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उत्पन्न तथा देहसे उत्पन्न जो स्वाभाविक
बल होता है । उसे सहजबल कहते हैं । जो I बल बाल्य अवस्था वा युवा अवस्थासे उत्पन है अथवा हेमंतादि ऋतुओं के कारण से होता है उसे कालज बल कहते हैं । तथा जो बल आहार विहारसे उत्पन्न होता है और वाजीकरणादि रासायनिक बलकारक प्रयोगों के सेवन से होता है उसे युक्तिकृत कहते हैं ॥
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अंजली अधिक होते हैं। जैसे मज्जा एक अंजली, मेदा दो अंजली, वसा तीन अंजली, इत्यादि तथा जल दस अंजलि है । इसीतरह ओज, मस्तिष्क और वीर्य अपने हाथ से प्रत्येक एक प्रसृत अर्थात् आधी आधी अंजली हैं । त्रियों के स्तन्य अर्थात् दूध दो अंजली है और रज चार अंजली होता है । यह परिमाण उन मनुष्यों का है जिनके धातु समप्रकृति पर हैं धातुओं के घटने बढने के अनुसार ही मज्जादि का परिमाण घट बढ़ जाता है । सातप्रकार की प्रकृति । शुक्रासृग्गर्भिणी भोज्यचेष्टा गर्भाशयतुषु । यः स्याद्दौषोऽधिकस्तेन प्रकृतिः सप्तधोदिता
अर्थ- शुक्र, शोणित, गर्भिणी का आहार विहार, गर्भाशय और ऋतु इनमें बाता, दिक दोषों में से जिस दोष की अधिकता होती है उसी दोष के अनुसार प्रकृति होती है, इस जगह प्रकृति सात प्रकार की होती है जैसे वातप्रकृति, पित्तप्रकृति, कफप्रकृति, पित्तकफवातपित्तप्रकृति, वातकफप्रकृति, प्रकृति और वातकफपित्तप्रकृति । बातको प्रधानता । विभुत्वादाशुकारित्वा द्वलित्वादन्यकोपनात् स्वातंत्र्याद्वहुरोगत्वादोषाणां प्रबलोऽनिलः
अर्थ-विभुत्व ( सबशरीर में व्यापकता) आशुकारित्व ( शीघ्रतापन ), वालिव (बलबत्ता ), अन्यप्रकोपनत्व ( और दोषों को कुपित करनेवाला ), स्वातंत्र्य ( अन्य को प्रेरणा करनेवाला ) और वहुरोगल ( सब से अधिक रोगों को करनेवाला ) इन छः कारणों से वायु सब दोषों से प्रवल है ।
अष्टांगहृदय |
देशको त्रिविधत्व । देशोऽल्पवारिदुनगो जांगलः स्वल्प रोगदः । आनूपो विपरीतोऽस्मात्समः साधारणःस्मृतः ॥ ७९ ॥ अर्थ- देश भी तीन प्रकारका होता है । जैसे जांगल, आनूप और साधारण । जिस देश में अल्प जल, अल्पवृक्ष, और अल पर्वत हों वह जांगल देश है। ऐसे देश में रोग भी कम होते हैं । आनूप देश इससे विपरीत होता है अर्थात् उसमें जल, वृक्ष, अ और पहाड बहुत होते है और रोग भी अधिक होते हैं । साधारण देश सम होता है इसमें जल वृक्ष, पर्वत और रोगादि न तो बहुत ही होते हैं और न थोडे ही होते हैं |
देहमें मज्जादिका प्रमाण । मज्जमेदोवसामूत्रपित्तश्लष्म शकुंत्यसृक् ॥ रसो जलं च देहेऽस्मिन्नेकैकांजालवर्धितम् । पृथक्स्व प्रसृतं प्रोक्तमोजोमस्तिष्करेतसाम् ॥ द्वाबजली तु स्तन्यस्य चत्वारो रजसः स्त्रियाः समधातोरिदं मानं विद्यादृद्धिक्षयावतः ८२
अर्थ - मनुष्य के देहमें मज्जा, मेदा, वसा, मूत्र, पित्त, श्लेष्मा, पुरीष, रक्त, रस और जल ये दस द्रव्य यथोत्तर अपने हाथकी एक एक
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