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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कल्पस्थान भाषाटीकासमेत । अ० १ सूत्रोदितेन विधिना साधु तेन तथा वमेत् । मज्वरप्रतिश्याय गुल्मांतविद्रधीषु च ॥ प्रच्छद्विशेषेण यावत्पित्तस्य दर्शनम् । अर्थ - तदनंतर देश काल और पात्र के अनुसार इनकी यथायोग्य मात्रा लेकर पीस डाले, फिर इस चूर्ण को मुलहटी, लालकचनार, सफेद कचनार, बिंबी, कदम्व, वेत, शणपुष्पी, सदापुष्पी, प्रत्यकपुष्पी इन में से किसी के काथ में रात्रि भर भिगो देवै, दूसरे दिन प्रातः काल इनको मलकर और कपडे में छानकर सूत्रस्थानोक्त विधि के अनुसार जब तक पित्त का दर्शन हो वमन करे, यह कफ, ज्वर, पीनस, गुल्म और अन्तर्विद्रधि इन रोगों में विशेष उपयोगी है | अन्य प्रयोग । फलुपिप्पलिचूर्ण वा काथेन स्पेन भावितम् | त्रिभागत्रिफला चूर्ण कोविदारादिवारिणा । पिबेज्ज्वरारुचिष्वेवं ग्रंथ्यपच्यर्बुदोदरी ॥ पित्ते कफस्थानगत जीमूतादिजलेन तत् । अर्थज्वर और अहाचे रोगों में मेनफल के बीजों को उन्हीं के काथ की भावना देकर इस चूर्ण में तिगुना त्रिफला का चूर्ण मिलाकर कचनार के काथ के साथ पीवे । तथा ग्रंथि, अपची, अर्बुद और उदर रोगों में पित्त के कफ के स्थान में जानेपर मेंनफल को नागरमोथा आदि के काथ के संग पान करे । हृद्दाह में मेनफल | हृद्दाहेऽधोस्रपित्ते च क्षीरं तत्पिप्पलीशुतम् क्षैरेयीं बा अर्थ- हृदय के दाह और अधोगामी रक्त ( ६८५ ) ; पित्त में मेनफल के साथ दूध वा दूधक पेया का सेवन करै । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कफछ्यादि में मेनफळ । . कफच्छर्दि प्रकल्प केषु तु । दध्युत्तरं वा दधि वा तच्छ्रतक्षीरसंभवम् ॥ अर्थ- कफज वमन, प्रसेक और तमक में मेनफल के साथ दही की मलाई, वा दही अथवा औटे हुए दूध से निकाला हुआ घी हित है । फाभिभूत अग्नि में वमन । फलादिकाथकल्काभ्यांसिद्धंतत्सिद्धदुग्धजम् सर्पिः कफाभिभूतेऽग्नौ शुष्यदेहे च वामनम् अर्थ - मेनफल जीमूत आदि के का और कल्क से सिद्ध किये हुए दूध से निकाला हुआ घी फिर उन्हीं के काढे और कल्क में पका लिया जाय, जिसकी अग्नि कफके कारण मंदी पडगई है और देह सूख गई. है उनको वमन के लिये यह घृत देना चाहिये | वमन में लेह विशेष । स्वरसं फलमज्ज्ञो वा भल्लातकविधिशुतम् । आदवले पनात्सिद्धं लीढा प्रच्छर्दयेत्सुख म् तं लेह भक्ष्यभोज्येषु तत्कषायांश्च योजयेत् अर्थ - भिलावे की विधि के अनुसार मेनफल के गूदे के स्वरस को ऐसा पकावे कि गाढा होकर कल्छी से लगने लगे । इस औषध के चाटने से वमन सुखपूर्वक होती है । इस अवलेह को तथा मेनफल के काढे को भक्ष्य और भाग्य के साथ सेवन करे । d अन्य कषाय । वत्सकादिप्रतीवापः कषायः फलमनजः । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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