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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ८ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । वक्षण की वेदना, तथा प्रवाहिका, गुदभ्रंश । अर्थ-बथुआ, चीता, निसौथ, दंती, मूत्रकृच्छू और गुदस्राव को दूर करताहै । | पाठा भौर इमली आदेके पत्ते तथा अन्य चांगेर्यादि घृत । कफवातनाशक हलके और मलका भेदन पाठाजमोदधनिकाश्बदंष्ट्रापंचकोलकैः । करनेवाले शाक, घी और तेलमें हींगका छोंक सबिल्वदाधे चांगेरीस्वरसे च चतुर्गुणे । देकर दही की मलाई डालकर पकावे हत्याज्यं सिद्धमानाई मूत्रकृच्छू प्रवाहिकम्। और इसमें धनियां और पंचकोल पीसकर गुदभ्रंशार्तिगुदजग्रहणीगदमारुतान् । | मिलादे और अनारदाने की खटाई, धनिये .. अर्थ-पाठा, अजमोद, धनियां, गोखरू पंचकोल, और बेलगिरी इनको चौगुने दही | के पत्ते और अदरख का जीरा डालदे तथा और चौगुने चांगेरी के रसमें यथोक्तरीतिसे हृदय को हितकारी अंगार की धूनीसे सुवा. सित करके जीरा, कालीमिरच, विडनमक, घृतका पाक करे । यह घृत आनाह, मूत्रकृच्छ्र, प्रवाहिका, गुदभ्रंश, अर्ति, गुदांकुर संचलनमक, डालकर प्रस्तुत करे | इसके सेवन से वातकी अधिकता, देहकी रूक्षता, ग्रहणी रोग तथा वातरोगों को नष्ट करदेताहै मंदाग्नि, मलका विवंध ये सब दूर होजातेहैं - मांसरसादि का प्रयोग । रक्त शाली चांबलों का भात, शाकयुक्त शिस्म्रितित्तिरि लावानां रसानम्लान् सुसं व्यंजनकी तरह तयार करना चाहिये । तथा स्कृतान् । पक्षाणां वर्तकानां वा दद्याविडवातसंग्रहे । | गौ, गोधा, बकरी, ऊंट, तथा विशेष करके अर्थ-मोर, तीतर, लवा, मुर्गा और मांसभक्षी जानवरों के मांसका रस उक्तरीति बतक इनके मांसरस में अच्छीतरह खटाई | से संस्कृत करके देना चाहिये । डालकर सेवन करे तो विष्टा और घातका पानविधि। बिंबंध दूर होजाताहै। मदिरां शार्करं गौडं सीधु तक्रं तुषोदकम् ।। मंदाग्नि की चिकित्सा। अरिष्टं मस्तु पानीयं पानीयं वाल्पकं शतम्। धान्येन धान्यशंठीभ्यां कंटकारिकयाऽथवा वास्तुकाग्नित्रिवृहतीपाठाम्लीकादिपल्ल अंत भक्तस्य मध्ये वा बातव!नुलोमनम् । धान् । अन्यच्च कफवातघ्रं शाकं चलघु भेदि च । ___ अर्थ-अधोवायु और मलके अनुलोमन सहिंगु यमके भृष्ट सिद्ध दधिसरैः सह । के निमित्त मदिरा, शर्करा का मद्य, गौड, धनिकापंचकोलाभ्यांपिष्टाभ्यां दाडिमांबुना। सीधु, तक, तुषोदक, अरिष्ट, मस्तु, पानी आदिकायाः किसलयैः शकलैराकस्य च। AM घोटा पकाया हुआ पानी. धनिये के युक्तमंगारधूपेन हृद्येन सुरभीकृतम्। सजीरक समरिच बिडसौवर्चलोत्कटम् ॥ साथ औटाया हुआ पानी, अथवा धनिये वातोत्तरस्य रूक्षस्य मंदाग्मेद्धवर्चसः।। और सौंठके साथ औटायाहुआ पानी, अथवा कल्पयेगक्तशाल्यनंब्यंजनं शाकवदसान् ॥ | कटेरी के साथ औटाया हुआ पानी, भोजन गोगोधाछागलोष्टाणां विशेषात्कव्यभोजिनाम् के बीचमें वा भोजनके भंतमें पीना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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