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(८६८)
अष्टांगहृदय ।
अ० २५
गामी हो तो स्नेहरहित पाडन द्रव्य द्वारा | धादि गणके द्रव्योंकी छालके काढ़े से धोना चारों ओर से उपपीडित करे। हित है। लेपविशेष ।
घावके शुद्ध करनेवाला लेप । शुष्यंत समुपेक्षेत प्रलेप पीडन प्रति। पटोलतिलयप्रवाहत्रिवृदंतीनिशाद्वयम् । न मुखे चैनमालिपेत् तथा दोषः प्रखिच्यते | निंबपत्राणि चालेपः सपटुव्रणशोधनः ॥
अर्थ-पीवको निकालने के निमित्त जो अर्थ-पर्वल, तिल, मुल इटी, निसोथ, लेप लगाया जाता है, उसको सूखने तक दंती, दोनों हलदी, नीम के पत्ते इनमें थोडा सूजन पर रहने दे, घावके मुखपर लेप न सा नमक डालकर लेप करनेसे व्रण शुद्ध लगाये क्योंकि उसके द्वारा राब निकलती होजाता है। रहती है।
घावके शोधन में बत्ती। .. कलायादिक प्रपीडन । ब्रणान् विशोधयेद्वा सूक्ष्मास्यान् कलाययवगोधूममाषमुद्गहरेणवः ।
संधिमर्मगान् । द्रव्यागांपिच्छ लानांचत्वामूलानिप्रपीडनम | कृतया त्रिवृताईतीलांगलीमधुसैंधवैः ४४
___ अर्थ-जिन घावों का मुख छोटा होताहै अर्थ-मटर, जौ, गेहूं, उरद, मूंग और
और जो संधि तथा मर्मतक पहुंच गये हैं हरेणु, तथा और भी पिच्छिल द्रव्यों की उनको निसीथ, दंती, कल्हारी, मधु और जड और छाल इनसे प्रपीडन अर्थ.त् गध सेंधेनमक की बत्ती द्वारा शुद्ध करे । का आकर्षण होता है।
वातजवणों में धूएन । अन्य प्रयोग । | वाताभिभूतान् सास्रावान् धूपये दुप्रवेदनान् सप्तसु क्षालनाघेपु सुरसारग्बधादिको। यवाज्यभूर्जमदनश्रीवेष्टकसुराहयैः ४५ भ्रशं दुष्टे व्रणे योज्यो मे हकुष्ठव्रणेषु च ॥ अर्थ-जिन घावों में वातकी अधिकता
अर्थ-क्षालन { धोना , लेप, घी,तेल, हो तथा स्राव और दर्द की भी अधिकता रसक्रिया, चूर्ण और वर्ति इन सातों में तथा तो जौ, घी, भोजपत्र, मैंनफल, सरलकाप्ट दुष्टत्रण और प्रमेह तथा कुष्ठके व्रणमें सुर- और देवद रू की धूप देना हितहै। सादि और आरग्वधादिगण के द्रव्य प्रयोग पित्तादिवग में कर्तव्य । में लाये जाते हैं।
निर्वापयेदूभृशं शीतः वित्तरक्तविषोल्बणान् व्रणके धोने में क्वाथ।
अर्थ-पिशरक्त और विजुष्ट घाबों को अथवा क्षालनं काथः पटोलीनिवपत्रजः । शीतक्रिया से निर्वापित करना चाहिये। अविशुद्ध विशुद्धे तु न्यग्रोधादित्वगुद्भवः।
गंभीरमण में उत्सादनादि । । अर्थ-जो घाव शुद्ध नहीं हुआ है उसके
| शुप्काल्पांसे गंभीरे व्रण उत्सादनं हितम्
न्यग्रोधपद्मशादिभ्यामश्यगंधावलानिलैः । धोने के लिये पर्वल और नीमके पत्तें। का
अद्यान्मांसादमांसानि विधिनोपहितानि च काढा हितहै । और शुद्ध हुए घाव में न्यग्रो- मांसं मांसादमांसेन वर्धते शुद्धचेतसः ।
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