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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. २० उत्तरस्थान भाषाठीकासमेत । (८२) ____अर्थ-त्रिकुटा, भरंड, वायविडंग, देव- । पित्तनाशक तीक्ष्ण नस्यादि का प्रयोग करना दारू, अतांस, कठ, गोंदी,वेगन का बीज, | चाहिये । निसोथ, सफेद सरसों, सडी मछली, अरनी पूतिनासा का उपाय । के फूल, पीलू, सहजने के फल, इन सब | कफपीनसवत्पूतिनासापीनसयोः क्रिया। द्रव्यों को इकट्ठा करके घोडे की लीदके अर्थ-पूति नासा और पूतिपीनस रोग रसमें घोडे और हाथी के सूत्रों में पीसकर | में कफपीनस की तरह चिकित्सा करना उसको रेशमी वस्त्र पर लीपकर बत्ती बनावै। | उचित है। इस बत्तीके Vएको मुख और नासिका द्वारा वमन प्रयोग। लाक्षाकरंजमरिचवेल्लहिंगुकणागुहैः॥ पान करे । अविमूत्रद्रुतैनस्य कारयेद्वमने कृने। . पुटपाक का उपाय । ___ अर्थ-लाख, कंजा, कालीमिरच, वाय. क्षवथौ पुटपाकाख्ये तणैः प्रधमनं हितम विडंग, हींग, पीपल और गुड इन सब अर्थ-पुटपाकनामक क्षवथुरोगमें तीक्ष्ण द्रव्यों को भेडके मूत्रमें सानकर इसके द्वारा द्रव्यों का प्रधमन करना चाहिये । वमन कराके नस्य देव । क्षवपुटनाशक प्रयोग। . अन्य प्रयोग। शुठी कुष्कणावेल्लद्राक्षाकल्ककपायवत। साधितं तेलमाज्य या नस्यं क्षयपुरप्रणुत् । शिप्रार्सिहीनिकुंभानां बीजैः सव्योषसैंधवैः। __ अर्थ-सोंठ, कूठ, पीपल, बायबिडंग, | सवेलसुरसस्तैलं नावनं परमं हितम् । और दाखं इनके कल्क और काढे के द्वारा । अर्थ-सहंजना, कटेरी, दंती की जड, घी और तेलको पकाकर नस्य देनेसे क्षवथु त्रिकुटा, सेंधानमक, वायविडंग और तुलसी पुटपाकरोग जाता रहता है। इनके साथ तेल पकाकर इस तेल का नस्य द्वारा प्रयोग करने से पतिनासा और पतिनासाशोष का उपाय । नासाशोषे बलातलं पानादौ भोजनं रसैः॥ पानसराग नष्ट हाजात है। पीनसरोग नष्ट होजाते हैं। निग्धोधूमस्तथास्पदानासानाहेऽप्यविधिः नवीन पूपरक्त का उपाय .. अर्थ-नासाशोषरोग में पान और नस्या- | पूयरत नवे कुर्याद ररुपानसपक्रियाम्। | अतिप्रवृद्ध माडीवर दि में बलातेल हितकारी है । इसमें मांसरस | अर्थ- नवीन पूयरक्तरोग में रक्तज पी. के साथ भोजन, स्निग्ध धूमपान, और नपान, भार नस के समान चिकित्सा करनी चाहिये । स्वेद हितकारी है । नासानाहरोग में भी | तथा अत्यन्त बढजाने पर नाडीव्रण के स. ऐसी ही चिकित्सा करना चाहिये । मान चिकित्सा करना उचित है। . नासापाकादि का उपाय । | अर्होर्बुद चिकित्सा । पाके दीप्तौ चपिच तीक्ष्णं नस्यादिसस्तो दग्धेष्योर्भुदेषुधा अर्थ-नासापाक भोरं चासादीप्तरोग में निकुंभकुंभासपूरथमनाहाकवणानि । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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