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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८२६) अष्टांगहृदय ।।. पकाया हुआ और गाढा गाढा नासिका _____नांसानाहे तु जायते । | का मल निरंतर निकलता रहता है। भवत्वामिष नासायाः श्लेष्मरुद्धेन वायुना ॥ दीप्ति के लक्षण । निःश्वासोश्वाससरोधात्स्रोतसीसंवृतेश्व रक्तेन मासादग्धन बाह्यांतः स्पर्शनासहा । . अर्थ-नासानाह रोग में नासिका में भवेद्धमोपमात्श्वासा सा दीप्तिदहतीव च भारापन होता है और कफके रुके हुए वायु अर्थ-नासिका में रक्त विदग्ध होकर द्वारा श्वास लिया जाता है और नासिकाके | नासिका के भीतर और बाहर अत्यन्त दोनों छिद्र श्वासके अवरोध से रुके हुएसे वेदना उत्पन्न कर देता है । निश्वास धुंए होजाते हैं। के सदृश निकलता है और नासिका में घ्राणपाक । पचेनासापुटे पित्तं त्यमांस दाहशूलवत् ॥ जलन पैदा होजाती है। यह रोग दीप्ति संज्ञक है। सघ्राणपाक: __ अर्थ-वाणपाकरोग में पित्त नासिका- पूतिनासा के लक्षण । पुट के त्वचा और मांस को पकाकर दाह | तालुमूले मलैर्दुष्टैमारुतो मुखनासिकात् । और शूल पैदा कर देता है। श्लेष्मा च पूतिर्निगच्छेत्पूतिनासंयदतितम् ___ अर्थ-ताल की जड में दोषों के दृषित . घ्राणस्राव रोग । होने से मुख और नासिका के द्वारा दुगंधित . सावस्तु तत्संज्ञः श्लप्मसंभवः। कफ और वायु निकलने लगता है । इसी अच्छो नळोपमोऽजनं विशेषानिशि जायते | - अर्थ--घ्राणस्राव रोग केवल कफसे को पूतिनासा रोग कहते हैं । पूयरक्त के लक्षण । उत्पन्न होता है । इसमें सदाही और विशेष निययादभिधाताद्वापूयासृङ्नासिकानवेत् करके रात्रि में मल के समान स्वच्छ स्राव | तत्पयरक्तमाख्यातं सिरोदाहरुजाकरम् २४ निरंतर होता रहता है। अर्थ-त्रिदोष के प्रकोप से अथवा चोट अपीनस रोग का लक्षण । लगने से नासिका से राध और रुधिर कफामवृद्धोनासायांरुध्या स्रोतांस्यपीनसम् निकलने लगता है। इसे पृयरक्त रोगकहते कुर्यात्सघुघुरं श्वासं पीमसाधिकवेदनम् ॥ । हैं। इससे मस्तक में दाह और वेदना होने अवेरिव स्रवत्यस्य प्रक्लिन्ना तेन नासिका। अजनं पिच्छलं पीतं पक्कं सिंघाणकं घनम् । लगता है। __ अर्थ-कफ बढकर नासिका के संपूर्ण पुटक लक्षण। स्रोतों को रोककर घुर्युर श्वासयुक्त और पित्तश्लेष्मावरुद्धोऽतर्नासायांशोषयेम्मरुत् कर्फ सशुष्कपुटतां प्राप्नोति पुटकं तु तत् । पीनस से अधिक एक प्रकार का रोग उत्पन्न ___ अर्थ-वायु पित्त और कफसे रुक कर कर देता है, जिसे भपीनस कहते हैं। नासिका के भीतर कफको सुखा देती है । इसमें रोगी की नासिका भेड को नाक की इससे वह कफ शुष्क पुटता को प्राप्त हो तरह झरती रहती है । तथा पिच्छिल,पीला | जाताहै । इसे पुटक रोग कहते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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