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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६०) अष्टांगहृदय । सौंफ, हरड, कूठ, मोथा, दालचीनी, बाय-1 जमीकंद का अन्य प्रयोग। विंडग,चीता और इलायची इनको पीसकर चूर्णीकृताःषोडश सूरणस्य उस में मिलादे, इस अवलेह को नित्य प्रति भागास्ततोऽर्धेन च चित्र कस्य । महौषधादौ मरिचस्य चैको सेवन करने से मस्से, कोढ, प्लीहा, गुल्म गुडेन दुर्नामजयाय पिंडी॥ रोग और उदर रोग, नष्ट होजाते हैं और । अर्थ-जमीकंद के छोटे छोटे टुकडे १६ जठराग्नि भी बढजाती है। भाग, चीता आठ भाग, सोंठ २ भाग, मिरच त्रिकुटाद्यवलेह । १ भाग इनकी गुडके साथ गोली बनाकर गुडव्योषवरावेल्लतिलारुष्करचित्रकैः। सेवन करने से अर्श नष्ट हो जाता है । . असि हतिगुटिका त्वाग्विकारं चशीलिता | अन्य चूर्ण। अर्थ-त्रिकुटा, त्रिफला, वायविडंग, पथ्यानागरकृष्णांकरंजवेल्लाग्निभिः तिल, भिलावा, और चीता इनको पसिकर सितातुल्यैः। पुराने गुडमें मिलाकर गोलियां बना लेवे । | वडवामुख इव जरयति बहुगुर्वपि भोजनं इनगोलियों के सेवनसे अर्शरोग और त्वचा चूर्णम् ॥१५९ ॥ ___ अर्थ-हरड, सोंठ, पीपल, कंजा, वायविकार नष्ट होजाते हैं। विडंग और चीता प्रत्येक समान भाग और अर्शपर जमीकंद । इन सबके वरावर मिश्री मिलाकर सेवन करने मृल्लिप्तं सौरणं कंदं पक्त्वाऽग्नौ पुटपाकवत् | से प्रमाण से अधिक और गरुपाकी भोजन अद्यात्सतैललवणं दुर्नामविनिवृत्तये ॥ . अर्थ-जमीकंद पर कपडमिट्टी करके पु- | | कोभी अग्निकी तरह जला देता है। टपाककी तरह अग्निमें पकावै, फिर इसको कलिंगादि वटिका । तेल और नमक मिलाकर सेवन करे तो | कलिंगलांगलीकृष्णावनापामार्गतंडुलैः । भूनिंबसैंधवगुडैर्गुडागुदजनाशनाः॥१६० ॥ अर्शरोग नष्ट होजाता है । ___ अर्थ-इन्द्रजौ, लांगली, पीपल, चीता, गुडादि गुटका । . ओंगाके वीज, चिरायता, सेंधा नमक इन मरिचपिप्पलिनागरचित्रकान् को पीसकर पुराने गुडमें गोलियां बनालेवे क्रमविवर्धितभागसमाहृतान् । इससे गुदांकुर नष्ट होजाता है । शिखिचतुर्गुणसूरणयोजितान् तक्रपान । .. कुरु गुडेन गुडॉन् गुदजाच्छदः अर्थ-कालीमिरच, पीपल, सोंठे, चीता लवणोत्तमवन्हिकलिंगयवां पिचरबिल्वमहापिचुमंदयुतान् । इनको एक एक भाग बढा करले और ची पिब सप्तदिनं मथितालुडितान् ते से चौगुना जमीकंद इनको गुडमें मिला यदि मर्दितुमिच्छसि पायुरुहान् ॥ कर गोलियां बनालेवे, इनसे मस्से जाते अर्थ-सेंधा नमक, चीता, इन्द्रजौ, कंजा रहते हैं। | और महानिंब, इनका चूर्ण तक्र में मिलाकर For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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