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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८५२) अष्टांगहृदय। म. २३ मुखपाकनाशक प्रयोग। उक्तरोगों में संशोधन । "स्वरसः क्वधितोदाा धनीभूतः कायशिरसोविरेकोवमनं कपलनहाश्च कटु. सगैरिकः।। कतिक्ताः। आस्यस्थः समधुर्बक्रपाकनाडीव्रणापहः। प्रायः शस्तं तेषां कफरक्तहरं तथा कर्म । अर्थ-दारुहलदी के रसको अग्नि पर अर्थ-इन संपूर्ण रोगोंमें कायविरेचन, पकाने से गाढा हो जाने पर उसमें गेरु और शिरोधिरेचन, वमन, कटु और तिक्त द्रव्यों शहत मिलाकर मुखमें धारण करने से मुख- का कवल, तथा कफरक्तनाशक सपूर्ण उपाय पाक और नाडीव्रण दूर हो जाते हैं। विशेष रूपसे करने चाहिये । अन्य प्रयोग। मुखरोगों में पथ्य । पटोलनिवयष्टयाइववासाजात्यरिमेदसाम यवतृणधान्यंभक्तविदलैक्षारोषितैरपत्रेहाः खदिरस्य वरायाश्च पृथगेवं प्रकल्पना । यूषा भक्ष्याश्चहितायश्चान्यत्श्लेष्मनाशाय अर्थ-इन सब दांतके रोगोंमें जौ और ...अर्थ-पर्वल, नीमकी छाल, मुलहटी, तृण धान्यका अन्न, क्षारोषित मुंग आदिका अडूसा, चमेली, दुर्गेधित खैर और त्रिफला घृतरहित यूष तथा अन्य कफनाशक खाद्य इनकी भी उक्त रीतिसे अलग अलग कल्प पदार्थों का सेवन करना हित है । ना करनी चाहिये । मुखरोगके उपायमें शीघ्रता। दंतदृढीकरण गंडूष ! | प्राणानिलपथसंस्थाः श्वसितमपि निरुधते खदिरायोवरापार्थमदयंत्यहिमारकैः ।। प्रमादवतः। गंडूषोंऽबुशूतैर्धार्योदुर्बलद्विजशांतये १०७ / कंठामयाश्चिकित्सितमतो दूतं तेषु कुर्वीत __ अर्थ-खैर, अगर, त्रिफला, अर्जुन की अर्थ-प्राणवायुके मार्ग में स्थित हुए भयाछाल, मदयंती, अहिमारक इन सब द्रव्यों नक कंठरोग प्रमादी मनुष्य के श्वासको रोक का काढा करके गंडूष धारण करने से दु- लेते हैं, इसलिये इन रोगोंकी चिकित्सा में र्बल दांत दृढ हो जाते हैं। शीघ्रता करना परम आवश्यकीय है। मुखरोग में रक्तस्राव । इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटी. मुखदतमुलगलजाः प्रायो रोगाः कफान्न कान्वितायां उत्तरस्थान कंठरोग प. भूयिष्ठाः तिषेधो नाम द्वाविंशोऽध्यायः । तस्मातेषामलकदू रुधेिर विस्राव्येहुष्टम् । अर्थ-मुख, दांतकी जड़ और गले में त्रयोविंशोऽध्यायः होनेवाले रोग में प्रायः कफ और रक्तके प्रकोपसे उत्पन्न हुआ करते हैं। इसलिये अथाऽतः शिरोरोगविज्ञानं व्याख्यास्यामः इन सब रोगोंमें बार बार दुष्ट रक्त निका- अर्थ-अब हम यहां से शिरोरोग विज्ञाहना चाहिये। नीय नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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