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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७८) अष्टांगहृदय । अ० ११ रसौत इनको शहत के साथ पीसकर लगाएँ | कटाक्ष की ओर दृष्टि करलेवै । ऐसा होने अथवा शंख, वा समुद्रफेन को शर्कग के से कनीनक से अर्म बढ जायगा । जिस साथ मिलाकर आंखों में लगावै । जगह मांस में सलवट पडे उसी जगह __अर्मकी चिकित्सा । बडिशयंत्र द्वारा पकडकर मुचुडी, शूची, भर्मोक्तं पंचधा तत्तु तनु धूमाविलं च यत् । वा सूत्रद्वारा मोचन करै । तत्पश्चात् उस रक्तंदधिनिभं यच्च शुक्रवत्तस्य भेषजम् ॥ छूटे हुए अर्मको चतुर्भागावशिष्ट करके मंड. अर्थ-अर्म पांच प्रकार के कहे गये हैं। लाग्र शस्त्रद्वारा ऐसी रीति से छेदन करे इनमें से जो पतला, धूऐ की तरह गदला, जिससे कनीनक में आंसू बहानेवाली धमनी लाल और दही के सदृश होता है उसकी में किसी प्रकार की चोट न पहुंचे, क्योंकि चिकित्सा फुली की चिकित्सा के समान कनीनक के वेधसे अश्रनाडी नेत्रमें प्रवृत करनी चाहिये । होजाती है । इसलिये अपांग देशमें दृष्टि अर्ममेंशस्त्र चिकित्सा। डालने के समय जब अर्म कनानक से बढे उत्तानस्येतरत् स्त्रिनं ससिंधूत्थेनचांजितं । तबही छेदन करना चाहिये । रेसन बीजपूरस्यनिमील्याक्षिविमर्दयेत् १४ छेदन की गति । इत्थं संरोषिताक्षस्य प्रचलेऽर्माधिमांसके थतस्य निश्चलं मूनि वमनोश्च विशेषतः सम्यक् छिन्नं मधुव्योषसैंधवप्रतिसारतम् अपांगमीक्षमाणस्यवृद्धर्मणिकनीनकातू । उष्णेन सर्पिषा सिक्तमभ्यक्तं मधुसर्पिषा पली स्याद्यत्र तत्राम बडिशेनावलंबितम् । बधीयात्सेचयेन्मुक्त्वा तृतीयादिदिनेषु च । मात्यायतं मुचुंडया वासूच्यासूत्रेण वा ततः | करंजवीजसिद्धन क्षीरेण क्वथितस्तथा ॥ खमंताम्मंडलाओण मोचयेदथ माक्षिकम्१७ | सक्षौद्रेडैिनिशारोध्रपटोलीयष्टिकिंशुकैः । कनीनकमुपानीय चतुर्भागावशेषितम् । कुरंटमुकुलोपेतर्मुचेदेवाहि सप्तमे ॥२२॥ छिद्यात्कनीनके रक्षेद्वाहिनीश्चाश्रुवाहिनीः। ____ अर्थ-अर्मके अच्छी तरह छिन्न होनेपर कनिकव्यधादश्रनाडी चाक्षिण प्रवर्तते । । तथा शहत, त्रिकुटा और सेंधेनमक से वृद्धेमणितथाऽपांगात्पश्यतोऽस्यकनीनकात् प्रतिसारित होने पर गरम घी का परिषेक ___ अर्थ-रोगी को चित्त लिटाकर उसकी करके तथा घी चुपडके बांध देना चाहिये। बाई वा दाहिनी किसी एक आंखको स्वेदित तीसरे दिन पट्टी खोलकर कंजे के बीज करके तथा सेंधानमक और बिजौरे का रस डालकर औटाये हुए दूध से तथा हलदी, आजकर मीड डाले । रोगी को उचित है दारुहलदी, लोध, पर्वल, मुलहटी, केसू भौर करंटाकी कली के काढ़े में शहत मि कि मीडने के समय आंखों को बंद करले।। ऐसा करने से नेत्रके क्षुभित होने के कारण लाकर परिषेक करे । फिर सातवें दिन पट्टी अर्मका मांस चलायमान होगा, उस समय को खोल देवै । छेदनानंतर बंधनादि । मस्तक को और विशेष करके वर्म को | सम्यक छिन भवेत्स्वास्थ्यस्थिर भाग में रखना चाहिये तथा रोगी । हीनातिच्छेद जान्गदाद। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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