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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०१० निदानस्थान भाषाटीकासमेत । (४०१) - खट्टी, डकार, मूर्छा और मलका भेद ये । आकृतिवाली, अत्यन्त पीडा और सूची उपद्रव होते हैं ।। वेधनवत् वेदना से युक्त और वहुत स्थान वातिकमेह के उपद्रब। में फैली हुई और चिकनी होती हैं उन्हें बातिकानामुदावर्तकंठहृद्दाहलोलताः। कच्छपिका कहते हैं। शूलमुन्निद्रता शोषः कासः श्वासश्च जायते जालिनी के लक्षण । __अर्थ-वातिक प्रमेहमें उदावर्त, कंठ | स्तब्धा सिराजालवती स्निग्धस्रावाऔर हृदयमें बेदना, सब प्रकारके भोजन महाशया। पर मन चलना, शूल, नींदका अभाव, जानिस्तोदबहुला सूक्ष्मच्छिद्राच जालिनी शोष, खांसी और श्वास ये उपद्रव होतेहैं । अर्थ-जो पिटिका स्तब्ध, सिराओं के प्रमेहपिटिकाओं के नाम । जाल से अन्वित, स्निग्ध स्रावी, गंभीर शराविका कच्छपिका जालिनी बिनताऽलजी धातओं में आश्रित, तीव्र दाह और वेदना मसूरिका सर्षपिका पुत्रिणी सविदारिका । विद्रधिश्चेति पिटिकाःप्रमेहोपेक्षया दश। युक्त होती है और जिनमें छोटे २ छिद्र संधिमर्मसु आयते मांसलेषु च धामसु । होते हैं उन्हें जालिनी कहते है । अर्थ-शराविका, कच्छपिका, जालिनी, - विनता के लक्षण । विनता, अलजी,मसूरिका, सर्षपिका,पुत्रिणी । | अवगाढरुजालेदा पृष्ठे वा जठरेऽपि वा। विदारिका और विद्रधि ये दस प्रकार की। महती पिटिका नीला विनता विनता स्मृता फुसियां प्रमेह की चिकित्सा न करने से अर्थ-बिनता नामकी पिटिका पीठ वा उत्पन्न होती हैं । ये पिटिका संधिमर्म और । उदर में उत्पन्न होती हैं, इनमें अत्यन्त मांसल स्थानों में हुआ करती हैं। वेदना और क्लेदता होती है, इनका आकार बडा, रंग नीला और नीची होती हैं। शराविका के लक्षण । अलजी के लक्षण । अतोन्नता मध्यनिम्ना श्यावा क्लेदरुजान्विता | दहति त्वचमुत्थाने भ्रशम् कष्टा विसर्पिणी। शरावमानसंस्थाना पिटिका स्याच्छराविका | रक्तकृष्णातितृट्रस्फोटदाहमोहज्वराऽलजी। ___ अर्थ-जो पिटिका किनारों पर ऊंची, अर्थ-अलजी नामकी पिटिका उत्पन्न हो वीचमें नीची श्याववर्ण, क्लेद और वेदना से | ते समय त्वचामें जलन पैदा करती हैं । ये बडा अन्वित और जिसकी शराव ( मिट्टी का कष्ट देती हैं, और फैलती हुई चली जाती सकोरा ) के समान संस्थान और आकृति है, इनका वर्ण काला वा लाल होता है, विशेष होती है उसे शराविका कहते हैं। इनमें तपा, स्फोट, दाह, मोह और ज्वर कच्छपिका के लक्षण । | ये उपद्रव होते हैं। अवगाढातिनिस्तोदा महावस्तुपरिग्रहा।। लक्ष्णाकच्छपपृष्ठामा पिटिका कच्छपीमता मसूरिका के लक्षण । ... अर्थ-जो पिटिका कछुए की पीठकी मानसंस्थानयोस्तुल्या मसूरेण मसूरिका। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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