________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्र. २७
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(८७९)
अर्थ -ललाट की बे मिली हुई अथवा | पटैः प्रभूतसर्पिष्टियित्वा सुखैस्ततः । ट्टी हुई अस्थि, तथा कनपटी, सिर, पीठ | कदंबोदुंबराश्वत्थसर्जार्जुनपलाशजैः॥
वंशोद्भवैर्वा पृथुभिस्तनुभिः सुनिवेशितैः। और स्तनों के मध्यवाली अस्थि असाध्य
सुलक्षणैः सुप्रतिस्तंभैवल्कलैः शकलैरपि। होती हैं।
कुशाव्हयैः समंबधं पट्टस्योपरि योजयेत् । दुास में वर्नन ।
। अर्थ-आंछन, उत्पीडन, उन्नमन, चर्म सम्यग्यमितमप्यस्थिदुयासा(निबंधनातू |
संक्षेप और बंधन इन सब स्थापनोपायों से संक्षोभादपि यद्च्छेद्विकियां तद्विवर्जयेत् ।
देह की चल और अचल सब संधियों को पादितो यच दुर्भातमस्थिसंधिरथापि वा।
अच्छी रीति से स्थापन करके बहुतसा धी अर्थ-टूटी हुई अस्थि अच्छी तरह से बांधने पर भी बुरी तरह लगाने से, वा
डाल देवे और सुख त्पादक कपडे की पट्टी बांधने से वा संक्षोमसे जो विकृतिको प्राप्त
ऊपर से लपेट देवै और इस कपड़े के होजाय, उसे त्याग देना चाहिये । जो हड्डी
ऊपर गूलर, पीपल, साल, अर्जुन, और
ढाक की छाल अथवा बांस की खपच्च, प्रथम से ही अच्छी तरह नहीं उत्पन्न होती
लगाकर समान रीति से बांध देवै । इन है, वह भी दुःसाध्य होती है।
छाल वा बांसकी खपच्चियों को छीलकर __ अन्य दुःसाध्य ।
चौडी, पतली और मुलायम करलेवे इस तरुणास्थीनिमुज्यंते भज्यंते नलकानि तु । कापालानि विभिधते स्फुटत्यन्यानि भूयसा
बंधन को कुश बंधन कहते हैं । अर्थ-तरुण अस्थि टेढी पडजाती हैं,
शिथिल और गाढबंधन ।
शिथिलेन हि बंधेन संधेः स्थैर्य न जायते: नलकास्थि टूट जाती हैं, कपाल की हड्डी
गाढेनातिरुजादाहपाकश्वयथुसंभवः। टुकडे टुकड़े होकर विदीर्ण होजाती हैं,
अर्थ-डीले बंधन से संधि स्थिर नहीं तथा अन्य हडियां फूट जाती हैं ।
रहती है और अत्यन्त कठोर बंधन से वेदना, भंग में चिकित्सा की रीति ।।
| दाह, पाक और सूजन उत्पन्न हो जाती है, भथावनतमुन्नम्यमुन्नतं चायपीडयेत् ११ ।
त् ११ | इस लिये ऐसा बंधन बांधे जो न ढीला हो मच्छे इतिक्षिप्तमधोगतंचोपरि वर्तयेत् ।
न कडा हो । . अर्थ-ट्टी हुई हड्डी की अवस्था देखकर झुकी हुई हड्डी को ऊंची नीची करदे,उंची
____ ऋतुविशेष में मोचनकाल । को नीची, अस्तव्यस्त को यथास्थान में
ज्यहाध्यहाइती घर्ष सप्ताहान्मोझयेद्धिमे
साधारणे तु पंचाहादू भगदोषवशेन था। लगा देवे।
___ अर्थ-गरम ऋतु में तीसरे दिन पट्टी मध्यम प्रकार के बंधनकी रीति ।
| खोल दे, जाडे में सातवें दिन और साधारण आच्छनोत्पीडनोन्नामचर्मसंक्षेपबंधनैः १२ संधीन्शरीरगान्सर्वान्चलानप्यचलानपि
| काल में अर्थात् शरत और बसन्तऋतुमें पांच इत्येतैः स्थापनोपायैः सम्यक् संस्थाप्य ।
"दिनके अंतर से वा भग्न की अवस्था के अनुनिश्चलम् १३ | सार पट्टी खोलदे ।
For Private And Personal Use Only