिलाति पात, कोयन मुर्गा, ( श्रनारस अपभ्रंश ) - वं० । जंगली कामारी - गु० । जंगली कुँवार, पारकन्द- चम्ब० विलायती कैटलू-पं० 1 अमेरिकन एलो ( American aloe ), कैरेटा Carataइं० ।
नोट - (१) हैदराबाद के किसी किसी जिले में श्रवि अमेरिकेनाके लिए केतकी शब्द प्रयोग में लाया जाता है, किन्तु यही नाम भारतवर्ष के अन्य भागों में केवड़ा अर्थात् केतकी ( Pand
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श्रवि अमेरिकना
·anus odoratissimus, Willd.) के लिए व्यवहृत होता है।
किसी किसी प्रन्थ में ऊपरोक पौधे के लिए
पर्याय कोयाज निश्चित किया जाता है, किंतु ये नाम बड़े कबार विषमरडल अर्थात् सुख दर्शन ( Crinum Asiaticum, Linn.) के हैं । अमेरिलिडीई श्रर्थात् (सुख - दर्शन वर्ग ) ( N. O. amaryllidece ) उत्पत्तिस्थान — इस पौधे का मूल निवास स्थान अमेरिका है, पर अब यह भारतवर्ष के अधिक भागों में था इसा है । प्रयोगांश-मूल, पत्र और निर्यास तन्तु, पुष्प, दरडी तथा मध्य, आहार औषध तथा डोर
हेतु । रसायनिक संगठन- इसके डंटल के रस में एक शर्करा जनक ऐलकोहल ( मद्यसार होता है जिससे एक संधानित मादक पेयपदार्थ प्राप्त होता है जिसको मेक्सिको ( Mexico ) में पक्की (Pulque ) कहते हैं । अगेवोसी ( Agavose ) एक निष्क्रिय शर्करा है ।
प्रभाव - मूल-मूत्रल और उपदंशध्न है । रसभृदुभेदनीय, मूत्रल रजः प्रवर्तक और स्कर्थी नाशक ( Antiscorbutic ) है | औषध निर्माण - क्वाथ, पत्र स्वरस, मूली का रस एवं निर्यास |
प्रयोग — इसका मूल सारसापरिला के साथ क्वाथ रूप से उपदंश रोग में प्रयुक्त होता है, ( लिण्डले )
अमेरिकन डॉक्टर इसके पत्ते से निचोड़े हुए रस को शोथधन और परिवर्तक प्रभाव के लिए विशेष कर उपदंश रोग में उपयोग करते हैं । इसका रस को मृदुकर, मूत्र विरेचनीय और रजः प्रवर्तक, २ फ्लुइड श्राउंस की मात्रा में स्कर्वी नाशक है । (यु० एस० डिस्पेन्सरी ) जरनल शरीदन ( Genl - Sheridan ) का वर्णन है कि उन्होंने अपने श्रादमियों पर जो स्कर्वी से व्यथित थे इसका उपयोग किया और इसे बहुत लाभ दायक पाया | ( इयर बुकफार्मे० १८७५, २३२ )
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