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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषायीकासमेत । (८०५) - पक्कोदुंबरसंकाशं आयते शुक्लमंडलम् ॥ | अश्रुपूर्ण और धुंधलापन पैदा करदेता है । अश्रष्णशीतविशदापच्छलाच्छयनं मुहुः। यह अम्लोषित के लक्षण हैं। अर्थ--सशोफनामक नेत्ररोग में सूजन, सर्वनेत्ररोगोंकीसंख्या । वेदनाकी अधिकता, दाह और ठीवनादि इत्युक्ता गदाः षोडश सर्वगाः। उपद्रव उपस्थित होते हैं, आंखों का श्वेत- अर्थ-इस प्रकार से सर्वाक्षिगत रोग मंडल पके हुए गूलकर के समान हो जाता सोलह प्रकार के होते हैं । है आंसू कभी गरम,कभी ठंडे,कभी विशद, असाध्यरोग । कभी पिच्छिल, कभी पतले और कभी गाढे हताधिमंथमेतेषु साक्षिपाकात्ययं त्यजेत् ॥ निकलते हैं । यह रोग तीनों दोष तथा रक्त । अर्थ-इन सब रोगों में से हताधिमंथ द्वारा उत्पन्न होता है । और अक्षिपाकात्यय ये दोनों रोग त्याज्यहैं । ___ अक्षिपाकात्ययरोग। दृष्टिनाशनमें कालपरिमाण । अल्पशोफेऽल्पशोफस्तुपाकोन्यैर्लक्षणैस्तथा | वातोद्भतः पंचरात्रेण दृष्टि भाक्षिपाकात्यये शोफा संरंभः कलुषाधता। सप्ताहेन लप्मजातोऽधिमंधः। कफोपदिग्धमसितं सितं प्रक्लेदरागवत्॥ रक्तोत्पन्नो हंति तदधिरावान् दाहो दर्शनसंरोधो वेदनाश्चानवस्थिताः। मिथ्याचारात् पैत्तिकः सद्य एव ॥२४॥ ___ अर्थ-अल्प शोफरोग में सूजन कम अर्थ-मिथ्या आहार विहारादि से वातज होती है, अक्षिपाकनामक रोग में शुष्काक्षि अधिमंथ पांच दिनमें, कफज अधिमंथ पाक के संपूर्ण लक्षण उपस्थित होते हैं। सात दिनमें, रक्तज अधिमथ तीन दिन इनके सिवाय अक्षिपाकात्ययरोग में सूजन, । में और पैतिक अधिमंथ में तत्काल दृष्टि • संरंथ, आंनुओं में कलुषता, कालेमंडल में | का नाश होजाता है । कफी लिहसावट, सफेदमंडल में गीलापन इतिश्री अष्टांगहृदयसहितायां भाषाटीऔर ललाई, दाह, दृष्टिका संरोध, वेदना | कान्वितायां उत्तरस्थाने सर्वाक्षिरोगऔर उद्विग्नता ये लक्षण होते हैं । विज्ञानीयःपंचदशोऽध्यायः॥ - अम्लोषित के लक्षण । अन्नसारोऽम्लतां नीतःपित्तरक्तोल्बणैर्मलैः॥ शिराभित्रमारूढः करोति श्यावलोहितम् । षोडशोऽध्यायः । सशोफदाहपाका भृशं चाबिलदर्शनम् ॥ अम्लोषितोऽयम् nok ___ अर्थ-पित्त और रक्त की अधिकतावाले अथाऽतःसर्वाक्षिरोगप्रतिषेधंदोषों के कारण अन्नका सारभाग खट्टा होकर व्याख्यास्यामः। शिराओं में होता हुआ नेत्रको श्यावलोहित । अर्थ-अब हम यहाँसे सर्वाक्षिरोग प्रति. वर्ण करदेता है । तथा सूजन, दाह, पाक षेधनामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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