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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
[२९९ ]
वातप्रकृति के लक्षण। वहुभोजी, विलासी, गाना, हंसना, आवेट प्रायोऽत एव पवनाध्युषिता मनुष्या
और कलह का अभिलाषी, मीठा, खट्टा, दोषात्मकाः स्फुटितधूसरकेशगात्राः। नमकीन और उष्ण पदार्थों के सेवन की शीतद्विषश्चलधृतिस्मृतिबुद्धिचेष्टाः- इच्छावाला, कृश और दीर्घ आकृति वाला, सौहार्ददृष्टिगतयोऽतिबहुप्रलापाः ८५
| चलेने में शब्द करने वाला, न दृढ, न अल्पपित्तबलजीवितनिद्रा:सन्नसक्तचलजर्जरवाचः ।
जितेन्द्रिय, अनार्य, स्त्री पर प्रेम न रखने नास्तिका बहुभुजः सविलासा- घाला, थोडी संतान वाला, होता है । इस गीतहासमृगयाकलिलालाः ॥८६॥ के नेत्र कर्कश, धूसरवर्ण, गाल, अचारु मधुराम्लपटूष्णसात्म्यकांक्षाः सौंदर्यहीन मृतोपम होतहैं इसके नेत्र सोते कृशदीर्घाकृतयः सशब्दयाताः।
समय खुले से रहते हैं स्वप्न में पर्वत, वृक्ष न दृढा न जितेंद्रिया न चार्यान च कांतादयिता वहुप्रजा वा ॥ ८७ ॥
और आकाशादि में धूमता है । बातप्रकृति नेत्राणि चैषां खरधूसराणि- वाला मनुष्य अभव्य, द्वेषपूर्ण, और चोर हो वृत्तान्यचारूणि मृतोपमानि । ता है । इनके पांवोंकी पिंडली ऊंची होती उन्मालितानीव भवंति सुप्ते
हैं । इनका स्वभाव कुत्ता, शृगाल, ऊंट, गिशैलदुमांस्ते गगनं च यांति ॥ ८८ ॥
द्ध, चूहे और कौए के सदृश होता है। अधन्या मत्सराध्माता:स्तेनाः प्रोद्वद्धपिंडिकाः।
पित्तप्रकृति के लक्षण । श्वश्रगालोष्टगध्राखु
पित्तं वहिर्वहिजं वा यदस्माकाकानूकाश्च वातिकाः ॥
त्पित्तोद्रिक्तस्तीक्ष्णतृष्णांबुभुक्षः। अर्थ-वातप्रकृतिवाले मनुष्य का स्वभाव | गौरोष्णांगस्ताम्रहस्तांघ्रिवकः प्रायः प्रारंभ से जीवन पर्यन्त उत्तम नहीं
शूरो मानी पिंगकेशोऽल्परोमा ॥९॥
दयितमाल्यविलेपनमण्डन:होता है । इनके बाल और शरीर फटे हुए
सुचरितः शुचिराश्रितवत्सलः। और देह का रंग धूलधूसरित सा होता विभवसाहसबद्धिबुलान्वितोहै इनको शीतल पदार्थ अच्छे नहीं लगते भवति भीषुमतिषितामपि ॥ ९ ॥
मेधावी प्रशिथिलसंधिबंधमांसो.. हैं इनकी धृति, स्मृति, वुदि चेष्टा, सह
नारीणामनाभमतोऽल्पशुक्रकामः । दता, दृष्टि और गति स्थिर नहीं होती हैं
आवासः पलिततरंगनीलकानांये निर्थक वातों को बहुत बकते हैं इनका भुक्तेऽनं मधुरकषायतिक्तशीतम् ९२॥ पित्त, बल, जीवन और निद्रा अल्प होते धर्मद्वेषी स्वदनः पूतिगंधिहैं, मुख से सन्न ( शिथल ) चल ( कुछ
भूयुच्चारक्रोधपानाशनर्ण्यः ।
सुप्तः पश्येत्कर्णिकारान्पलाशान्का कुछ ) और जर्जर (टूटे हुए ) शब्द
दिग्दाहोल्काविद्युदर्कानलांश्च ॥ १३॥ निकलते हैं । वात प्रकृति वाला नास्तिक, तनूनि पिंगानि चलानि चैषां
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