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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. २ निदानस्थान भाषांटीकासमेत । और ज़मण, कानों में शब्द, कनफ्टी में | हल्लासछर्दन कास स्तंभापत्यं स्वगाविबु अंगेषु शतिपिटिकास्तंद्रोदर्द कफोद्भवे २२ निस्तोद, मूर्धा में वेदना, मुख में विरसता | अर्थ-कफवर में अन्न में विशेष अपि मुख में कसीलापन, मलमूत्रादि का अप्रक जडता, स्रोतों का अबरोध, ज्वर का सूक्ष्म तन, त्वचा, मुख, आंख, नख, मूत्र और वेग, प्रसेक,मुख में मीठापन, हृदयमें कफ पुरीष में रूखापन और ललाई, “मुखप्रसेक का लेपन, श्वास, पीनस, हृल्लास, वमन, अरुचि, अश्रद्धा, अविपाक, पसीने न भाना. खांसी, स्तंभता, त्वगादि में सफेदाई, देह निद्रानाश, कठशेष, ओष्ठशोष, तृषा, सूखी के अवयवों में शीतजनित पिडिका, तंद्रा, घमन ( उबकाई ), सूखी खांसी, विषादता उदर्द होते हैं । ये कफज ज्वर के लक्षण रोमहर्ष, अंगहर्ष, दंतहर्ष, कंपन, छींक का कहे गये हैं। रुकना, भ्रम, प्रलाप, धूप की इच्छा और दोषों के सामान्य लक्षण । शरीर विनमन, ये सब लक्षण वातज ज्वर काले यथास्वं सर्वेषां प्रवृत्तिवृद्धिरेव वा। में होते हैं। ___ अर्थ-वातादि जिन जिन दोषों का जो पित्तज्वर के लक्षण । | जो प्रकोप काल कहागया है उस उस काठ युगपछ्याप्तिरंगानांप्रलापः कटुवक्त्रता। " में अनुत्पन्न वातादिक ज्वरों की उत्पति नासास्यपाकः शीतेच्छा भ्रमो मूर्छा- । मदोऽरतिः। होती है और उत्पन्न व्याधियों की पति विस्रसः पित्तवमनं रक्तष्ठीवनमम्लकः १९ होती है। फोटोमः पीतहरितत्वं त्वगादिषु। सामान्य से भिन्न दो लक्षण । वेदो निश्वासवैगंध्यमंतितृष्णाच पित्तज । निदानोक्तानुपशयो विपरीतोपशापिता २३ अर्थ--पित्तनज्वर में एक साथही संपूर्ण अर्थ-आहार विहारादि जिन जिनका. शरीर में संताप होता है तथा प्रलाप, मुखम ] रणों से रोग की उत्पत्ति होती है उसी उस करवापन, नासापाक, मुखपाक, शीतेच्छा, कारण से अनुपशय अर्थात् दुख भूम, मी, मद अरति, पुरीषभेद, पित्त का पैदा होना तथा विपरीत कारण में उपकी वमन, थूकके साथ रुधिर आना खट्टी शय अर्थात् सुखात्पादकता होती है। डकार, लाल चकत्तों का प्रादुर्भाव, त्वचा, । संसर्गजन्वर के लक्षण । नख, मुख,आंख आदि में पीलापन वा | यथा स्वलिंगसंसर्गे ज्वर संसर्मजोऽपिना सापन.पसीनानिःश्वास में दुर्गध और अति अर्थ-वातज्वर, कफघर, और पित्तनषा. ये सब पित्तजवर के लक्षण हैं। । ज्वर के जो अलग अलग लक्षण कहे गये कफवर के लक्षण। . . हैं उनमें से दो दो दोषों के लक्षण के मिलने विशेषादराचिर्जाड बोतोरोधोऽल्पवेगता का नाम लिंगसंसर्ग हैं।यथायोग्य लिंगसंसर्ग प्रसेको मुखमाधुर्य हल्लेपश्वासपीनसोः २१ / में उत्पन्न हुए ज्वर को संसर्गज कहते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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