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(८०८)
अष्टांगहृदप ।
म. १६
___ अर्थ-सफेद लोध और मुलहटी को घी । किन्तु दाह होने पर दूध और घी मिलाकर में भूनकर महीन पासले, इसको पोटली में | शीतल लेप करना चाहिये । बांधकर स्त्री के दूध मलकर इस दूधको तिमिरादि में ययायोग्य चिकित्सा । मेत्रोंमें निचौडे। इससे पित्तरक्तज और अभि. तिमिरप्रतिषेधं च वीक्ष्य युंज्याद्यथायथम् । घातज अभिष्यन्द नष्ट हो जाता है ।
अयमेव विधिः सर्वो मंथादिष्वपि शस्यते - कफाभिष्यंद की औषध ।।
अर्थ-तिमिररोग को दूर करने के
निमित्त दोषादि का विवार करके चिकित्सा नागरत्रिफलानिंबवासारोधरसः कफे। कोष्णमाश्चोतनं
करनी चाहिये । मंथादि रोगों में उक्त संपूर्ण ___ अर्थ-कान अभिष्यन्दमें सोंठ, त्रिफला विधि हितकारक हैं। नीम, अडूमा, और लोध इनके काढेका ईष
भ्रवादि दाह। दुष्ण अवस्था में आश्चोतन करे। अशांती सर्वथा मंथे भ्रवोरुपरि दाहयेत् । त्रिदोषज अभिष्यंद में कर्तव्य। । अर्थ-उक्त उपार्यों के करने पर भी
मित्रैर्भेषजैः सान्निपातिके। यदि मंथरोग की शांति न हो तो भकुटियों अर्थ-सान्नितिक अभिष्यंदमें पात- | के ऊपर दाह करना चाहिये । जादि अभिष्यंदों में कही हुई सब प्रकार की वातादिरोगनाशिंनी वर्ति । मिली हुई चिकित्सा करनी चाहिये । रूप्यं रूक्षेण गोदना लिंपेन्नीलत्वमागते । ___अन्य प्रयोग ।
शुष्क तुमस्तुना पर्तिर्वाताख्यामयनाशिनी सर्पिःपुरागं पवने पित्ते शर्करयान्वितम् ।
। अर्थ-चांदी के पत्रपर नवनीत निकाळे व्योषसिद्धं कफे पीत्वा यवक्षारावर्णितम हुए गौके दही का लेप करे, जब यह नीला स्रावयेगुधिरं भूयस्ततः स्निग्धं विरेचयेत्। होजाय और सूखजाय तब उस दही की
अर्थ-वात अभिष्यंदमें पुगना घृत और बत्ती बनाकर प्रयोग करे इससे वातसंबंधी पित्तनमें शर्करायुक्त घृत हितकारी है । नेत्ररोग जाते रहते हैं । कफन अभिष्यंद में त्रिकुटा के साथ घी को पित्तरक्तनाशिनी वत्ती । पकाकर उसमें जवाखार मिलाकर उस घी सुमनः कोरका शंखत्रिफला मधुकं बला। को पान कराके रक्तमोक्षण करे । पीछे स्निग्ध पित्तरक्तापहा वर्तिः पिष्टा दिव्येन वारिणा विरेचन का प्रयोग करे ।
___ अर्थ-चमेली के फूल की कली, शंख, . . लेपादि प्रयोग ।
त्रिफला, मुलहटी और खरैटी इनको वर्षा आनूपवेसवारण शिरोवदनलेपनम् १९ के जल में पीसकर बत्ती बनाकर प्रयोग उष्णेन शूले दाहे तु पयः सपियुतैहिमैः ।। करने से पित्तरक्त ज नेत्ररोग जाते रहते हैं । ___ अर्थ-अभिष्यंदरोग में शूल के समान
। कफाक्षिरोगनाशिनी वर्ती । वेदना होनेपर आनूप मांसके वेसवार को मंच त्रिफला ब्योषं शंखनाभिः समुद्रजः। कुछ गरम करके सिर और मुखपर लेपकरे। फेनः शैलेयकं सों वर्तिः श्लेष्माक्षिरोगनुस्
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