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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. ८ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (१४९] - पथ्यांबा पिप्पलीयुक्तांघृतभृष्टां गुडान्विताम् | नियम इसलिये नहीं दिया गया है कि जब तक अथवा सत्रिबृहंती भक्षयदनुलोमनीम् ५८॥ देह और अग्नि का बल पूर्णता को प्राप्त न हते गुदाश्रये दोषे गुदजा यांति संक्षयम्। अर्थ-त्रिफलाके काढेके साथ निसोथ | हो तव तक पान करता रहे । अथवा तक्रके साथ हरड, अथवा हरड और अन्य प्रयोग। . पीपलको धीमें भूनकर गडके साथ अथवा दं- दुस्पर्शकेन बिल्वेन यवान्या नागरेण वा ती और निसोथके साथ हरडको विरेचन एकैकेनाऽपि संयुक्ता पाठा हत्यर्शसांरुजम् योग्य बनाकर सेवन करे। इससे गुदाश्रित दी. __ अर्थ-दुरालभा, वेल, अजवायन और ष क्षीण होकर मस्से नष्ट होजाते हैं। सोंठ इनमें से एक एक के साथ पाठा का अन्य उपाय। सेवन करनेसे अर्शकी वेदना जाती रहतीहै । दाडिमस्वरसाजाजीयवानीगुडनागरैः ६०॥ अभयारिष्ट । पाठया वा युतं तकं वातवीनुलोमनम् ।। साधं बा गौडमथवा सचित्रकमहौषध सलिलस्य वहे पक्त्वा प्रस्थार्धमभ यात्वचम् पिवेत्सुरांवा हपुषापाठासोबर्चलान्वितामा प्रस्थंधाच्या दसपलं कपित्थानां ततोऽर्धतः अर्थ-अनारका रस, जीरा, अजवायन, विशालारोधमरिचकृष्णावेल्लैलवालुकम् । गुड, सोंठ, इनसे अथवा पाठासे युक्त तक द्विपलांशं पृथक्पादशेषे पूते गुडात्तुले । दत्त्वा प्रस्थं च धातक्या स्थापये प्रतभाजने अधावायु आर पुराषका अनुलोमन करनेबा- | पक्षात्स शीलितोऽरिष्टः करोत्याग्नं निहति च ला है । अथवा सीधु वा गुडका मद्य चीता गुदजग्रहणीपांडुकुष्टोदरगरज्वरान् । और सौंठ मिलाकर पीवै, अथवा हाऊवेर,पा श्वयथुप्लीहहृद्रोगगुल्मयक्ष्मवमीकृमीन् । ठा और संचल नमक मिलाकर सुरापान करे।। - अर्थ--वडी हरडका वक्कल आधा प्रस्थ ... बलवर्द्धक पान । तथा आमला एक प्रस्थ, कैथ दस पल, तथा दशादिदशकैर्वृद्धाः पिप्पलीििपचुं तिलान् इन्द्रायण पांच पल, तथा लोध, कालीमिरच, पीत्वा क्षीरेण लभते बलं देहहुताशयोः।। पीपल, बायविडंग, एलुआ, प्रत्येक दो दो पल अर्थ-वर्द्धमान पिप्पली के अनुसार प्र- इन सन द्रव्योंको चार द्रोण पानीमें पकावै तिदिन दस दस पीपल अधिक करता हुआ चौथाई शेष रहने पर उतारकर छानले फिर चार तोले तिल के साथ सेवन करे,ऊपरसे दूध इसमें एक तुला गुड और आमलेका रस एक पीवे, इससे शरीरके बल और जठराग्नि की प्रस्थ डालकर घी के वर्तनमें भरदे । एक पक्ष वृद्धि होती है । इसके सेवन का क्रम यह पीछे इसका सेवन करना अग्निको बढाता है कि पहिले दिन दस पीपल और चार तोले है और मस्से, प्रहणी, पांडुरोग, कुष्ट, उदरतिल, दूसरे दिन २० पीपल और चार तोले रोग, विषरोग, ज्वर, सूजन, प्लीहा, हृदयरोग, तिल तीसरे दिन तीस पीपल और चार तोले गुल्म, यक्ष्मा, वमन और कृमिरोगों को दूर तिल इस तरह प्रतिदिन सेवन करे । कालका | करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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