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(५३०)
अष्टांगहृदय ।
अ० ७
आधी रात की पवन के झकारोंके लगने से | मिला हुआ शार्कर मद्य अथवा मार्दीक मध शीतल हो रहा हो।
पान करावै, अथवा रूक्षतर्पणों से युक्त मदात्यय में मुखालेप ।
अजवायन और सोंठ डालकर पुराना अरिष्ट कोलदाडिमबृक्षाम्लचुकीकाचुक्रिकारसः।
वा सीधु पान कराना चाहिये । पंचाम्लको मुखालेपः सद्यस्तृष्णां नियच्छति। - अर्थ-बेर, अनार, वृक्षाल, चुक्रीका,
उक्त रोग में भोजनादि ।
यूषेण यवगोधूमं तनुनाऽल्पेन भोजयेत् । और चूका का रस इन पांच खटाईयों का
| उष्णाम्लकटुतिक्तेन कौलत्थेनाल्पसर्पिषा । मुख लेप करने से तृषा तत्काल शांत हो | शुष्कमूलकजैश्छागै रसैर्वा धन्वचारिणाम् । जाती है।
साम्लवेतसवृक्षाम्लपटोलीय्योषदाडिमैः" अन्य उपाय।
अर्थ-पतला और थोडा, उष्ण अग्ल त्वचं प्राप्तश्च पानोप्मा पित्तरक्ताभिमूर्छितः
| कटु तिक्त रसों से युक्त थोडा घी डाल कर दाहं प्रकुरुते घोरं तबाऽतिशिशिरो विधिः।। भशाम्यति रसैस्तृप्त रोहिणी व्यधयेच्छिराम तयार किये हुए कुलथी के यूष के साथ जौ . अर्थ-गद्य की गरमी त्वचा में पहुंच- | और गैहूं के भक्ष्य पदार्थ का भोजन करना कर और पित्त रक्त से मिलकर घोर दाह चाहिये अथवा सूखी मूली के यूष के साथ, उत्पन्न करती है इस में अत्यन्त शीतल
अथवा बकरे वा अन्य किसी जांगल पशु उपचार करना चाहिये । शीतल उपचार
के मांसरस के साथ, अम्लवेत, बृक्षाम्ल, करने पर भी यदि दाह की शांति न हो तो
पर्वल और त्रिकुटा मिलाकर वा जौ गैंहूं के रोगी को मांस रस पानसे तृप्ति करके उस | पदाथा का सवन
पदार्थों का सेवन करै । की रोहणी संज्ञक शिरा का वेधन करै । यथाग्नि पथ्यादि ।
कफाधिक्य मदात्यय में कर्तव्य । प्रभूतशुंठीमरिचहरिताकपोशकम् । उल्लेखनोपवासाभ्यां जयेत्श्लेष्माल्बणपिबेत् |
बीजपूररसाद्यम्लभृष्टनीरसवर्तितम् शीतं शुठीस्थिरोदीच्यदुःस्पर्शान्यतमोदकम् कर
| करीरकरमर्दादिरोचिप्णु बहुशालनम् ।
प्रत्यक्ताष्टांगलवणं विकल्पितनिमर्दकम् ___ अर्थ-कफाधिक्य मदात्ययको वमन और
| यथाग्नि भक्षयन्मांस माधबं निगदं पिबेत् । उपबास द्वारा दूर करने का उपाय करै,
अर्थ-अधिक परिमाण में सोंठ, मिर्च, तथा सोंठ, शालपर्णी, नागरमोथा और दुरा
हरी अदरखकी पेशी [ चाकू वा छुरी से काट लभा इनमें से किसी एक का काथ पान करै
काट कर अदरख के लम्बे २ सूत निकाले अन्य उपाय। निरामं क्षुधितं काले पाययद्वहुमाक्षिकम्
जाते है, उन्हें पेशी कहते हैं, ) डाल कर शार्करं मधु वा जर्णिमरिष्टं सीधुमेव च ।
तथा बिजौरे के रस आदि की खटाईसे युक्त रूक्षतर्पणसंयुक्तं यवान नागरान्वितम् । तथा स्नेहादिसे ऐसा भूना जाय जिसमें रस - अर्थ-आमरहित रोगी को भूख के | न रहकर सूखासा होजाय, ऐसे व्यंजन से उदय होने पर यथोचित्त काल में बहुत मधु । युक्त तथा करील, करोंदा आदि रुचिकारक
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