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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ३ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । [४८५] तिक्तरसान्वित संसर्जन का सेवन करे । अन्य उपाय । विरेचन के पीछे पेयादि पान के क्रम को मधुरैजंगलरसैर्यवश्यामाककोद्रवाः ३२॥ संसर्जन कहते हैं। मुद्गादियूषैः शाकैश्च तिक्तकोत्रया हिताः पित्तकास में अवलेह । धनश्लेष्मणि लेहाश्च तिक्तका मधुसंयुताः॥ अर्थ-मधुर जांगल जीवों का मांसरस, लेहःपैत्ते सिताधात्रीक्षौद्रद्राक्षा हिमोत्पलैः सकफे साब्दमरिचः सघृतः सानिले हितः जौ, सौंखिया, कोदों, मुद्गादि यूष, और मृद्धीकार्धशतं त्रिंशत्पिप्पलीशर्करा पलम् । तिक्त शाकोंके साथ उचित मात्रामें देना गाढे लेहयेन्मधुना गोर्वा क्षीरपस्य शकृद्रसम् ।। कमवाळे पित्तकास में हितकारी है । अथवा अर्थ-पित्तज कास में चीनी, आमला, | तिक्तरसों में मधु मिलाकर सेवन करना भी मधु, द्राक्षा, चंदन और नीलकमल, इनके सब द्रव्यों से बनाया हुआ अवलेह हितहै। ___ कफान्वित पित्त में शाल्यादि । फफान्वित पित्तकास में मोथा और काली "शालयःस्युस्तनुकफेषष्टिकाश्चरसादिभिः मिरचका अवलेह हित है । वातान्वित पित्त शर्करांभोनुपानार्थ द्राक्षक्षुस्वरसा:पयः “॥ कास में ऊपर के द्रव्यों में घृत डालकर ___ अर्थ-पतले कफान्वित पित्तकास में अवलेह बनावे । अथवा द्राक्षा पचास, शाली चांवल, साठी चांवल, मांसरस के पीपल तीस, और चीनी चार तोला इन साथ देना हित है अनुपान में शर्करामिसब द्रव्यों को पीसकर शहत मिलाकर श्रित जल, दांख और ईखका रस, तथा अवलेह बनावै अथवा दूध पीने वाले गौके दूध हितकारी होता है। बच्चे के गोवरके रसमें शहद मिलाकर | पित्तकास में काकोल्यादि । पीवे। | काकोलीबृहतीमेदाद्वयैः सवृषनागरैः। . अन्य अवलेह । पित्तकासे रसक्षीरपेयायूषान् प्रकल्पयेत् ॥ त्वगेलाग्योषमृद्वीकापिप्पलीमलपौष्करैः। अथे- पित्तकासमें काकोली, बडीकटेरी लाजमुस्ताशठीरानाधात्रीफलबिभीतकैः३१ | मेदा, महामेदा, अडूसा, और सोंठ, इन सब शर्कराक्षौद्रसर्पिमिले हो हृद्रोगकासहा । औषधों के साथ तयार किया हुआ मांसरस अर्थ-दालचीनी, इलायची, सोंठ, दूध, पेया, और मुद्गादि यूष का उपयोग पीपल, काली मिरच, दाख, पीपलामूल, | करना चाहिये । पुष्करमूल, धानकी खील, नागरमोथा, कचूर रास्ना, आमला, और बहेडा इनके चूर्ण में अन्य चिकित्सा। शर्करा और मध मिलाकर अवलेह तयार | द्राक्षां कणां पंच मूलं तृणाख्यं च पचेजले। करके सेवन करने से खांसी और हृदय तेन क्षार श्रृतं शीतं पिवेत्समधुशर्करम् ॥ साधितां तेन पेयां वा सुशीतारोग नष्ट होजाते हैं। मधुनाऽन्विताम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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