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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३०) अष्टांगहृदय । अ. ७ बातज मदात्यय की चिकित्सा । । स्वच्छ वारुणी हित है । अनारका रस, तत्र वातोल्वणे मधं दद्यापिकतं युतम्। | लघु पंचमुल का काढा, सोंठ और धनिये बीजपूरकवृक्षाम्लकोलदाडिमदीप्यकैः ॥ का काढा, दही का तोड, सुक्त, खटीकायवानीहपुषाजाजीब्योषत्रिलवणार्द्रकैः।। जी, गरम अभ्यंग, उवटना और स्नान, शूल्यमांसहरितकैः स्नेहवद्भिश्च सक्तुभिः । उष्णस्निग्धाम्ललबणा मद्यमांसरसा हिताः । गाढे वस्त्रका ओढना, अगरकी घूपका आम्राम्रातकपेशाभिः संस्कृता रागखांडवाः। अधिक सेवन, अगर और कंकमका लेपन गोधूममाषविकृतीमुंदुश्चित्र मुखप्रियाः। हित हैं तथा सुंदर कुच, जंघा और काटमाद्रिकाककुल्माषसूक्तमांसादिगर्भिणी॥ | प्रदेशवाली स्त्रियां जिनकी अंगयष्टि यौवसुरभिलवणा शीता निगदा वाच्छवारुणी। नमद से उष्ण हों और आनन्द से आलिंस्वरसो दाडिमाकाथःपंचमूलात्कनीयसः॥। शुनधान्यात्तथामस्तुसूक्तांभोत्थाम्लकांजिकम गनकरनेवाली ऐसी स्त्रियां देह के मर्दन में अभ्यंगाद्वर्तनस्नानमुष्णं प्रावरणं धनम् ॥ नियुक्त हों । ये सब बातें वातजमदात्यय में घनश्चागुरुजोधूपः पंकश्चागुरुकुंकुमः। हितकारक हैं। कुचोरुश्रोणिशालिन्योयौवनौष्णांगयष्टयः॥ पित्तज मदात्यय । हर्षेणालिंगनैर्युक्ताः प्रियाः संवहनेषु च। पित्तोल्बणे बहुजलं शार्कर मधुना युतम् ॥ अर्थ-इन सब मदात्यय रोगों में से । रसैदाडिमखर्जूरभव्यद्राक्षापरुषकैः । वातज मदात्यय में पिसे हुए चांवलों का | सुशीतं ससितासक्तयोज्यं तादृक् च पानकम् मद्य नीचे लिखे हुए संपूर्ण द्रव्य अथवा जि स्वादुवर्गकषायैर्वा युक्तं मयं समाक्षिकम् । अर्थ-पित्तज मदात्यय में बहुत जल तने मिलसकें उतने द्रब्यों के साथ पीना चाहिये, जैसे विजौरा,अम्लवेत, बरे, अनार, मिला हुआ शर्करा मद्य देना चाहिये, इसमें शहत और अनार, खजूर, कमरख, किसअजमोद, अजवायन, हाऊबेर, जीरा,त्रिकुटा | मिस और मीठे फालसे का रस भी मिला त्रिलवण ( सेंधा, संचल और मनयारी ), देना चाहिये : अथवा मिश्री धान का संत्त अदरख, शूल्यमांस, हरियलमांस, घृतप्त मिलाकर शीतल पानक ( पेय पदार्थ ) सत्तू मिला देने चाहिये । तथा उष्ण, देना चाहिये । अथवा मधुर वर्गोक्त द्रव्यों स्निग्ध, अम्ल और लवणयुक्त मेदा वाले के कषाय से युक्त मधुमिश्रित मद्य देना मांसरस हित हैं । तथा अमचूर और आ चाहिये। मडे के साथ सिद्ध किये हुए राग और | पित्तज मदात्यय में भोजन । षाडव हित हैं। इसी तरह गेहूं और उरद शालिषष्टिकमश्नीयाच्छशाजणकपिंजलैः । के बने हुए अनकानेक पदार्थ जो मुख में | सतीनमुद्रामलकपटोलीदाडिमैरपि। रुचिवर्द्धक और मृदु हैं वे सब हित हैं। अर्थ-खोंश, बकरा, हरिण और तथा आर्द्रका, आर्द्रा, कुल्माष, और मांसा- तीतर के साथ अथवा मटर, मूंग, आमला, दियुक्त सुगंधित, नमकीन, और शीतल | पर्बल और अनार इनके यूष के साथ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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