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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - शारीरस्थान भाषाटीकासमेत | (२७७) मृतगर्भिणीके कुक्षिसे बालकनिकालना। | इन सात योगोंका काथ, कल्क वा चूर्ण दू. बस्तिद्वारे विपनायाःकुक्षिःप्रस्पंदते यदि । ध के साथ सेवन करे ॥ जन्मकालेततः शीघ्रं पाटयित्वोद्धरेच्छिशुम् अष्टमादिमासमें गर्भरक्षा । अर्थ-प्रसव होनेके समयही यदि गर्भि | कपित्यबिल्ववृहतीपटोलेक्षुनिदिग्धिजैः ५८ णी का प्राणांत होजाय और वस्तिद्वार अत्य• | मुलैः शृतं प्रयुंजीत क्षीरं मासे तथाऽष्टमे । न्त चलायमान होतो बहुत शीघ्रही उदरको | नवमे सारिवाऽनंतापयस्यामधुयष्टिभि५९. चीरकर बालक को निकाललेना चाहिये । | योजयेशमे मास सिद्धं क्षार पयस्यया । गर्भरक्षाके सातयोग। अथवा यष्टिमधुकनागरामरदारुभिः॥६॥ मधुकं शाकीज च पयस्या सुरदार च । अर्थ-कैथ, बेल, बडी कटेरी, परवल, अश्मंतकः कृष्णतिलास्ताम्रबल्ली शतावरी । ईख, छोटी कटेरी, इनकी जड डालकर सिद्ध वृक्षादनी पयस्या च लता चोत्पलसारिवा। किया हुआ दूध उस समय देना चाहिये । मनंता सारिवा राना पाचमधुपष्टिका।। जब आठ महिने का गर्भस्राव होता हो । वृहतीद्वयकाश्मयः क्षारिशृंगत्वचा घृतम् । पृश्निपणी बला शिग्रुःश्वदंष्ट्रा मधुपर्णिका ॥ नवें महिने में अनंतमूल, अनंता, दूधी और भंगाटकं बिसं द्राक्षा कसेरु मधुकं सिता। मुलहटी इन से सिद्ध किया हुआ दूध दे। सप्तैतान पपसायोगानर्ध श्लोकसमापनान् | दस महिने में दूधी से सिद्ध किया हुआ क्रमात्सप्तसु मासेषु गर्भे सवति योजयेत् । अथवा मुलहटी, सोंठ, देवदारू इन से सिद्ध ___ अर्थ-गर्भके स्राव होनेपर आधे आधे | किया हुआ दूध देवै । श्लोकमें कहे हुए सातयोगों को क्रमसे सात गर्भविषय में अज्ञानों का मत । महिनोंमें प्रयोग करे अर्थात् जो पहिले महि अवस्थितं लोहितमंगनायाने में गर्भस्राव होनेको होतो मुलहटी, स्व. वातेन गर्भ अवतेऽनामशाः। रच्छद शाकका बीज, दूधी और देवदारु । गर्भाकृतित्वात्कटुकोणतीक्ष्णैःदूसरे महिने में गर्भस्राव होनेको हो तो अश्मंतक खते पुनः केवल एव रक्ते ॥ ६१॥ गर्भ जडा भूतहृतं वदति(यमलपत्रक) कालेतिल, मजीठ और सितावर मूर्तेर्न दृष्टं हरणं यतस्तै। तीसर महिने में अभरवेल, दूधी, गधप्रियंगु ओजोशनत्बादथ पाऽव्यवस्थैऔर उत्पलसारिवा । चौथे महिनेमें अनंता भूतैरुपेक्ष्येत न गर्भमाता ॥ ६२॥" सारिवा, रास्ना, मजीठ और मुलहटी, पांचवें अर्थ-स्त्री की कुक्षि में वायु के विकार महिनेमें दोनों कटेरी, खंभारी, बटादि दूधवा | से रुधिर इकट्टा होकर सब प्रकार से गर्भ ले वृक्षोंके शंग और छाल तथा घृत । छटे के सदृश दिखाई देने लगता है क्योंके इस महिनेमें पृश्निपर्णी, बला, सहजना, गोखरू, में रक्तगुल्म के निदान में कहे हुए हल्लास और मधुपर्णी । सात महिनेमें सिंघाडा, क- और दौहृदादि लक्षण भी होते हैं इसे अनमलकंद, दाख, कसेरू, मुलहटी, और चीनी | भिज्ञ लोग भूम से गर्भ बता देते हैं । जब यह For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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