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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www. kobatirth.org (७६२) अष्टांगहृदय । अ. ७ - . अर्थ-जीवनीयगणोक्त प्रत्येक द्रव्य एक । है तथा कुत्ता, शृगाल, बिल्ली और सिंह पल लेकर कल्क बनालेवे, इस में एक द्रोण का पित्ता भी तद्वत् गुणकारी है । दूध, एक प्रस्थ घी मिलाकर पका लेवै ।। अन्य तेल प्रयोग । यह प्रयोग अपस्मार को दूर करनेवालाहै। गोधानकुलनागानां वृषभदंगवामपि ॥ बातपित्तज अपस्मार का उपाय । | पित्तेषु साधित तैलं नस्येऽभ्यंगे च शस्यते । ___ अर्थ-गोधा, न्यौला, सर्प, बैल, रीछ कसे क्षीरेक्षुरसयोः काश्मयेऽष्टगुणे रसे ॥ | कार्षिकैर्जीवनायैश्च सर्पिःप्रस्थंविपाचयेत् । , और गौ इनके पित्तों में सिद्ध किया हुआ वातपित्तोद्भवंक्षिप्रमपस्मारं निहंति तत् ॥ तेल नस्य अभ्यंग द्वारा श्रेष्ठ होता है। अर्थ-दूध और ईख का रस एक आ अन्य प्रयोग। ढक, खंभारी का रस आठ प्रस्थ, जीवनीय | त्रिफलाव्योषपीतदुयवक्षारफणिजकैः । श्यामापामार्गकारजवीजैस्तैलं विपाचितम् । गणोक्त द्रव्य प्रत्येक एक कर्ष, धी एक प्रस्थ । वस्तमूत्र हितं नस्यं चूर्ण वाध्मापयद्भिषक् ॥ इनको पाक की विधि से पकावै । यह वात अर्थ-चौगुने बकरी के मूत्र में त्रिफला पित्त से उत्पन्न हुए अपस्मार रोग को शीघ्र त्रिकुटा, सरलकाष्ठ, जवाखार, तुलसी, श्याही नष्ट कर देता है। मालता, ओंगा, और कंजा के बीज इनके अन्य प्रयोग। कल्क के साथ पकाया हुआ तेल नस्य द्वारा तद्वत्काशविदारीक्षुकुशक्काथशृतं पयः।। प्रयोग करे अथवा इन्हीं त्रिफलादि के चूर्ण __ अर्थ-कांस, विदारीकंद, ईख और कुशा | का नाक में प्रधमन करे । इनके कार्ड के साथ औटाये हुए दूध के धूमप्रयोग। सेवन से उक्त फलसिद्धि होती है । | नकुलोलूकमार्जारगृध्रकीटाहिकाकजैः । अन्य प्रयोग । तुडैः पक्षैः पुरीषैश्च धूममस्य प्रयोजयेत् ॥ कूष्मांडस्वरसे सर्पिरष्टादशगुणे शृतम् ॥ अर्थ-नकुल, उलूक, बिल्ली, गिद्ध, यष्टीकल्कमपस्मारहरं धीवास्वरप्रदम् ।। कीट, सर्प और कौआ इनकी चौंच, पंख । अथे-घी से अठारह गुना कोयले का और बीटका धूम प्रयोग करनेसे अपस्मार रस मिलाकर घी पकावै और इसमें मुल- | रोग दूर होता है । हटी का कल्क डालदे । इससे अपस्मार लशुनादि तैल । रोग जाता रहता है । यह बुद्धि, वाणी शीलयेत्तैललशुनं पयसा वा शतावरीम् । और स्वर का बढाने वाला है। ब्राह्मीरसं कुष्ठरसं वां वा मधुसंयुताम् ॥ नस्य का प्रयोग। अर्थ-तिलके तेल के साथ ल्हसन, कपिलानां गवां पित्तं नावनं परमं हितम ॥ अथवा दूधके साथ सितावर अथवा ब्राह्मी श्वशृगालावडालानां सिंहादीनांच पूजितम् का रस घा कृठका रस अथवा शहत मिला अर्थ-कपिलवर्ण गी का पित्ता नस्य । कर बचका प्रयोग करनेसे अपस्मार गेग द्वारा प्रयोग किये जाने पर परम हितकारी | जाता रहताहै । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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