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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६१२] अष्टांगहृदय । अ०१४ काढे में वा जीवनीयगणके काढे में सिद्ध अन्य प्रयोग । किया हुआ घी अथवा जीवनीयगण वा द्विपलं त्रायमाणाया जलद्विप्रस्थसाधितम् । न्यग्रोधादि गणके साथ सिद्ध किया हुआ । | अष्टभागस्थितं पूतं कोणं क्षीरसमं पिबेत् पिबेदुपरि तस्योष्णं क्षीरमेवं यथावलम् । दूध. देना चाहिये । यह औषध पित्त तेन निर्दृतदोषस्य गुल्मः शाम्यति पैत्तिकः गुल्म को शमन करने के लिये बहुत | __ अर्थ-त्रायमाणा दो पलको दो प्रस्थ जलमें पकावै, आठवां भाग शेष रहने पर उतार ___ आत्ययिक गुल्म में विरेचन । कर छानले, फिर इसमें बराबर का दूध तत्राऽपि संसनं युज्याच्छीघ्रमात्यायिके मिलाकर पीवै ॥ फिर इसके ऊपर अपने भिषक् ॥६३॥ वैरेचानकसिद्धेन सर्विषा पयसाऽपि वा। बलके अनुसार गरम दूध पीवे । इससे दोषों अर्थ--जो गुल्म साधारणतया उत्पन्न | के निकलने पर पैत्तिक गुल्म शांत हो होकर असाध्य प्रतीत हो उसमें भी शीघ्र | जाता है । विरेचन देना चाहिये, यह विरेचन बैरेचनिक | पैतिक गुल्म में अभ्यंगादि । द्रव्यों के साथ सिद्ध किये हुए घी बा दूधके । दाहेऽभ्यंगो घृतैः शीतैः साज्यैलेंपो. साथ दिया जाता है ॥ हिमौषधैः। स्पर्शः सरोरुहां पत्रैः पात्रैश्च प्रचलजलैः॥ अन्य घृत । ___ अर्थ- पैतिक गुल्म में दाह हो तो शीरसेनामलकेथूणां घृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ पथ्यापादं पिबेत्सर्पिस्तत्सिद्धं पित्तगुल्मनुत् तवीर्य द्रव्यों के साथ में पकाये हुए घीका पिोद्वा तैल्वकं सर्पिर्यञ्चोक्तं पित्तविद्धौ ॥ | अभ्यंग शीतल द्रव्यों घी में मिलाकर लेप, अर्थ-घी एक प्रस्थ, आमले और ईख । कमल के पत्तों वा प्रचज्जलपात्रों का का रस चार प्रस्थ, हरड का कल्क चौथाई | स्पर्श करै । प्रस्थ डालकर पकाबै, इस घीके पीने से अ विदाहपूर्व गुल्म . थवा पित्तज विद्राध में कहे हुए तैल्वक घृत | विदाहपूर्वरूपेषु शूले बढेश्च मार्दवे । के पीनेसे पित्तगुल्म नष्ट होजाता है ॥ बहुशोऽपहरेद्रक्तं पित्तगुल्मे विशेषतः ॥ द्राक्षादि पान । ___ अर्थ-जिस गुल्ममें विदाह पूर्वरूप है, द्राक्षां पयस्यां मधुकं चंदनं पद्मकं मधु। वा जिसमें शूल और अग्निमांद्य होता है, पिबेत्तंडुलतोयेन पित्तगुल्मोपशांतये ॥ उसमें वार वार रक्त निकालना चाहिये । .. अर्थ -पित्तगुल्मकी शांतिके लिये दाख, पितगुल्म में विशेष रूपसे रक्त निकालना क्षीरका कोली, मुलहटी, रक्तचंदन, पदमःख | चाहिये । और शहत इन सब द्रव्योंको चांवलों के । रक्तमोक्षण में कारण । जलके साथ पान करै । | छिन्नमूला विदह्यते न गुल्मा यांति च क्षयम् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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