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अष्टांगहृदय ।
दो असफलक, दो आवर्त, दो विटप, चार | नीला, सीमंत, मातृका, कूर्च,शृंगाटक और ऊर्ती, दो कुकुन्दर, दो जानु, चार लोहित, | गन्या ये उन्तीस मर्म अपनी हथेली के चार आणि, दो कक्षाधर, चार कूर्च, और प्रमाण के होते हैं तथा शेष छप्पन मर्म दो कूर्पर ये ४१ मर्म ऐसे हैं कि इनके आधे आधे अंगुल के होते हैं । तथा कुछ विद्ध होने पर देह में विकलता होती है, | आचार्यों का यह मत है कि इन ५६ मों कभी कभी ऐसा भी होता है कि इनमें चोट का प्रमाण तिल वा ब्रीहि के प्रमाण के लगने से प्राणों का भी नाश होजाता है ।। समान होता है। बेदनाकारक मर्म ।
मर्माभिघात में मरणविधि । अष्टौ कृर्वशिरोगुल्फमाणबंधा रुजाकराः॥
चतुर्थोक्ता सिरास्तु याः॥ ६३ ।। ___ अर्थ-चार कुर्चशिरा, दो गुल्क, दो तर्पयति वपुः कृस्त्रं तामर्माण्याश्रितास्ततः । मणिबंध ये आठ मर्म ऐसे हैं कि इनसे
तत्क्षतात्क्षतजत्यिर्थप्रवृतेर्धातुसंक्षये ६४ ॥ प्राणों का नाश तो होता नहीं है परन्तु |
वृद्धश्चलो रुजस्तीब्राः प्रतनोति समीरयन् ।
| तेजस्तदुदृतं धत्ते तृष्णाशोषमभ्रमान ६५ वेदना अधिक होती है ।
| स्विन्नस्रस्तश्लथतनुं हरत्येन ततोऽतकः। . मोका यथायथ प्रमाण । अर्थ-वातपित और कफ से जुष्ट, तेषां विटपकमा गुर्व्यः कूर्वसिरांसि च । शुद्धरक्त वाहिनी जो चार प्रकार की साद्वादशांगुलमानानि द्वयंगुले मणिबंधने ६०॥
तसौ शिगओं का ऊपर बर्णन किया गया गुल्फो चस्तनमूले च द्वंयगुलौ जानुकूर्परौ । ___ अर्थ-इन सब मर्मो में विटप, कक्षाधर
है, वे सब शरीर को तृप्तकरती है, और ऊर्थी और कूर्चसिरा ये बारह मर्म परिमाण
मों के आश्रित हैं । इन मर्माश्रित सिराओं में एक एक अंगुल के होते हैं । दो मणि
में घाव होने से रक्त की अत्यन्त प्रवृति बंध, दो गुल्फ और दो स्तनमूल इनमें से होती है फिर रक्त के अत्यन्त निकालने के हरएक का प्रमाण दो अंगुल होता है, तथा कारण मांसादिक धातुओं की परंपरामें भी दो जानु और दो कूर्पर इनका प्रमाण तीन
क्रम से क्षीणता होती है, तदनंतर धातु के तीन अंगुलका होता है ।
क्षय होने पर कुपित और चलायमान वायु _____ अन्य मोंका प्रमाण ।
अत्यन्त तीन और दुःखदायी अनेक तरह अपानवस्तिहनाभिनीलाः सीमंतमातृकाः ॥ के शूल उत्पन्न करती है । और पित्त कूर्चशंगाटमन्याश्च विशदेकन वर्जिताः । को उदीर्ण करके तृषा, शोष, मद, भ्रम आत्मपाणितलोन्माना:
आदि उपद्रवों को करती है । तदनंतर शेषाण्य(गुलं बदेत् ॥ ६२ ॥ पञ्चाशत्षट् च मर्माणि तिलब्रीहिसमान्यपि ।
उस मनुष्य के पसीने आने लगते हैं, शइष्टानि मर्माण्यन्येषाम्
रीर शिथिल पड जाता है और वह मर भी अर्थ-गुदमर्म, घस्ति, तलहृत, नाभि, जाता है ।
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