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अ०१६
निदानस्थान भाषाटीकासमेत ।
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कोष्टशीर्षक का निदान । हों उसके इस रोगका नाम पादहर्ष है, यह वातशोणितजः शोको जानुमध्ये महारुजः। कफवात के कोपसे होताहै । शेयःकोष्टकशर्पिश्च स्थूलःकोष्टकशीर्षवत् ।। पाददाह का निदान । ___ अर्थ-वात और रक्त दोनों के कुपित होनेसे
पादयोः कुरुते दाहं पित्तासृक्लहितोऽनिलः जानु के वीच में अत्यन्त वेदनायुक्त सूजन विशेषतश्चक्रमित पाददाहं तमादिशेतू" उत्पन्न होजाती है और इसका आकार स्थूल अर्थ-रक्तापित्तान्वित वायु जिसके दोनों शृगाल के मस्तक के सदृश होजाता है। पावों में दाह उत्पन्न करदेताहैं उसके पादइसलिये इस रोग को क्रोटुशीर्षक कहते हैं। दाह नामक रोग होताहै । यह रोग विशेष
बातकंटक का निदान । करके बहुत धूमने वाले के हुआ करताहै । रुकू पादे विषमन्यस्ते श्रमाद्वा जायते यदा इतिश्रीअष्टांगहृदयसंहिता भाषाटीका वातेन गुलकमाश्रित्य तमाडुर्वातकंटकम् ॥ .. अर्थ-विषमरीति से चलने के कारण
निदानस्थाने वातव्याधिनिदाननाम अथवा अत्यन्त परिश्रमसे जब वायु टकनों
पंचदशोऽध्यायः । में स्थित होजाता है तब बडी वेदना होने
षोडशोऽध्यायः। लगती है, इसे वातकंटक कहते हैं ।
गृध्रसीका निदान । पाणि प्रत्यंगुलीनांया कडरा मारुतार्दिता । सक्थ्युत्क्षेप निगृह्णाति गृध्रसीतां प्रचक्षते ।
अथाऽतो वातशोणितनिदानं व्याख्यास्यामः __ अर्थ-पाणिके सन्मुख जो उंगलियों की कंडरा हैं उनमें जब वायु वेदना उत्पन्न क.
| नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। रके पांवोंकी गमनशक्ति को नष्ट करदेता है
वातरक्त का निदान । तब उसे गृध्रसी रोग कहते हैं।
"विदाह्यन्न विरुद्धं च तत्तञ्चासक्प्रदूषणम् ।
भजतां विधिहीनं च स्वप्नजागरमैथुनम् । खल्लीबातका निदान ।
प्रायेण सुकुमाराणामचंक्रमणशालिनाम् । विश्वाची गृध्रसी चोक्का खल्ली तीब्ररुजान्विता
अभिघातादशुद्धश्च नृणामसृजि दृषिते २ अर्थ-पूर्वोक्त विश्वाची और ऊपर कहे
वातलैः शीतलैर्वायुर्वृद्धः ऋद्धो विमार्गगः । हुए गृबसी रोगोंमें जब शूल उत्पन्न होता | तादृशेनासृजा रुद्धःप्राक्तदेवप्रक्षयेत् ॥३॥ है, तब इन्हें खल्लीवात कहते हैं । आदयरोग खुडं वातबलौसं वातशोणितम्।
पादहर्ष का निदान । सदाटुर्नामभिस्तच पूर्व पादौ प्रधावति ॥४॥ हृष्यते चरणो यस्य भवेतां च प्रसुप्तवत् । विशेषाद्यानयानाधैः प्रलम्बीपादहर्षः स विशेयः कफमारुतकोपजः। अर्थ-मद्य अम्ल तक्र,दही चौला,ब्रीहि.. ___ अर्थ-जिसके दोनों पांवों में स्पर्श ज्ञानका | जलचरों का मांस,कुलथी,कुठेरादि विदाही नाश और रोमोद्गमहो तथा चींटीसी चलती | अन्न तथा संयोगमात्रादि से विरुद्ध अन्न,
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