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अष्टांगहृदय ।
अ०५८
लता है।
वलमांस क्षयादि । कोषों का आश्रय लेकर अथवा गुह्य देश वलमांसक्षयस्तीवो रोगवृद्धिररोचकः॥ |
और हृदय का अवलंवन करके दुर्वल रोगी यस्यातुरस्य लक्ष्यंते अनि पक्षानस जीवति ।
के प्राणों का नाश कर देती है । अथवा अर्थ-जिस रोगी का बल और मांस
वायु कुपित होकर पुरीषादि मल को वस्ति अत्यन्त क्षीण होता जाता हो । तथा रोग
के मुख में और नाभिस्थल में रोककर की वृद्धि और अरुचि दिखाई दे वह डेढ
| दारुण वेदना को उत्पन्न करती है । तथा महिने भी नहीं जी सकता है ।
अंडकोषों में सूजन तथा तृषा और भिन्नवाताष्ठलिाके चिन्ह ।
पुरीषता को उत्पन्न करके, अथवा श्वास वाताऽष्टीलाऽतिसंवृद्धातिष्ठंतीदारुणा हदि तृष्णया तु परीतस्य सद्यो मुष्णाति जीवितम्
उत्पन्न करके गुदा और अंडकोषों का ___ अर्थ-बातोद्भव अष्ठीला अत्यन्त बढ- ग्रहण करके वायु रोगी को शीघ्र मार डा. कर दारुणरूप से हृदय में आकर स्थित हो जाती है, इसमें रोगी को प्यास अधिक पशुकाग्रगत वायु । लगने पर तत्काल मृत्यु होती है । वितत्य पशुकाग्राणि गृहीत्योरश्च मारुतः। __ अंगविशेष में वायु के चिन्ह ।।
स्तिमितस्यातताक्षस्य सधोमुष्णातिजीवितम्
__ अर्थ-जिस रोगी की पसलियों के अशैथिल्यं पिंडिके वायुर्नीत्वा नासां च
जिह्मताम् ॥ १०४॥ | प्रभाग में वायु प्रविष्ट होकर वक्षस्थल को क्षीणस्यायम्य मन्ये वा सद्यो मुष्णाति- जकड लेती है और वह वहां या तो प्र
जीवितम्। स्वेद लाती है वा निश्चल हो जाती है, अर्थ-वाय पिंडलियों में शिथिलता कर तथा नेत्र फैलजाते हैं. ऐसा रोगी शीघ्र मर देती है । नासिका को टेढी करदेती
जाता है । है, तथा मन्या नामक दोनों सिराओं को चौडी कर देती है, ऐसा होने पर रोगी मर
झटिति ज्वर संतापादिक ।
सहसा ज्वरसंतापस्तृष्णा मूी बलक्षयः । जाता है ।
विश्लेषणं च संधीनांमुमूर्षोरुपजायते।१०९। - नाभ्यादिगत वायु । अर्थ-जिस रोगी के ज्वर, संताप, तृषा नाभी गुदांतरंगत्वा वंक्षणौवा समाश्रयन् ॥ मूर्छा, बलक्षय, और संधिविश्लेष ये सब गृहीत्वा पायुहृदये क्षीणदेहस्य वा बली।।
लक्षण सहसा उपस्थित हों तो मत्युसूचक मलान बस्तिशिरो नागभ विबद्धथ जनयन्
रूजम् ॥ १०६॥
होते हैं । कुर्वन् वक्षणयोःशूलं तृष्णां भिन्नपुरीषताम् ।
लेप ज्वरादि के चिन्ह । श्वासंवा जनयन् वायुर्गृहीत्वा गुदवंक्षणम्॥ | गोसर्गे वदनाद्यस्य स्वेदः प्रच्यवते भृशम् ।
अर्थ-बलवान् वायु नाभि और गुदना- लेपज्वरोपतप्तस्य दुर्लभं तस्य जीवितम् ॥ डी के बीच में गमन करके दोनों अंड- अर्थ-गौ के खोलने के समय अर्थात् .
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