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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चिकित्सितस्थान मापाटीकासमेत । अ० १३ संग दारूहल्दी को घोटकर पीवै । इस रोग में विम्लापन अर्थात् उन उन मर्दन के उपायों के सिवाय कफज ग्रंथि में कहे हुए सब उपाय करने चाहियें । कफज ग्रंथिके पकने पर उसमें नश्तर लगाकर धात्रके शोधन के निमित्त चमेली, भिलावा, अंकोल, सातला, पल, नीम की छाल, हल्दी, वायबिडंग और कुडा की छाल इनके साथ सिद्ध किया हुआ तेल प्रयोग करै । (६०३] मूत्रज वृद्धि में उपाय | मूत्र स्वेदितं स्निग्धैर्बस्त्रपट्टेन बेष्टितम् । विध्येदधस्तात्सवन्याः स्नावयेच यथोदरम् । of च स्थगिकाबद्धं रोपयेत् अर्थ - मूत्रज वृद्धिरोग में सीमन के नीचे के भाग में स्निग्ध स्वेदन करके तथा कपडे की पट्टी से बांधकर नश्तर लगावै और जलोदर की तरह स्राव होने दे तदनंतर स्थगिका नामक बंधन से बांधकर घात्रको पुरावें । क्षेत्रज वृद्धि में उपाय | अत्रहेतुके । फलकोशमसंप्राप्ते चिकित्सा बातवृद्धिवत् ॥ अर्थ--अत्र वृद्धि यदि अंडकोष में न पहुँची हो तो उसकी चिकित्सा वातम वृद्धि के समान करनी चाहिये । मेदोज वृद्धि में उपाय | मदाजं मूत्रपिष्टेन सुस्विनं रसादिना । ३५ । शिरोविरेकद्रव्यैर्वा वर्जयन्फल सेवनीम् । दारयेदूवृद्धिपत्रेण सम्यङ्मेदसि सूद्धृते ॥ व्रण माक्षिककाससिसैंधवप्रतिसारितम् । सदभ्यंजनं चाऽस्य योज्यं मेदोविशुद्धये मनःशिलांसुमनोग्रंथिभल्लातकैः कृतम् । तैलमाव्रणसंधानात्स्नेहस्वेदो च शीलयेत् ॥ | अर्थ - मेदसे उत्पन्न हुई वृद्धि में सुरसादि गणोक्त द्रव्यों को गोमूत्र में पीसकर अथवा शिरोविरेचन के द्रव्यों द्वारा पसीना देकर वृद्धिपत्र नामक अस्त्रसे वृद्धि को काट डाले परंतु अंडकोष की सीमन को चीरा लगाते समय बचा देना चाहिये । मेदके अच्छी तरह निकलाने पर घावकी जगह सोनामाखी, कसीस और सेंधा नमक इनके द्वारा प्रतिसारित प्रण को सीं देवे । तदनंतर मेदकी शुद्धि के निमित्त मनसिल, इलायची, चमेली, पीपलामूल, भिलावा इन के साथ सिद्ध किया हुआ तेल चुपडता रहे । तथा जवतक व्रण न पुरै तब तक स्नेहस्वेद का बारबार प्रयोग करता रहै । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुकुमार नामक रसायन । पचेत्पुनर्नव तुलां तथा दशपलाः पृथक् । दशमूलपयस्याश्च गंधैरंडशतावरीः ॥ द्विदर्भशरकाशमूलपोटगलान्विताः । वहेऽपामष्टभागस्थे तत्र त्रिंशत्पलं गुडात् ॥ प्रस्थमे रडतैलस्य द्वौ घृतात्पयसस्तथा । आवपेद् द्विपलांशं च कृष्णतन्मूलसैंधवम् यष्टीमधुकमृद्वीकायबानी नागराणि च । तत्सिद्धं सुकुमाराख्यं सुकुमारं रसायनम् ॥ वातातपाध्वयानादिपरिहार्येष्वयंत्रणम् । प्रयोज्यं सुकुमाराणामीश्वराणां सुखात्मनाम् नृणां स्त्रीवृंद भर्तृणामलक्ष्मीकलिनाशनम् । सर्वकालोपयोगेन कांतिलावण्यपुष्टिदम् ॥ वर्ष्मविद्रधिगुल्माशौयोनिमेढानिलार्तिषु - शोफोदरखुडप्लीहविद्विबंधेषु खोत्तमम् ॥ अर्थ सांठ की जड एक तुला, दशमूल दूधी, चंदन, अरंड, सितावर, दोनों डाभ सरकंडा कास, ईखकी जड, नरसल प्रत्येक दस दस पल इन सबको एक For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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