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(३४८)
अष्टांगहृदय ।
अ० २.
बानपित्तज ज्वरकं लक्षण । गतिनर्तनहास्यादिविकृतहाप्रर्वतनम् २८ ॥ शिरोऽर्तिमूर्छावमिदाहमोह
साश्रुणी कलुषे रक्ते भुग्ने लुलितपक्ष्मणी। कण्ठास्यशोषारतिपर्वभेदाः।
अक्षिणी पिडिकपार्श्वमूर्धपस्थिरुग्भ्रमः॥ उन्निद्रतातृड्भ्रमरोमहर्षा
सस्वनौ सरुजौ को कण्ठःशूकैरिवाचितः। जृभातिवाक्त्वं चचलात्सपित्तात् २४॥ परिदग्धा खराजिवा गुरुःस्रस्तांगसंधिताः अर्थ-वातपित्तज ज्वरमें सिरदर्द, मूर्छा, |
रक्तपित्तकफष्ठीवो लोलनं शिरसोऽतिरुक् । वमन, दाह, मोह, कंठशोष, मुखशोष, अरति,
कोष्ठानां श्यावरक्तानां मण्डलानां च दर्शनम्
हृदब्यथामलसंसर्गःप्रवृत्तिाल्पशोऽति वा। संधियों में दर्द, नींद का न आना, तृषा, स्निग्धास्यता बलभ्रंशःस्वरसादः प्रलापिता भ्रम, और रोमहर्ष, जंभाई और बहुत ब- | दोषपाकश्चिरात्तंद्रा प्रतत कण्ठकूजनम् । कना, ये लक्षण होते हैं।
| सन्निपातमाभन्यासतंबयाच्च हतोजसम् ॥ बातकफके लक्षण ।
अर्थ-सन्निपातज अर्थात् वात पित्त कतापहास्यरुचिपर्वशिरोरुकपनिसश्वसनकासावबंधाः। फ तीनों दोषों के संसर्ग से उत्पन्न हुए ज्वशीतजाडयतिमिरभ्रमतंद्रा:- |र में तीनों दोषों के मिले हुए लक्षण होते श्लेष्मवातजनितज्वरलिंगम् ॥ २५ ॥
हैं । तथा बार बार दाह और बार बार शीत अर्थ-वातकफज ज्वरमें तापका अभाव,
की प्रवलता होती है । दिनमें घोर निद्रा, अरुचि, संधियों में दर्द, शिरोवेदना, पीनस,
रात्रिमें जागरण, वा दिनरात घोर निद्रा वा श्वास, खांसी, मलमूत्रका विबंध, शीत, जड
सर्वथा निद्राका अभाव, पसीनोंकी अधिकता ता, तिमिर, भ्रम, तंद्रा, ये सब लक्षण होते हैं
वा पसीनों का सर्वथा अभाव, गीत, नृत्य, कफपित्त ज्वरके लक्षण ।
हास्य आदि विकृत, चेष्टाओं का होना, तशीतस्तंभस्वददाहाव्यवस्था - स्तृष्णा कासः श्लेष्मपित्तप्रवृत्तिः।
था आखोंमें आंसू, कलुषता, रक्तता, कुटिल मोहस्तंद्रालिप्ततिक्तास्यता च
और ललित पलकों का होना ये लक्षण हो . शेयं रूपं श्लेष्मपित्तज्वरस्य ॥ २६ ॥ ते हैं । पिंडलियों में भडकन, पसलियों में
अर्थ-कफपित्त ज्वरमें शीत, स्तंभ, प- दर्द, सिरमें दर्द, संधियों में दर्द, हडफूटन, सीना, और दाह इनका अनियम । तृषा, | भ्रम, कानोंमें झनझनाहट और वेदना, कंठमें खांसी, कफकीप्रवृत्ति, पित्तकी प्रवृत्ति, मोह, कांटे खडे होना । जीभमें परिदग्धता, खुरतंद्रा, मुखमें लिहसावट और कडवापन, ये
खुरापन और भारापन, अंग संधियों में शिसब लक्षण होते हैं।
थिलता, थूक के साथ रक्तापत्त और कफ . सन्निपात ज्वरके लक्षण ।
| का निकलना, सिरका इधर उधर हिलना, सर्वजो लक्षणैः सर्वैर्दाहोऽत्र च मुहर्मुहुः । तद्वच्छीत महानिद्रा दिवा जागरणं निशि।।
सिरमें तीव्र शूल होना, शरीरमें श्याववर्ण सदावा नैववान्द्रिा महास्वेदोऽतिनैववा और रक्तवर्णके गोल चकत्तों का दिखाई दे.
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