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अ३
सारारस्थान भाषाटीकासमेत ।
(२७९)
विशिष्टहै इससे दृष्टि, रूप और पाक । स्मृति, बुद्धि, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, अहंकार, शक्ति उत्पन्न होतेहैं ( अन्यत्र लिखाहै कि सुख, दुख, आयु आदि ये भी आत्माही से पित्तोष्मा, मेधा, वर्ण और शौर्यादि भी अग्नि | उत्पन्न होते हैं ॥ से पैदा होतेहैं ) जल सतोगुण और तमोगुण सात्म्यज निरूपण | युक्तहै इससे जिह्वा, रस और क्लेद उत्पन्न सात्म्यनं त्वायुरारोग्यमनालस्यं प्रभाबलम्। होतेहै तथा पसीने और मूत्रादिक भी इसीसे | अर्थ-सात्म्य तीन प्रकारका होता है य होतेहैं । पृथ्वीसे नासिका, गंध और अस्थि | था व्याधिसात्म्य, देशसात्म्य और देहसात्म्य उत्पन्न होतेहैं । यद्यपि उपरोक्त संपर्ण भावों। यहां व्याधिसात्म्य का ग्रहण नहीं है क्योंकि के उत्पन्न होनेमें सबही महाभत का अंश यहां व्याधिका प्रकरण उपस्थित नहीं है । तथापि जिस भाव में जिस महाभूत की अधि
इसलिये देशसात्म्य और देहसात्म्यका ग्रहण कता हो वह उसी महाभूत के नामसे बोला करना चाहिये देहके अनुकूल आहार विहाजाताहै जैसा हम ऊपर घडेका उदाहरण
रादि का नाम सात्म्य है । सात्म्यसे अ युदेचुके हैं।
आरोग्य : धातुओंकी समानावस्था ), अनादेहमें मातृजपितृज भाग। लस्य ( संपूर्ण चेष्टाओंमें उत्साह ) कांति मृत्र मातृजं रक्तमांसमज्जगुदादिकम् ४ ॥ और बल उत्पन्न होते हैं । इनसे अतिरिक्त पैतृकं तु स्थिरंशुक्रं धमन्यस्थिकचादिकम्। अलोलुपता । इन्द्रियप्रसाद, स्वर, वर्ण, वीर्य, चैतनं चित्तमक्षाणि नानायोनिषु जन्म च ॥
तेज और प्रहर्प ये भी सात्म्यसे उत्पन्न ___ अर्थ-इस अनेक सामिप्रीयोंसे युक्त देह
| होते हैं। में जो भाग मृदु हैं वे माताके सत्वकी अ
रसज निरुपण । धिकता से उत्पन्न होते हैं जैसे रक्त, मांस, मज्जा, गुदा, नाभि, हृदय, यकृत, प्लीहा,औ
रस वपुषणे जन्म वृत्तिवृद्धिरलोलता ६॥
। अर्थ-माताके आहार के रससे शरीरका र आमाशयादि । तथा इस देहमें जो स्थिर
जन्म, बृत्ति, अंगोंकी वृद्धि, और अलोलता अर्थात् दृढरूप है वे पिताके सत्वकी अधिक
उत्पन्न होते हैं । इनके सिवाय उत्साह, पुष्टि ता से उत्पन्न होते हैं। जैसे वीर्य, धमनी,
तृप्ति, आदि भी रसज हैं। अस्थि' बाल, शिरा, स्नायु, रोम आदि और
सत्वादिगुणसे उत्पन्नका निरूपण। आत्मासे संपूर्ण इंद्रियोंका सारथी चित्त, तथा सव इंद्रियां उत्पन्न होती है । और हाथी,य. राजसं बहभाषित्वं मानक्रुदंभमत्सराः ७॥
सात्विकं शौचमास्तिक्यं शुक्लधर्मरुचिर्मतिः करी, घोडा, ऊंट, खरगोश आदि अनेक यो तामसं भयमज्ञानं निद्राऽऽलस्यं विषादिता। नियों में जन्म भी आत्मा ही से होता है। अर्थ-सत्वगुणकी अधिकतासे शौच (श यह उपलक्षणमात्र है अर्थात काम, क्रोध, रीर, मन और बाणीसे शुद्धि जैसै मृत्तिका लोम, भय, मद, हर्ष, धर्म, अधर्म, शीलता, | जलादि द्वारा न्हाने धानेसे शारीरक शुद्धि,
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