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(८१४)
अष्टांगहृदय ।
अ०१७
। कानमें दर्दका हेतु । और प्रांबा में भारापन, मंदता, वेदना, प्रतिश्यायजलक्रीडाकर्णकंडूयनैर्मरुत् । खुजली, सूजन, उष्ण पदार्थकी इच्छा, प. मिथ्यायोगेन शब्दस्य कुपितोन्यैश्च कोपनैः
कने पर सफेद और गाढा स्राव होना, ये प्राप्य श्रोत्रशिराः कुर्याच्छूळस्रोतसिवेगवत्
लक्षण उपस्थित होते हैं । अर्धावभेदकं स्तमं शिशिरानभिनंदनम् ॥ चिराश्च पाकं पक्वं तु लसीकामल्पशः स्रवेत्
रक्तज कर्णशूल । श्रोत्रं शून्यमकस्माचस्यात्संचारावचारवत् ।
करोति श्रवणे शूलमभिघातादि दूषितम् ॥ - अर्थ-प्रतिश्याय, जलविहार, कानखु.
रक्तं पित्तसमानार्ति किंचिद्वाधिकलक्षणम् । जाना, शब्दका मिथ्यायोग ( भीषण और
____अर्थ-चोट आदि लगने के कारण अयोग्य वातका सुनना ) इन सब कारणों
दूषित हुआ रक्त कानमें शूल उत्पन्न कर से, तथा अन्य संपूर्ण कोप करनेवाले हेतु.
देता है । इसमें पित्तके समान ही वा कुछ
| अधिक लक्षण दिखाई देते हैं। . ओं से वायु प्रकुपित होकर कानोंकी सिरा
सानिपातिक कर्णशूल । ओं में पहुंच कर कानोंके छिद्रों में प्रवल
शूलं समुदितैर्दोषैः सशोफज्यरतीब्ररुक् ॥ शूल, अ‘वभेदक, कानोंमें स्तब्धता, ठंडे
| पर्यायादुष्णशीतेच्छं जायते नतिजाड्यवत् पदार्थों से द्वेष, देर में पाक, पकने पर धीरे पक्कं सितासितारक्तघमपूयप्रवाहि च ॥ धीरे लसीका का स्राब, अकस्मात् कानों में अर्थ-सान्निपातिक दोषसे जो कानों में सुन्नता, तथा संचरण और विचरण युक्तता शूल होता है, उसमें सूजन, तीबज्वर, वेदना ये सव लक्षण उपस्थित होते हैं । कभी गरम और कभी ठंड की इच्छा, कान पित्त से दाहादि ।
में जडता, पकने पर सफेद काला वा लाल शूलं पित्तात्सदाहोषाशीतेच्छाश्वयधुंज्वरम् गाढा स्त्राव, ये सब लक्षण उपस्थित होते माशु पाकं प्रपक्वं च सपीतलसिकास्नुति ॥ कर्णनाद के लक्षण ।। सा लसीका स्पृशेद्यद्यत्तत्तत्पाकमुपैति च। शब्दवाहिसिरासंस्थे शृणोति पवने मुहुः ।
अर्थ-पित्तज कर्णरोगमें दाह और शूल नादानकस्माद्विविधानकर्णनादं वदति तम् ॥ होता है, तथा संताप, शीतसेवनकी इच्छा, अर्थ-वायुके शब्दवाही सिरा में स्थित सजन, ज्वर, शीघ्र पकाव, पकनेंपर पीले होनेपर रोगी बिना कारण ही अनेक प्रकार रंग की लसीका का स्राव, उस उस स्थान के शब्दों को बार बार सुनने लगता है । का पाक जहां यह लसीका लगै । ये लक्ष- | इसीको कर्णनाद रोग कहते हैं । ण होते हैं।
वधिरता का कारण । कफज कर्णरोग । श्लेष्मगानुगतोवायु दो वा समुपेक्षितः। कफाच्छिरोहनुग्रीवागौरवं मंदता रुजः॥ | उच्चैः कृच्छ्रात्श्रुति पुर्यादधिरत्वं क्रमेण च ॥ कंड्रश्वयथुरुष्णेच्छा पाकात्श्वेतघना स्रतिः अर्थ-वायुके कफानुगत होनेपर अथवा . अर्थ-कफज कर्णरोग में सिर, हनु | कर्णनाद की चिकित्सा में उपेक्षा करने से
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