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चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(५७७]
आमनाशकपानादि ॥ काली मिरच इनके चूर्ण को गरम जलके नागरातिविषामुस्तं पाक्यमामहरं पिबेत् । साथ पीवै । उष्णांबुना वा तत्कल्कं नागरं
___ अग्निवर्द्धक पिप्पल्यादि चूर्ण । वाऽथवाऽभयाम् ससैंधवं वचादि वा तद्वन्मदिरयाऽथवा ।।
पिप्पली नागरं पाठांसारिबां वृहतीद्वयम् ।
चित्रकं कौटजं क्षारं तथा लबणपंचकम् । अर्थ--सोंठ, अतीस और मोथा इनका
| चूर्णाकृतं दधिसुरा तन्मंडोष्णांवुकांजिकैः काथ अथवा गरम जल के साथ इनका कल्क पिबेदग्निविवृद्धयर्थ कोष्ठवातहरं परम्। अथवा गरमजल के साथ केवल सोंठ वा हरड | अर्थ-पीपल, सोंठ, पाठा, सारिवा, का चूर्ण, अथवा गरम जलके साथ, वा म- | कटेरी, बडी कटेरी, चीता, कुड़ाकी छाल दिरा के साथ वचादिगणोक्त द्रव्योंके चूर्णमें | जवाखार और पांचों नमक इनका चूर्ण दही सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से आम | सुा, सुरामंड, उष्णजल वा कांजीके साथ का नाश होजाता है।
पान करने से जठराग्नि की वृद्धि, और आम पुरीष में उपाय ।
कोष्ठस्थ वायुका नाश होजाता है । वर्चस्यामे सप्रबाहे पिबेद्वा दाडिमांबुना
पाचन गुटका। बिडेन लबणं पिष्टं विल्वचित्रकनागरम् ।
कनारमा पनि पंच द्वौ क्षारौ मरिचं पंचकोलकम् सामे कफानिले कोष्टाऽरु करे
दीप्यकं हिंगुगुलिका बीजपूररसे कृता। कोष्णबारिणा ॥१०॥ कोलदाडिमतोये वा परं पाचनदीपनी ॥ ई-कने वा प्रवाहिका के लक्षणों से अर्थ-पांचों नमक, ( सेंधा, सांभर, युक्त पुरीष के होने पर विड नमक को
मन को बिटू, संचल और उद्भिद ) दोनों खार पीसकर अनार के जल के साथ सेवन करे
( जवाखार और सज्जीखार ) काली मिरच अथवा जो कफ और वायु आमदोष युक्त
पंचकोल, अजवायन और हींग, इनको हों और काष्ठमें वेदना होती हो तो ईषदुष्ण
विजौरे के रसमें घोटकर गोली बनालेवै । जल के साथ बेलगिरी, चीता और सोंठ
अथवा बेर और अनार के रसमें गोली बपीवै ।
नाकर सेवन करे । इससे आमका परिपाक छादि में उपाय।
और जठराग्नि की प्रदीप्ति होती है।
तालीसपत्रादि चूर्ण । कलिंगहिंग्यतिविषाबचासौवर्चलाभयम् । । छर्दिहद्रोगशूलेषु पेयमुष्णेन बारिणा
तालीसपत्रचविकामारिचानां पलं पलम् । पथ्यासोबर्चलाजाजीचूर्ण मरिचसंयुतम् ।
| कृष्णा तन्मूलयो? द्वे पले शुंठी पलत्रयम् __अर्थ-वमन, हृदयरोग और शूल हो
| चतुर्जातमुशीरं च कर्षाशं श्लक्ष्णचूर्णितम्
गुडेन वटकान्कृत्वा त्रिगुणेन सदा भजेत् ॥ तो इन्द्रजौ, हींग, अतीस, वच, संचल
मद्ययूषरसारिष्टमस्तुपेया पयोनुपः। नमक और हरड इनको गरम जलके साथ वातश्लमात्मनां छदिग्रहणीपार्श्वद्जाम्॥ पीवै, अथवा हरड, कालानमक, जीरा और | ज्वरश्वयथुपांडुत्वग्गुल्मपानात्ययार्शसाम् ।
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