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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८१२) अष्टांगहृदय । संक्षुद्य साधयेत्वाथे पूते तत्र रसक्रिया ५० ताने दशाहं तत् पैल्लयपश्मशातजिदंजनम् अंजनं पिल्लभैषज्यं एक्ष्मणां च प्ररोहणम् । अर्थ-पुष्प हीराकसीसके चूर्णको तुलसी ___ अर्थ--कंजा के वीज, तुलसी, चमेली के रसकी भावना देकर दस दिनतक तांबे की कली, इनको कूट कर जल में औटाव के पात्र में रक्खै । इसका अंजन लगाने से जब काथ होजावै तब छानकर इसके द्वारा पैल और पक्ष्मशात जाता रहता है । रसक्रिया अंजन का प्रयोग करै । यह पित्त पिल्लमें रोमवईकचूर्ण । रोग की प्रधान औषध है, इस औषध से अलं च सौवीरकमंजन च पक्ष्म उगने लग जाते हैं। ताभ्यां समं ताम्ररजश्च सूक्ष्मम् । - अन्य अंजन । पिल्लेषु रोमाणि निषेवितोसो रसांजनं सरसो रीतिपुष्पं मनःशिला। चूर्ण करोत्यकशलाकयापि ॥ ५६ ॥ समुद्रफेनं लवणं गैरिकं मरिचानि च । अर्थ-हरिताल एक भाग, सुर्मा एक भंजन मधुना पिष्टं क्लेदकंडूघ्नमुत्तमम् ५२ भाग, तांवा दो भाग, इनको वारीक पीस. . अर्थ- रसौत, राल, पुष्पांजन, मनसिल कर एक शलाई द्वारा नेत्रमें लगाने से पिल्लगेग समुद्रफेन, सेंधानमक, गेरूमट्टी और काली में पक्षम उत्पन्न होजाते हैं । मिरच इन सब द्रव्यों को शहत में पीस पिल्लरोपण काजल । कर अंजन लगाने से क्लेद और खुजली जाते लाक्षानिर्गुडी,गदावीरसेन रहते हैं। श्रेष्ठ कापसंभावितं सप्तकृत्वः। अन्य प्रयोग। दीपः प्रज्याल्यः सर्पिषा तत्समुत्था अभयारसपिष्टं वा तगरं पिल्लनाशनम्। श्रेष्ठा पिल्लानां रोपणार्थ मषी सा५७ भावित बस्तमूत्रेण सस्नेहं देवदारु च ५३ / __ अर्थ-लाख, निगुडी, भांगरा और दारू___ अर्थ हरीतकी के काढे में तगरको पी- हलदी के काढे में उत्तमरुई को भावित सकर अंजन लगाने से पिल्लजाता रहताहै। करके उसकी बत्ती बनाकर घीका दीपक तथा स्नेहयुक्त देवदारू को बकरी के मूत्रकी जलावै, और काजल पाडे । इस काजल के भावना देकर अंजन लगाने से पिल्लरोग लगाने से पिल्ल रोपित होजाता है । जाता रहता है। अन्य कर्तव्यादि। पिल्लशुक्रनाशक वति । । | वर्मावलेखं बहुशस्तद्वच्छोणितमोक्षणम् । सैंधवत्रिफलाकृष्णाकटुकाशंखनामयः।। पुनः पुमविरेकं च नित्यमाश्चोतनांजनम् । सताम्ररजसो वर्तिः पिल्लशुक्रकनाशिनी। नावनं धूमपानं च पिल्लरोगातुरो भजेत् । ___ अर्थ--सेंधानमक,त्रिफला,पीपल,कुटकी, पूयालसे त्वशांतताहः सूक्ष्मशलाकया ५९ शंखनाभि और ताम्रचूर्ण इन सब द्रव्यों की । अर्थ-पिल्लरोगी को बार बार बमलेखन, वर्ति पिल्ल और शुक्ररोग को दूर करती है। रक्तमोक्षण,विरेचन,आश्चोतन, अंजन, नस्य ___अन्य प्रयोग। और धूमपान कराना चाहिये । यदि इनसे पुष्पकासीसचूर्णो वा सुरसारसभाषितः ।। पूयालस शांत न हो तो एक पतली सलाई For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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