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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८२०) अष्टांगहृदय । अ० १८ अन्य तैल। हो और थोडा थोडा स्त्राव भी होता होतो फर्णमादे हितं तैलं सर्षपोत्थं च पूरणे। वमन कराना चाहिये । अर्थ- कानमें सरसों का तेल डालने से वर्जित रोगी। भी कर्णनाद रोग जाता रहता है। बाधिर्य वर्जयेद्वालवृद्धयोश्चिरजं च यत् । ___ अन्य प्रयोग। अर्थ-बालक और वृद्धका बहरापन तथा शुष्कधूलकखंडानां क्षारो हिंगु महौषधम् ॥ बहुत कालका बहरापन असाध्य होते हैं। शतपुष्पाषचाकुष्ठदारुशिप्ररसांजनम् । प्रतिनाह में कर्ण शोधन । सौवर्चलयवक्षारस्वर्जिकौद्भिदसैंधवम् २७ भूर्जग्रंथिबिडं मुस्तामधुसूक्तं चतुर्गुणम् । प्रतिमाहे परिलेच नेहस्वेर्षिशोधयेत् । मातुलुंगरसस्तद्वत् कदलीस्वरश्च तैः २८ कर्णशोधनकेनानु कर्णौ सैलस्य पूरयेत् ३२ पक्कं तैलं जयत्याशु सुकृच्छानपि पूरणात् । ससूक्तसैंधवमधोर्मातुलंगरसस्य वा। कंड्रंक्लेदं च बाधिर्य पूतिकर्ण च रुक्काम शोधनादू रूक्षतोत्पत्तौ घृतमंडस्य पूरणम् क्षारतेलमिदं श्रेष्ठं मुखदंतामयेषु च।। अर्थ- प्रतिनाह रोगमें स्नेहन और स्वंद___ अर्थ-सूखी हुई मूली के टुकडों का | न द्वारा कानके क्लेद को नरमकरके कान क्षार, हाँग, सोंठ, सोंफ, वच, कूठ, देव- को शुद्ध करने वाली औषधसे कानके क्लेद दारू, सहजना, रसौत, संचलनमक, जबा- को दूर करदेवे | फिर कांजी और सेंधेनमक खार, सज्जीखार, उद्भिद नमक, सेंधानमक से युक्त शहत बा विजौरे का रस कान में भोजपत्र, पीपलामूल, विडनमक, मोथा, ये | भरदे । यदि शोधन से कानमें रूखापन हो सव समान भाग ले । तथा शहत, विजौरे | जाय तो कानमें घृतमंडका प्रयोग करना का रस, कांजी, केले का रस, प्रत्येक चार चाहिये । भाग, तेल एक भाग । इनको पाकोक्त रीति __ कटष्ण लेपन । से पकावै । इस तेल द्वारा कानको भरने क्रमोऽयं मलपूर्णेऽपि कर्णेकंड्यांकफापहम् से, खुजली, क्लेद, बधिरता, पूतिकर्ण, वेद नस्यादितद्वच्छोफेऽपिकटूष्णैश्चात्र लेपनम् ना और क्रिमिरोग जाता रहता है । मुख ___ अर्थ-कानमें मल भरा होने परभी यही और दांत के रोगोंमें भी यह क्षार तैल प्रतिनाहोक्त औषध करनी चाहिये । कर्ण श्रेष्ट औषध है। कंडू रोगमें कफनाशक नस्यादि की व्यवस्था कर्णसुप्ति की चिकिस्सा। । करना उचित है । कर्णशोथमें भी इसी वि. अथसुप्ताविव स्यातां कर्णौ रक्तं हरेत्ततः । धिका अवलंवन करना उचित है । इसमें अर्थ-जव कानों में सुन्नता होजाय तब । कटु और उष्ण लेप करना हितकारी है। रक्तमोक्षण करना चाहिये। पूतिकर्णादि का उपाय ।। अन्य उपाय ॥ | कर्णस्रायोदितं कुर्यात्पूतिकृमिककर्णयोः । सशोफलेदयोर्मेदसतेर्वमनमाचरेत् । । पूरणं कटुतैलेन विशेषात् कमिकर्णके ३५ अर्थ-कानों में यदि सूजन और केद । अर्थ-पूतिकर्ण और ऋमिकर्ण में कर्म For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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