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(६२६)
मष्टांगहृदय ।
म.१५
उदररोग में गोमूत्र के साथ दूध द्वारा और | कर निरूहण देवै, तथा इसी काढे से सिद्ध वातान्वित पित्तज उदररोग में कुष्ठचिकित्सा | की हुई स्नेहवस्ति देकर त्रिकुटा मिलाकर में कहा हुआ तिक्तक घृत मिलाकर दूध | दूधके साथ अथवा कुलथी के यूषके साथ द्वारा अथवा ऊपर कहे हुए त्रिवृतादि द्रव्यों | भोजन कराव । में से किसी के साथ सिद्ध किया हुआ दूध
कफोदरमें अरिष्ट सेवन । देकर विरेचन करावें । अथवा विदारीगण
स्तमित्यारुचिल्लासैमैदेऽग्नौ मद्यपाय च ।
दद्यादरिष्टान् क्षारांश्च कफस्त्यानस्थिरोदरे॥ के साथ पकाये हुए दूधसे भोजन करावै
__ अर्थ-शराव पीनेवाले उदररोगी को और इसी दूधका जठर पर लेप करे। यदि स्तिमिता, अरुचि, हल्लास, मंदाग्नि द्ध और वस्ति का वारवार प्रयोग। तथा कफसे उदरमें गाढापन वा कठोरता पुनः क्षीरं पुनर्वस्ति पुनरेव विरेचनम् ।।
हो तो अरिष्ट और क्षारों का प्रयोग करै। कंमेण ध्रुबमातिष्ठन्यतः पित्तोदरं जयेत् ॥
उदररोग पर क्षार । अर्थ--बार बार दुग्धपान, बस्तिप्रयोग
हिंगूपकुल्ये त्रिफलां देवदारु निशाद्वयम्। और विरेचन का प्रयोग करने से पित्तोदर
भल्लातकं शिग्रफलं कटुकां तिक्तकं वचाम् ॥ निश्चय जाता रहता है ।।
शुठी माद्री घन कुष्ठं सरलं पटुपंचकम् । कफोहर की चिकित्सा।
दाहयेजर्जरीकृत्य दधिोहचतुष्कवत् ॥ वत्सकादिविपक्केन कफे सस्नेह्य सपिंषा। | अतधूम ततः क्षाराद्विडालपदकं पिवेत् । स्विनं सक्क्षीरसिद्धन बलबतं विरेचितम् ॥ मंदिरादाधिमंडोष्णजलारिष्टसुरासवैः ॥ संसर्जयेत्कटुक्षारयुक्तैरनैः कफापहै। | उदरं गुल्ममष्ठीलां तून्यौ शोफै विसूचिकाम्
अर्थ-कफोदर में बलबान रोगी को | प्लीहहृद्रोगगुदजानुदावर्त च नाशयेत् ॥ वत्सकादि गणोक्त औषधों से सिद्ध किये
____ अर्थ-हींग, पीपल, त्रिफला, देवदारु, हुए घी को पान कराकर स्निग्ध करै ।
दोनों हलदी, भिलावा, सहजने की फली, तत्पश्चात् उसको स्वेदनकर्म से स्वेदित कर
कुटकी, चिरायता, वच, सोंठ, अतीस, के सेंहुड के दूधसे सिद्ध किये हुए घी द्वारा
मोथा, कूठ, सरल, पांचों नमक, इन सब
द्रव्यों को पीसकर दही, घी, तेल, चर्वी विरेचन देकर कटु और क्षारयुक्त कफनाशक पेयादि अन्न का पथ्य देवै ।
और मज्जा मिलाकर ऐसी रीति से जलावे - कफोदर में निरूहादि ।
कि धुंआं बाहर न निकलने पावै । फिर मुत्रव्यूषणतैलाढ्यो निरूहोऽस्य ततो हितः॥
इस क्षार में से दो तोले मदिरा, दही,सुरामुष्ककादिकषायेण नेहवास्तश्च तच्छ्रतः। मंड, गरमजल, अरिष्ट, सुरा वा आसवके भोजनं व्योषदुग्धेन कौलत्थेन रसेन वा॥
साथ सेवन करै । इससे उदररोग, गुल्म, अर्थ-पेयादि पान कराने के पीछे मु
अष्ठीला, तूनी, प्रतूनी, शोथ, विसूचिका, ककादि गणोक्त द्रव्यों के काढे में अधिक प्लीहा. हृदयरोग, अर्श और उदावते नष्ट परिमाण में गोमूत्र, त्रिकुटा और तेल मिला । होजाते हैं ।
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