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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८) अष्टांगहृदय । से रक्त निकारना चाहिये तथा नीलोत्पल, । करंजवीजं लशुनो व्रणसादि च भेषजम् । काकोली, दाख. मुलहटी और बिदारीकंद सत्रणावगगंभीरत्वस्थशुक्रघ्नमंजनम् । . अर्थ-मोती आदि सव रत्न, गजादि इनके साथ बकरी का दूध वा जल औटाकर चीनी मिलाकर परिषेक करे । लालई, आं | पशुओं के दांत, बकरी आदि के सींग, सू और दर्द की शांति होनेपर लेखनसंज्ञक गेरू आदि धातु, त्रिकुटा, छोटी इलायची, अंजन का प्रयोग करना चाहिये । कंजाके बीज, लहसन, तथा स्वर्णक्षीरी क्षत शुक्रनाशक बत्ती। | आदि क्षतनिवारक औषध इनका अंजन वर्तयो जातिमुकुललाक्षागरिकचंदनैः॥ व्रणसहित, व्रणरहित, गहरा त्वचावाला प्रसादयंतिपित्तास्र नतिच क्षतशुक्रकम् । शुक्र इन सबका नाश कर देता है । अर्थ-चमेली की कली, लाख, गेरू निम्नशुक्रोन्नमन । और चंदन इनको पीसकर बत्ती बना लेवे निम्नमुन्नमयेत्स्नेहपाननस्यरसांजनैः। ३७ इस बत्ती का प्रयोग करने से पित्तरक्त और | सरुजं नीरुजं तृप्तिपुटपाकन शुक्रकम् । क्षतशुक्र नष्ट होजाता है। अर्थ-स्नेहपान नस्य और रसांजनद्वारी ___ दांतों की बत्ती । भीतर को नवे हुए शुक्र को ऊंचा करना दतैर्दतिवराहोष्टगवाश्याजखरोद्भवैः ॥३३॥ चाहिये । वेदना युक्त और वेदनारहित शुक्र सशंखमौक्तिकांभोधिफेनैमरिचपादिकैः। को तर्पण और पटपाकदारा ऊंचा करे । क्षतशुक्रमपि व्यापि दंतवर्तिनिवर्तयेत् ॥ • अर्थ-हाथी, शूकर, ऊंट, गौ, घोडा, शुद्ध शुक्र में कर्तव्य । शुद्धशुक्रे निशायष्टीसारिवाशावरांभसा ३८ बकरी और गधा इनके दांत, तथा शंख, सेचनं रोध्रपोटल्या कोष्णांभोमग्नयाऽथवा मोती, समुद्रफेन, चौथाई काली मिरच, । ____अर्थ- शुद्ध शुक्ररोग में हलदी, मुलहटी इनकी बनाई हुई दत्तवार्त व्यापी क्षतशुक्न | अनंतमूल, और सावरलोध इनके काढे से को भी निवारण कर देती है। अथवा लोध का चूरा कर पोटली में बांध सर्वशक्रनाशक वति। गरम जल में भिगोकर आंख में सेचन तिमालपत्रं गोइंतशंखफेनोऽस्थि गार्दभम् । करे। तानं च वर्तिम॒त्रेण सर्वशुक्रकनाशिनी ३५ शुक्रनाशक गोली , - अर्थ-तमालपत्र, गोवंत, शंख, समुद्र- वृहतीमुलयष्टयाहताम्रसैंधवनागरैः ३९ फेन, गधे की हड्डी, और तावा इन सब धात्रीफलांबुना पिष्टैपितं ताम्रभाजनम् । द्रव्यों को गोमूत्र में पीसकर गोली बनाकर | यवाज्यामलकीपहुशो धूपयेत्ततः ४० नेत्रों में लगावे, इस से सब प्रकार के शुक्र | तत्र कुर्वीत गुटिकास्ता जलक्षौद्रपेषिताः । तत्र जाते रहते हैं। महानाला इति ख्याताः शुद्धशुक्रहराः परम् अन्य अंजन। __ अर्थ-कटेरी की जड, मुलहटी, तांबा रिल्लनिता शृगाणि धातवस्म्यूषणं त्रुटिः।। सेंधा नमक, सोंठ, इन सब द्रव्यों को ओ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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