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॥ श्रीहरिम्वन्दे ॥ श्रीवृन्दावनविहारिणेनमः ॥ उत्तरस्थानम् ॥
प्रथमोऽध्यायः ।
से पैदा होता है । तू आत्मा से उत्पन्न पुत्र मथाऽतो बालोपचरणीयमध्यायम् नामधारी है, तू सौ वर्ष तक जी, तू शतायु
__व्याख्यास्यामः । हो और सौ वर्ष तक की दीर्घ आयु को शति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः॥
प्राप्त कर, नक्षत्र, दिशा, रात्रि और दिन अर्थ-तदनंतर भगवान आत्रेयादि म
तेरी रक्षा करें। हर्षि कहने लगे कि अब हम यहांसे बालो
स्वस्थीभूत बालक के कर्म। पचरणीय नामक अध्याय की व्याख्या
स्वस्थीभूतस्य नाभि च सुत्रेण चतुरंगुलात् करेंगे।
बद्धवोर्ध्व वर्धयित्वा च ग्रीवायामवसंजयेत् __ जनाते ही बालक का शोधन । नाभि च कुष्टतैलेन सेचयेत्सापयेदनु। "जातमात्रं विशोध्योल्पाद्वलं सैंधवसर्पिषा क्षीरिवृक्षकषायेण सर्वगंधोदकेन वा ॥ ६ ॥ प्रसूतिक्लेशितंचानुबलातैलेन सेचयेत् ॥ कोष्णेन तप्तरजततपनीयनिमजनैः। अश्मनोर्वादनं चास्य कर्णमूले समाचरेत् ।। । अर्थ-बालक को आश्वासित करके अथास्य दक्षिणे कर्णे मंत्रमुच्चारयेदिमम् ॥ | उसकी नाभि नाडी को सूत्र से बांधकर " अङ्गारङ्गात्संभवसि हृदयादभिजायसे।, पक्षात्माव पुरनामासिस जीवशरदांशतम्'
चार अंगुल छोडकर काटदे । और उस "शतायुः शतवर्षोऽसि दीर्घमायुरवाप्नुहि,
नाडी से बंधे हुए सूत्र को बालककी प्रीवा " नक्षत्राणि दिशोरात्रिरहश्चत्वाभिरक्षतु, से बांध देव और नाडी को कुष्ठतैल से
अर्थ-जरायु से बालक के पृथ्वी पर | चुपडता रहे, अथवा अश्वत्थादि दूध वाले आते ही सेंधे नमक से युक्त घी के द्वारा वृक्ष, वा चन्दनादि सब प्रकार के सुंगधित भनेक प्रकार से शोधित करके प्रसवक्लेश | द्रव्यों के काटे में चांदी वा सुवर्ण को गरम को दूर करने के निमित्त बला तैल से से
कर करके बुझावे, जब वह कुछ गरम. हो चित करे । और बालक के कान में दो जाय तब उस काढे से नाभि को सेचन पत्थरों का शब्द करे, और उसके दाहिने | करे । इसी को नाल छेदन विधि कहतेहैं। कान में इस मंत्र का उच्चारण करे कि हे | ताल उठाने की विधि । बालक ! तू अंग २ से पैदा होता है,हृदय ततो दक्षिणतर्जन्या तालूनम्यावगुंठयेत् ॥
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