SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थान भाषाकासमेत । (२९५) .. है उसे मूत्र कहते हैं और गाढे किट्ट को | रसादि धातुआ को द्विविधत्व । विष्टा कहते हैं। | प्रसादकिटौ धातूनां पाकादेवं द्विधर्छतः ॥ ___ अन्नका सार अर्थात प्रसाद नामक भा- | परस्परोपसस्तभाशातुस्नेह परंपरा। ग फिर सात अग्नियों द्वारा पकाया जाता ___अर्थ-संपूर्ण रसादि धातु भी यथोक्त है इसका आशय यह है कि जठराग्नियों पाकविधि द्वारा सार और किट्ट इन दो और पंचमहाभूताग्नि इन छः अग्नियों द्वारा भागों में विभक्त होती है । पाक के कारण पककर तो सार बनता है फिर बची हुई प्रत्येक धातु का स्नेह अर्थात् सार उत्पन्न सात रसादि धात्वग्नि द्वारा पकाया जाता है होता है । आपस में उपस्तंभ हेतु से रसादिकी उत्पत्तिकाक्रम । धात्वादिकों के सार की परंपरा यथोत्तर रसाद्रक्तं ततोमांसं मांसान्मेदस्ततोऽस्थिच श्रेष्ठ है । जैसे रसके साररूप रक्त से रक्त अस्नो मज्जा ततः शुक्रं शुक्रादर्भः प्रजायते का साररूप मांस श्रेष्ठहै । और मांस के अर्थ-उक्त प्रसादाख्य सार प्रथम हृदय में | साररूप मेद से मेदके साररूप आप श्रेष्ठ पहुंचता है वहांसे व्यानवायु द्वारा हृदयस्थदश है, ऐसे ही और भी जानौ । मूलशिराओं में होकर सब देहमें फैलता हुआ । आहारकी परिणति का काल । रस धातुसे मिलकर रसधात्वस्थ अंग्निसे पा. केचिदाहुरहोरात्रात्षडहादपरे परे ॥६५॥ क को प्राप्त होकर रक्तमें परिणत होता है, मासेन यातिशुक्रत्वमन्नं पाकक्रमादिभिः । तदनंतर रक्तसे मांस, मांससे भेद, भेद से ___ अर्थ-कोई आचार्य कहते हैं कि पाक अस्थि, अस्थिसे मज्जा, मज्जासे शुक्र, और क्रम ( जठराग्नि और पंचभूताग्नि ) द्वारा शुक्र से गर्भ की उत्पत्ति होती है ॥ पच्यमान रसरक्तादि क्रमपूर्वक वीर्यके प्रभाव रसादि धातुओं का किट्ट । से अन्न एक दिन रातमें शुक्र बनजाता है कफ-पित्तं मलः खेषु प्रस्वेदो नखरोम च ॥ कोई २ कहते हैं कि छः दिनमें अन्न से. स्नेहोऽक्षित्वग्विशामोजोधातूनांक्रमशोमला. शुक्र बनता है । अन्य आचार्य कहते हैं ___अर्थ-अब रसादि से जो मल उत्पन्न कि एक महिने में आहारसे शुक्र बनताहै । होते हैं उनका वर्णन है । रसधातु का मल भोज्यधातुओं की परिवृत्ति । कफ है । रक्तका मल पित्त है। मांसका सततं भोज्यधातूनां परिवृत्तिस्तु चक्रवत् ॥ मल वह है जो नासिका आदि के छिद्रों से ___+ इस विषय में पाराशर का यह मत निकलता है । मेदका मल पसीने हैं । अ- | है कि आठ दिन में आहार के रस से शुक्र स्थियों का मल नख और रोम हैं मज्जाको | बनता है । उन्हों ने अपने ग्रंथ में लिखा है मल नेत्रसंबंधी स्नेह, त्वचासंबंधी स्नेह आहारोऽद्यतनोयश्चश्वो रसत्वं सगच्छति और पुरीषसंबंधी स्नेह है । और शुक्र का | शोणितत्वं तृतीयेन्हि चतुर्थे मांसतामपि । मेदस्त्वंपंचमे षष्ठे त्वस्थित्वं सप्तमे व्रजेत्। मल ओज है। | मज्जतांशुक्रतामेति दिवसेत्वष्टमेनृणामिति। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy