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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (४९५) इसका सेवन करे, केवल दूध पीवे और । दीप्ताग्न्यादि में कर्तव्य । अन्नको त्याग दे । यह प्रयोग पुष्टि, आयु | "दीप्तेऽग्नौ विधिरेषःस्यान्मंदे दीपनपाचनः वल, और वर्ण के बढान में एकही है। | यक्ष्मोक्तः क्षतिनां शस्तो ग्राही शकृति तुद्रवे' इसी तरह मंडूकपर्णी, तथा मुलहटी तथा । अर्थ-क्षतयुक्त खांसीवाले रोगी की सौंठ का कल्प भी सेवन किया जाताहै। जठराग्नि यदि तीव्र हो तो यह विधिकर्तव्य नागवलाघृत ! है, मंदाग्नि हो तो राजयक्ष्मा में कहे हुए पादशेयं जलद्रोणे पचेन्नागबलातुलाम् ॥ दीपनपाचन हित हैं, यदि मल पतला तेनकायेन तुल्यांशं घृतं क्षीरेण पाचयेत्।। पलार्धिकैश्चातिबलावलायष्टीपनर्नवैः॥ होगया हा तो संग्राही औषधे देना चाहिये। प्रपौंडरीककाश्मर्यप्रियालकपिकच्छुभिः । - अगस्तिविहित रसायन । अश्वगंधासिताभीरुमेदायग्मत्रिकंटकैः॥ दशमूलं स्वयंगुप्तां शंखपुष्पी शठी बलाम् ।। काकोलीक्षीरकाकोलीक्षीरशुक्लाद्विजीरकैः हस्तिपिप्पल्यपामार्गपिप्पलीमूलचित्रकान् । एतन्नागबलासर्पिः पित्तरक्तक्षतक्षयान् ॥ भागी पुष्करमूलं च द्विपलांशान् यवाढकम । जयेत्तृभ्रमदाहांश्च बलपुष्टिकरं परम् ॥ हरीतकीशतं चैकं जले पंचाढके पचेत् । पर्ण्यमायुष्यमोजस्य बलीपलितनाशनम् ॥ यवास्विन्ने कषायं तं पूतं तच्चाभयाशतम् ॥ उपयुज्य च षण्मासान् वृद्धोऽपितरुणायते। पवेद्गुडतुलां दत्त्वा कुडवं च पृथग्घृतात् । ' अर्थ-एक तुला नागवला को एक द्रोण तैलात्सपिप्पलीचूर्णात्सिद्धशीतेचमाक्षिकात् जलमें पकावै, चौथाई शेष रहनेपर उस लेह द्वे चाभये नित्यमतः खादेद्रसायनात् । तद्वलीपलितं हन्यादर्णायुर्बलवर्धनम् ।१२९ । क्वाथको छानले, फिर इस काथके समान पंचकासान् क्षयं श्वासं सहिध्म विषमज्वरम् घी और दूध मिलाकर पकावे पकाते समय मेहगुल्मग्रहण्य हृद्रोगारुचिपीनसान् ॥ इसमें अतिवला, बला, मुलहटी, पुनर्नवा, | अगस्तिविहित धन्यमिदं श्रेष्ठं रसायनम् । प्रपौडरीक, खंभारी, प्रियाल, केंचके बीज, ___ अर्थ-दसमूल, केंच के बीज, शंखअसगंध, मिश्री, सितावर, मेदा, महामेदा, पुष्पी, कचूर, खरैटी, गजपीपल, ओंगा, गोखरू, काकोली, क्षीरकाकोली, क्षीरशुक्ला | पीपलामूल, चीता, भाडंगी और पुष्करमूल कालाजीरा, सफेदजीरा, इनमेंसे प्रत्येक आ- इनमें से हरएक दो दो पल । जौ एक धा आधा पल लेकर कल्क करके उसमें आढक, और १.० हरड, इन सबको डालदे । यह नागवलाघृत पित्तरक्त, क्षत, | पांच आढक जल में पकावै । जब जो क्षय, तृषा, भ्रम, दाह, इन रोगों को दूर | स्विन्न ( सीजना ) होजाय तव उतारकर करताहै, बल और पुष्टिको बढाताहै वर्ण, कपडे में छानले । फिर इस काथ में ऊपर आयु और ओजकारकहै, तथा बली और कही हुई १०० हरड. एक तुला गुड और पलित को नाश करनेवालाहै। इस घतका | एक कुडब घी और एक कुडव तेल डालछः महिने सेवन करनेसे वृद्ध मनुष्य भी कर पकावै, जब पकने पर आजाय तब युवाओंके से आचरण करने लगताहै। एक कुडव पीपल पीसकर मिलादेवे । ठंडा For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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