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अ० ५
शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
[३२१ ]
हंसता हुआ मूर्छा को प्राप्त होता है जो | विपरीत भावको प्राप्त होजाय वह छ: म-' ऊपर वा नीचे के ओष्ठों को चाटता हुआ | हिने से अधिक नहीं जी सकता है। फुकारसी मारता है । काली पीली वा लाल भक्त्यादिके निवर्तन चिन्ह । रंग की छाया जिसके पीछे पीछे चले । भाक्तःशील स्मृतिस्त्यागो बुद्धिबलमहेतुकम
| षडेतानि निवर्तते षडाभिर्मासमरिष्यतः । जो मनुष्य वैयं, औषध, अन्नपान, गुरु
| मत्तवद्गतिवाकंपमाहा मासान्मरिष्यतम६६॥ और मित्रसे द्वेष करता है, उसको यमराज
___अर्थ-जो मनुष्य छः महिने में मरनेवाला का वशीभूत समझना चाहिये ।
है उसकी भक्ति, शीलता, स्मृति, त्याग औग्रीवादि में शीतल स्वेद ।
र बल ये छः बिना ही कारण जाते रहते हैं प्रीवाललाटहृदयं यस्य स्विद्यति शीतलम् ॥
तथा जिसकी मृत्यु एक महिने के भीतर उष्णोऽपरःप्रदेशश्च शरणं तस्य देवता।।
होगी उसकी मतवालों की सी गति, कंपन __अर्थ-जिसके ग्रीवा, ललाट और हृदय में शीतल होने पर भी पसीना आवै तथा
और मोह ये होंगे। अन्य अंग उष्ण हों उसकी. रक्षा देवताही
कचोत्पाटनादि चिन्ह ॥ . कर सकते हैं. वैद्यकी सामर्थ्य नहीं है।
नश्यत्यजानन् षडहाकेशलुंचनवेदनाम् ।
न याति यस्याचाहारः कंट कंठामयाहते। - अल्प दृष्टयादि । प्रेप्याःप्रतीपतां यांति प्रेताकृतिरुदीर्यते । योऽणुज्योतिरनेकायो दुश्छायो दुर्मनाःसदा यस्य निद्रा भवेन्नित्यं नैव वा न स जीवति ॥ बलिं बलिभृतो यस्य प्रतिं नोपभुंजते। वक्त्रमापूर्यतेऽशूणां स्विद्यतश्चरणौ भृशम्। निनिमित्तंचयोमेधांशोभामुपचयं श्रियम्॥ चक्षश्चाकुलतां याति यमराज्यंगमिष्यतः॥ प्राप्नोत्यतोवा विभ्रंशंस प्राप्नोति यमक्षयम्। यैःपुरा रमते भाबैररतिस्तैर्न जीवति ।
अपजस मनुष्यका ज्याति वा तज अर्थ-वह मनुष्य छः दिनमें मरजाता है अल्प हो, जिसका चित्त व्याकुल रहता हो,
जिसको बाल नोचने की पाडा मालूम नहीं जिसकी कांति निंदित हो, जो सदा शोका
होती है तथा जिसके विना कंठरोग के ही क्रांत रहता है, जिसके दिये हुए बलिको
आहार कंठों नहीं जाता है । जिसके भृत्य काकादिक न खाते हों, जो बिना कारणही
प्रतिकूल होजाते हैं, जो प्रेत की सी आकृमेधा, शोमा, शरीरपुष्टि, धन वा राज्यको
ति का दिखाई देने लगताहै । जिसको नीप्राप्त कर लेवे वा इनसे भूष्ट होजाय, ऐसा मनुष्य आसन्न मृत्यु होता है।
द नहीं आती है अथवा कदाचित् ही आती __ स्वभाव में विपरीतिता। | है वह नहीं जीता है । जिस मनुष्यके आगुणदोषमयीयस्य स्वस्थस्यव्याधितस्य वा सुओं के स्रोत रुक जाते हैं वह नहीं जीता यात्यन्यथात्वं प्रकृतिः षण्मासान सजीवति। है। जिसके पांवों में निष्कारण पसीने आते ...अर्थ-रोगी वा निरोगी जिस मनुष्यकी हैं। जिसके नेत्र चंचल हो जाते हैं वे सब सत्वादि गुणमयी वा वातादि दोषमयी प्रकृति | यमलोक की ओर प्रस्थान करते हैं । जो
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