SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 984
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ० २८ www. kobatirth.org उत्तरस्थान भाषाटीका समेत । अर्थ - भगंदरवाले रोगी का कोष्ठ शुद्ध करने के लिये बीच में यत्न करना चाहिये । घाव पर लेप | लेरो बगे विड्रालास्थित्रिफलारस कल्कितम् अर्थ - त्रिफला के काढ़े में बिल्ली की हड्डी घिसकर लेप करने से भंगदर के घाव पर गुण करता है । अभ्यंगार्थ तेल | ज्योतिष्मती मलगुलांगलिशलुपाठाकुंभनिसर्ज करवीरवचासुधाकैः । अभ्यञ्जनाय विपचेत भगंदराणां तैलं वदंति परमं हितमेतदेषाम् ॥ अर्थ · · मालकांगनी, काकोडुंबर, कठूमर, मोरकी शिखा, पाठा, निसोथ, चीता, राल, कनेर, बच, सेंहुड और आक । इन सब द्रव्यों के साथ तेल पकाकर इस तेलको भगंदर में काम में ला । अन्य तेल । मधुकरोधकणा त्रुटिरेणुकाद्विरजनी फलिनीपसारिवाः । कमलकेसरपञ्चकधातकी मदन सर्जरसामयरोधकाः ॥ ३५ ॥ सवीजपूरच्छदनैरेभिस्तैलं विपाचितम् । भगंदरापच कुष्ठमधुमेहव्रणापहम् ॥ ३६ ॥ अर्थ - मुलहटी, लोध, पीपल, छोटी इलायची, रेणुक, हलदी, दारूहल्दी, प्रियंगु, सेंधानमक, अनंतमूल, कमल केसर, पदमाख, धायके फूल, मेनफल, राल, बिडंग, लोध और बिजौरे के पत्ते ! इन सब द्रव्यों के साथ पकाया हुआ तेल प्रयोग करने से भगंदर, अपची, कुष्ठ, मधुमेह और व्रण जाते रहते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८८७ ) भगंदर पर लेह | मधुतैलयुता विडंगसारत्रिफला मागधिकाकणाश्च लीढाः । कृमिकुष्ठभगंदरप्रमेहक्षतनाडीव्रणरोहणा भवंति ॥ ३७ ॥ अर्थ- बायबिडंग, त्रिफला, पीपल, इनके चूर्ण को शहत और तेल मिलाकर लेहन करने से कृमिरोग, कुष्ठ, भगंदर, प्रमेह के घाव और नाडीव्रण भरजाते हैं । पिटिकादि पर औषध । अमृता त्रुटि वेलवत्स कं कलिपथ्यामलकानि गुग्गुलुः । क्रमवृद्धमिदं मधु पिटिका स्थौल्य भगंदरान् जयेत् ॥ ३८ ॥ मागधिकानिकलिंगवंडगेविल्वघृतैः सवरापलप ट्कः । गुग्गुलुना सहशेन समेतैः क्षौद्रयुतैः सकलामयनाशः ॥ ३९ ॥ अर्थ- गिलोय, इलायची, बायबिडंग, इन्द्रजौ, बहेडा, हरड़, आमला, और गूगल इनमें से हर एक को उत्तरोत्तर एक एक भाग बढाकर ले | इनका चूर्ण करके शहत मिलाकर चाटने से पिटिका, स्थौल्य और भगंदर जाते रहते हैं । अथवा पीपल, चीता, इन्द्रजौ, बायबिडंग और बिल्ववृत प्रत्येक एक पल, त्रिफला, छः पल, और इन सब के समान गूगल मिलाकर शहत के संग चाटने से संपूर्ण रोग दूर होजाते हैं | For Private And Personal Use Only स्वायंभुवाख्य गूगल | गुग्गुलुपंचपलं पालकांशा मागधिका त्रिफला च पृथक्स्यात् । त्वक् त्रुटिकयुतं मधुलीढं भगंदर गुल्मगतिघ्नम् ॥ ४० ॥
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy