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अष्टांगहृदय ।
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असाध्य है । इसलिये हिचकी और श्वासके । विरेचन द्वारा ऐसा शोधनकरें जिससे शरीर रोगोंमें विशेष करके वृंहण और शमन उ- | में कृशता न होने पावै । पायों द्वारा चिकित्सा करै।
बमनविधि । उक्त रोगों में परस्पर उपचार । पयसा फलयुक्तेन मधुरेण रसेनं वा । कासश्वासक्षयछर्दिहिध्माश्चान्यान्यभेषजैः सर्पिष्मत्या यवाग्वा वा वमनद्रव्यासद्धया।
अर्थ-खांसी, दम, क्षयी, वमन और हि- वमेत् चकी इन पांच प्रकारके रोगोंकी चिकित्सा अर्थ-दूध के साथ मेंनफल देकर समान होती है, अर्थात् कासोक्त औषधों से राजयक्ष्मा रोगी को वमन करावै अथवा इक्षु दमकी और श्वासोक्त औषधों से कासकी आदि मधुररस वा मांसरस के साथ मेंनफल चिकित्सा की जाती है, ऐसे ही क्षयी आदि मिलाकर दे, अथवा मेंनफल आदि रोगोंकी चिकित्साके विषयमें समझना चाहिये। वमनकारक द्रव्यों के साथ सिद्ध की हुई इतिश्री अष्टांगहृदयसहिताया
घृत मिश्रित यवागू देकर बमन करावै । भाषाटीकायां चिकित्सितस्थाने
राजयक्ष्मा में विरेचन ।
बिरेचनं दद्यात्रिवृच्छ यामानृपदुमान् । श्वासहिमाचिकित्सितनाम शर्करामधुसपिभिः पयसा तर्पणेन बा । चतुर्थोऽध्यायः ।
द्राक्षाबिदारकिाश्मर्यमांसानां वारसैर्युतान। ____ अर्थ--निसोथ, श्यामानिसोथ, अमलतास
इनमेंसे एक एक को खांड, मधु और घृतके पञ्चमोऽध्यायः।
साथ देकर विरेचन करावे, अथवा निसोथादि
को दूधके साथ अथवा तर्पण के साथ देकर अथाऽतो राजयक्ष्मादिचिकित्सितं व्याख्या- | विरेचन करावै । अथवा द्राक्षारस, विदारी
स्यामः। रस, खंभारीरस, वा मांसरस इनमें से किसी अर्थ-अब हम यहांसे राज्यक्ष्मादि चि- |
एक के साथ उक्त निसोथादि देकर वमन 'कित्सित नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे। | करावे। __यक्ष्मामें शोधन कर्म।
वृंहणदीपन विधि । " बलिनो बहुदोषस्य स्निग्धस्विन्नस्य शो- शुद्धकोष्ठस्य युजीत विधिं वृंहणदीपनम् ।
धनम् । | हृद्यानि चाऽनपानानि वातघ्नानि लघुनि च ऊर्ध्वाधोयक्ष्मिणः कुर्यात्सस्नेहं यन्नकर्शनम्। शालिषष्टिकगोधूमयबमुद्नं समोषितम् ॥ ___ अर्थ-वातादि बहुत दोषोंसे युक्त यक्ष्मा । अर्थ-वमनविरेचन द्वारा कोष्टके शुद्ध रोगी यदि बलवान् हो तो पहिले उसे | होनेपर राजयक्ष्मावाले रोगी को वृंहण और स्नेहन और स्वेदन द्वारा स्निग्ध और स्विन्न | अग्निसंदीपन औषध देनी चाहिये । तथा करके उर्ध्वाधः शोधन अर्थात् वमन और | वातनाशक, और हलके तथा हृदय को हि
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