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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८५६) अष्टांगहृदय । त्वचा घन और दोषानुरूप वर्ण विशेष हो- पलित विवर्ण और स्पर्श को न सहनेवाला जाती हैं, और दोष के अनुसार स्वचा का होता है। रंग होजाता है। सान्निपातिक खलित में असाध्य खलितादि । तीनों दोषों के लक्षण पाये जाते हैं । जो असाध्या सनिपातेन खलतिः पलितानि च खलित नख की कांतिके समान, अग्निदग्ध | अर्थ-सान्निपातिक खालत और पलित के सहश रोम रहित और दाहयुक्त होती है, रोग भसाध्य होते हैं । वह असाध्य होती है। | पलितादि में रसायन । पलित का कारण । शरीरपारणामात्थान्यपक्षत रलायनम् ॥ शोकश्रमक्रोधकृतः शरोिप्मा शिरोगतः। अथे-शरीर के परिणाम अर्थात् बुद्धाकेशान् सदोषः पचति पलितं संभवत्यतः | बस्था के कारण उत्पन्न हुए पलितरोग में - अर्थ-शोक, श्रम और क्रोधके कारण | रसायन क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिये। शरीर की ऊष्मा सिरमें पहुंचकर और दोषों | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीसे मिलकर संपूर्ण केशों को पका देती है। | कान्विताशं उत्तरस्थाने शिरोरोगविइसीसे पलितरोग की उत्पत्ति होती है । | ज्ञानीयोनाम त्रियोविंशोऽध्यायः । केशों के कुसमय सफेद होजाने को पलित कहते हैं। चतुर्विशोऽध्यायः। पलित के लक्षण । तदातास्फुटितं श्यावं खरं रूक्षं जलप्रभम् पित्तात्सदाहं पीताभ कफात् स्निग्धं अथाऽतः शिरोरोगप्रतिषेधं व्याख्यास्यामः विवृद्धिमत अर्थ-अब हम यहां से शिरोरोग प्रतिस्थलं सुशलं सर्वैस्तु विद्याध्यामिश्रलक्षणम् धनागक अध्यायकी व्याख्या करेंगे। अर्थ - वायुसे उत्पन्न पलित स्फुटित, वातजशिरोभिताप की चिकित्सा। श्याववर्ण, खर, रूप, और जल के समान | होता है । पित्तज पलित दाहयुक्त और | श शिरोऽभितापेऽगिलजे घातव्याधिविधि चरेत् । पीलापन लिये होता है । कफजपलित स्नि- अर्थ-यातज शिरोभिताप में वातव्याधि ग्ध, वृदिशील, स्थूल श्रार शुक्ल होता है। की चिकित्सा के समान क्रिया करनी त्रिदोष नपलित में तीनों दोषों के लक्षण चाहिये। होते हैं। अन्य उपाय । शिरोरोग पलित। घृताभ्यक्तशिरा रात्रौ पिवेदुष्णपयोनुपः ॥ शिरोरुजोद्भवं चान्यद्विवर्ण स्पर्शनासहम्। माषान् मुद्रान् कुलत्थाम्वा तद्वत्वादेत् - अर्थ-शिरकी वेदना से उत्पन्न हुआ घृतान्वितान् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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