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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १. निदानस्थान भाषार्टीकासभेत । सांद्रमेह के लक्षण । लालामह के लक्षण । सांद्रीभवत्पर्युषितं सांद्रमेही प्रमेहति। । लालातंतुयुतं मूत्रं लालांमेहेन पिच्छिलम् ॥ अर्थ-सांद्रमेह में रातका किया हुआ ___ अर्थ-लाला मेह में पेशाव के साथ मूत्र गाढा होजाता है। लार गिरती है और मूडेहनीपनि ओहोती है। सुरामेह के लक्षण । अव छः प्रकार के पित्तन प्रमेहों का वर्णव सुरामेही सुरातुल्यमुपर्यच्छमयोधनम्।१०। करते हैं। ___ अर्थ-सुरामेह में मूत्र मद्य के समान क्षारमेहालक्षांसार ऊपर सच्छ और नीचे गाढा होता है। गन्धवर्णरसस्पर्शः क्षारेण क्षारतोषषत्। पिष्टमेह के लक्षण । अर्थ-क्षारमेह में मूत्र क्षार जलके सदृश संदृष्टरोमा पिटेन पिष्टवद्ध हुलम् सितम्। | गंध, वर्ण, रस और स्पर्श से युक्त अर्थ--पिष्टमेह में मूत्र करते समय रो- होता है। मांच खडे हो जाते हैं। और पिट्ठी के नीलमेह के लक्षण । . सदृश सफेद रंगका प्रमाण से अधिक मूत्र | नीळमेहेनं नीलाभम्। उतरता है। ___ अर्थ-नीलमेह में मूत्र का वर्ण नीला . शुक्रमेह के लक्षण । और गंध, वर्ण, रस और स्पर्श से युक्त शुक्राभं शुक्रमिकं वा शुक्रमेही प्रमेहति ११ / होता है । .. अर्थ-शुक्रमेह में वीर्य के समान और कालमेह के लक्षण । वीर्य मिला हुआ मूत्र होता है । कालमेही मषीनिभम् १४ ॥ सिकतामेह के लक्षण । । अर्थ-कालमेह में मूत्रका रंग स्याहीके मूत्राणूनसिकतामेही सिकतारूपिणो मळम्। सदृश होता है । अर्थ-सिकतामेह में वालुका अर्थात् हरिद्रामेह के लक्षण । ... रेती के समान छोटे छोटे कण मूत्रके साथ | हारिद्रमेही कटु कम् हरिदासन्निभम् दहत् । निकलते हैं। ___ अर्थ-हारिद्र मेहमें मुत्र हलदीके से रंग । शीतमेह के लक्षण । का कटुरसयुक्त होता है और मूत्र करने के शीतमेही सुबहुशो मधुरम् भृशशीतलम् ॥ समय जलन होती है। अर्थ-शीतमेह में प्रमाण से अधिक, मांजिष्टमेह के लक्षण ! . मिष्ट और अत्यन्त शीतल मूत्र होताहै। विसं मांजिष्ठमेहेन मंजिष्ठासलिलोपमम् १५ शनही के लक्षण । ___ अर्थ--मांजिष्ठ मेह में मजीठ के जल के शनैः शनैः शनैर्मही मंद मंदं प्रमेहति । सदृश कच्ची गंध से युक्त मूत्र उतरताहै । __ अर्थ-शनैर्मेह में थोडा थोडा मूत्र धीरे रक्तमेह के लक्षण | धीरे निकलता है। । विस्रमुग्णं सलवणं रकाभम् रक्तमेहतः। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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