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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१० चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (५७७] आमनाशकपानादि ॥ काली मिरच इनके चूर्ण को गरम जलके नागरातिविषामुस्तं पाक्यमामहरं पिबेत् । साथ पीवै । उष्णांबुना वा तत्कल्कं नागरं ___ अग्निवर्द्धक पिप्पल्यादि चूर्ण । वाऽथवाऽभयाम् ससैंधवं वचादि वा तद्वन्मदिरयाऽथवा ।। पिप्पली नागरं पाठांसारिबां वृहतीद्वयम् । चित्रकं कौटजं क्षारं तथा लबणपंचकम् । अर्थ--सोंठ, अतीस और मोथा इनका | चूर्णाकृतं दधिसुरा तन्मंडोष्णांवुकांजिकैः काथ अथवा गरम जल के साथ इनका कल्क पिबेदग्निविवृद्धयर्थ कोष्ठवातहरं परम्। अथवा गरमजल के साथ केवल सोंठ वा हरड | अर्थ-पीपल, सोंठ, पाठा, सारिवा, का चूर्ण, अथवा गरम जलके साथ, वा म- | कटेरी, बडी कटेरी, चीता, कुड़ाकी छाल दिरा के साथ वचादिगणोक्त द्रव्योंके चूर्णमें | जवाखार और पांचों नमक इनका चूर्ण दही सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से आम | सुा, सुरामंड, उष्णजल वा कांजीके साथ का नाश होजाता है। पान करने से जठराग्नि की वृद्धि, और आम पुरीष में उपाय । कोष्ठस्थ वायुका नाश होजाता है । वर्चस्यामे सप्रबाहे पिबेद्वा दाडिमांबुना पाचन गुटका। बिडेन लबणं पिष्टं विल्वचित्रकनागरम् । कनारमा पनि पंच द्वौ क्षारौ मरिचं पंचकोलकम् सामे कफानिले कोष्टाऽरु करे दीप्यकं हिंगुगुलिका बीजपूररसे कृता। कोष्णबारिणा ॥१०॥ कोलदाडिमतोये वा परं पाचनदीपनी ॥ ई-कने वा प्रवाहिका के लक्षणों से अर्थ-पांचों नमक, ( सेंधा, सांभर, युक्त पुरीष के होने पर विड नमक को मन को बिटू, संचल और उद्भिद ) दोनों खार पीसकर अनार के जल के साथ सेवन करे ( जवाखार और सज्जीखार ) काली मिरच अथवा जो कफ और वायु आमदोष युक्त पंचकोल, अजवायन और हींग, इनको हों और काष्ठमें वेदना होती हो तो ईषदुष्ण विजौरे के रसमें घोटकर गोली बनालेवै । जल के साथ बेलगिरी, चीता और सोंठ अथवा बेर और अनार के रसमें गोली बपीवै । नाकर सेवन करे । इससे आमका परिपाक छादि में उपाय। और जठराग्नि की प्रदीप्ति होती है। तालीसपत्रादि चूर्ण । कलिंगहिंग्यतिविषाबचासौवर्चलाभयम् । । छर्दिहद्रोगशूलेषु पेयमुष्णेन बारिणा तालीसपत्रचविकामारिचानां पलं पलम् । पथ्यासोबर्चलाजाजीचूर्ण मरिचसंयुतम् । | कृष्णा तन्मूलयो? द्वे पले शुंठी पलत्रयम् __अर्थ-वमन, हृदयरोग और शूल हो | चतुर्जातमुशीरं च कर्षाशं श्लक्ष्णचूर्णितम् गुडेन वटकान्कृत्वा त्रिगुणेन सदा भजेत् ॥ तो इन्द्रजौ, हींग, अतीस, वच, संचल मद्ययूषरसारिष्टमस्तुपेया पयोनुपः। नमक और हरड इनको गरम जलके साथ वातश्लमात्मनां छदिग्रहणीपार्श्वद्जाम्॥ पीवै, अथवा हरड, कालानमक, जीरा और | ज्वरश्वयथुपांडुत्वग्गुल्मपानात्ययार्शसाम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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